चाहत (अंतिम भाग ) – : hindi stories with moral

hindi stories with moral : पर आप जीवन भर साथ निभाते आए उसका जो चाहे जिस्मानी रूप से हमारे सामने ना था थी पर उसकी यादें हमेशा हमारे बीच दीवार की तरह खड़ी रहीं.”

मैं आप से पूछती हूं अगर आप इन्हें यादों के भंवर जाल में रहना चाहते थे तो क्यों शादी की मुझसे? क्यों अपनाया मुझे जब मैं आपको दिल से स्वीकार्य ही ना थी.”

मीरा की आवाज तेज हुई तो नर्स अंदर आ गई.

एक्सक्यूज मी सर. प्लीज उनकी हालत देखिए, उन्हें आराम की सख्त जरूरत है. आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए.”

वैभव बहुत कुछ कहना चाहता था पर हालातों को देखते हुए मन मसोस कर रह गया. मीरा के घरवाले उसे हॉस्पिटल से ही उसे अपने साथ ले गए थे.

उसके जख्म बाहरी नहीं थे बल्कि अंदरूनी थे जिन्होंने रूह तक को लहुलुहान कर  दिया था, सदमा गहरा था, संभलने में वक्त लगने वाला था. डॉक्टर के अनुसार जगह का बदलना मीरा के लिए बेहतर साबित हो सकता था.

वैभव को मीरा के बिना पूरा घर सूना लगता था. घर के हर कोने में उसे मीरा की हंसती खिलखिलाती छवि दिखती थी. दिल तो उसका चाहता था कि उड़ कर मीरा के पास पहुंच जाए बस मीरा की तबीयत का ख्याल करके वह उससे मिलने नहीं जाता था पर एक माह पश्चात वह दिल के हाथों मजबूर होकर मीरा के सामने पहुंच ही गया.

उसका मुरझाया चेहरा देखकर वैभव का कलेजा मुंह को आने को हुआ. दोनों की नजरें मिली तो सहसा ही दोनों के मुंह से एक साथ निकलाकैसे हैं आप?”

कैसी हो मीरा?”

वैभव के मुंह से अपना नाम सुनकर मीरा जैसे अपना दिल ही हार बैठी थी. बिना कोई जवाब दिए वह उसको ही देखती रही.

मीरा घर चलो,क्यों अपना घर छोड़कर चली आई?”

वह मेरा घर नहीं था, मैं तो बस मेहमान थी मेहमान थी कुछ वक्त के लिए वहां पर.”

कैसी बात कर रही हो मेहमान तुम नहीं बल्कि गुज़रे वक्त की चंद यादें थीं जिनका कटु स्वाद हमारे रिश्ते की मिठास को प्रभावित कर रहा था.अब वो केवल तुम्हारा घर है” 

घर तो घर में रहने वालों से बनता है पर हम दोनों तो अजनबी थे वहांमीरा शून्य में देखते हुए बोली.

शायद तुम सही हो मीरा पर अजनबी कब अपने हो जाते हैं पता ही नहीं चलता. अपने निस्वार्थ प्रेम से कब तुम मेरे दिल में उतरती चली गई मैं जान ही ना सका. दिल के आईने पर पड़ी धूल झड़ गई और फिर जो चेहरा उसमें से उभरा वह तुम्हारा था सिर्फ तुम्हारा.”

यकीन जानो बीते दिनों में तुम्हारी कमी ने मुझे तोड़ कर रख दिया है, मैं अपना आप अधूरा महसूस करने लगा हूं.”

कुछ कहो मीरा तुम्हारी यह खामोशी मैं सह नहीं पा रहा हूं?”

मीरा दोनों हाथों में अपना चेहरा छिपा कर फफ़क उठी”

वैभव ने उसके चेहरे पर से हाथ हटाएं,उसकी आँखें बंद थीं और आंसू गालों पर बह रहे थे, वैभव ने बिना कुछ बोले उसे अपने सीने से लगा लिया.उसकी आँखें भी भीग चुकी थीं”

तमाम शिकवे शिकायतें उस पल में रेत के महल समान ढह गए.

“वैभव सिर्फ तुम्हारा है और तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम के आगे मैं यदि अपनी जिंदगी भी हार जाऊं तो वह भी कम होगा. हमारा यह पति पत्नी का रिश्ता है संयम, समर्पण, विश्वास और अथाह प्रेम का. यह आत्मिक संबंध है हमारी चाहतों का जो अनंत है, अढ्भुत है, अविस्मरणीय हैं. जीवन पगडंडी पर सदा साथ चलने वाले हमसफर होते हैं, जो एक दूजे के बिना अधूरे कहलाते हैं और मेरा मुझे तुम्हारा साथ हर हाल में चाहिए.”

“ना जाने कितने अरसे बाद मीरा का चेहरा खुशी से खिला था.ये उसकी प्रेम तपस्या का ही फल था की आज अपने वैभव की आंखों में वह खुद को देख पा रही थी.आज उसकी चाहत जीत गई थी.”

“तभी दोनों बच्चें “मम्मी,मम्मी” पुकारते हुए उसके पास भागे आए तो मीरा अपने वर्तमान में लौट आई.”

“बच्चों की मासूमियत भरी बातों का पिटारा खत्म नहीं हो रहा था और मीरा दोनों को गोद में लेकर बारी बारी से हंसते हुए उनकी बातें सुन रही थी तभी उसकी नज़र सामने टंगी तस्वीर पर गई जिसमें वैभव उसका हाथ थामे हुए था और उसका ये साथ अब जीवन भर का था.”

समाप्त

 

चाहत (भाग 5)

चाहत (भाग 5 ) – जगनीत टंडन : hindi stories with moral

 

3 thoughts on “चाहत (अंतिम भाग ) – : hindi stories with moral”

  1. बहुत ही अच्छी कहानी, अंत भी सुखद है, कुल मिलकर परिपूर्ण है. धन्यवाद !

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