चाहत – कुमुद मोहन

रिचा और अनुज एक ही बस में आते जाते थे!दोनों एक दूसरे के प्रति खिंचाव महसूस करते पर एक दूजे की पहल का इंतज़ार करते करते मौन ही रह गए!

ये सफर कब चाहत में तब्दील हो गया दोनों को पता ही न चला!

एक दिन अनुज अपने प्यार का इज़हार कर चिट्ठी बनाकर लाया कि उसे रिचा को पकड़ा देगा क्यूँकि अगले दिन उसे मिलिट्री की ट्रेनिंग में चले जाना था!मौके की बात थी कि रिचा बीमार होने की वजह उस दिन नहीं आ सकी!अनुज ने वो चिट्ठी बस के कंडक्टर को रिचा को देने के लिए दे दी।

अगले दिन सुबह रिचा को चिट्ठी मिली तो अनुज जा चुका था!रिचा के पास न अनुज के घर न ट्रेनिंग की जगह का पता था!क्या जवाब देती?

पिता के मरने के बाद पहली बार किसी के दो प्यार के बोल मिले थे ,किसी की चाहत मिली थी!!वो  तो सौतेली माँ और सौतेले भाई के जहर भरे ताने सुन-सुनकर कान प्यार के दो बोलों के लिए तरसते तसरते बड़ी हुई थी!अनुज की चिट्ठी पढ़कर उसे जैसे जीने का मकसद मिल गया था पर उसका पता ठिकाना न मिलने पर उसे लगा जैसे उसके नसीब में किसी का प्यार लिखा ही नहीं!

समय बीता रिचा के मर्ज़ी के बिना  उसकी सौतेली माँ और भाई ने उसकी शादी समीर से कर दी गई।

समीर की पोस्टिंग अमृतसर बाघा बार्डर पर थी,वो रिचा और अपने माता-पिता के साथ अमृतसर आ गया।

रिचा सुघड़ तो थी ही,जल्दी उसने घर को सजा संवार कर सेट कर दिया।समीर के मां-बाप का बहुत ध्यान रखती थी इसलिए समीर के माता-पिता रिचा को बहुत प्यार करते थे, उसे बहू नहीं बेटी मानते थे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 बरनाली  – पूजा मनोज अग्रवाल

 

समीर”इन्ट्रोवर्ट टाइप”था ,हर वक्त गुमसुम रहता ,कम बोलता ,रिचा से भी खिचा खिंचा सा रहता।समीर की माँ ने बताया फ़ौज में जाने से पहले एक लड़की ने समीर से प्यार का नाटक किया और इसे छोड़ कर चली गई,तभी से यह ऐसा हो गया है।वह उस लड़की और उसकी बेवफ़ाई भूल नहीं सका था!

   रिचा भी अनुज को भूल नहीं पाई थी इसलिए उसने तो पहले ही समीर से कोई अपेक्षा रखी ही नहीं थी पर अपना पत्नीव्रत धर्म पूरी ईमानदारी से निभा रही थी,इसलिए उसे एडजस्टमेंट में बहुत परेशानी नहीं हुई।




इस बीच रिचा एक प्यारी सी बच्ची की माँ बन गई , रिचा ने उसका नाम अनु रखा,समय बीतता रहा,अनु चार साल की हो गई,स्कूल जाने लगी,बिल्कुल रिचा की कार्बन कॉपी,वैसी ही सुन्दर,भोली भाली।

एक दिन शाम को समीर का ऑफ़िस से फ़ोन आया कि डिनर पर उसका एक “बैच मेट” आएगा,रिचा खाना बनवा ले।

शाम को घंटी बजी,रिचा ने जैसे ही दरवाज़ा खोला,आने वाले को देखते ही उसका चेहरा फक् पड़ गया,उसने खुद को संभाला,हलो कहकर उसका स्वागत किया,समीर ने बताया ये अनुज है,एन.डी.ए.में कुछ दिन मेरा रूम पार्टनर भी रहा था,अब यहीं पोस्टिंग पर आ गया है।

अनुज भी एकाएक रिचा को देखकर अचंभित रह गया।  रिचा ने अनुज की तरफ़ देखा आज उन आंखों में चमक की जगह गमगीनी थी।

खाना खाते हुए रिचा ने अनुज से पूछा”आपकी फ़ैमिली?

अनुज के जवाब देने से पहले ही समीर बोल उठा”इस की बेवकूफ़ी सुनोगी तो हंसोगी,ये महाशय एक लड़की को कई महीनों तक बस में साथ बैठे देखते रहे और दिल दे बैठे , अपनी चाहत और  प्यार का इज़हार किया भी तो तब जब वहाँ से चल दिए,उसके लिए चिट्ठी बस के कंडक्टर को दे आए थे ,इसे तो यह भी नहीं पता कि वो चिट्ठी इसकी महबूबा तक पहुँची भी या नहीं।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खिलती कली – दीप्ति सिंह

अरे!इसे तो उसका नाम तक नहीं पता। ज़मीन आसमान एक कर दिए इसने उसे ढूंढने के लिए, पर कहीं पता नहीं चला”।उसके इंतज़ार में शादी ना करने की कसम खाऐ बैठा है। मेरे तो कान पक गए थे  हर वक्त उस लड़की की तारीफ़ें सुनते सुनते!

रिचा को बहुत आश्चर्य हो रहा था हमेशा चुप रहने वाला समीर आज एकाएक इतना वाचाल कैसे हो गया?

उधर अनुज की आंखों में एक प्रश्न था,क्या रिचा को चिट्ठी मिली थी या नहीं?

तभी अनु भागती हुई रिचा के पास आई,अनुज ने “हलो “कहकर उसका नाम पूछा,अनु का नाम जानकर अनुज को अपनी आँखों में आए प्रश्न और अपनी उस चिट्ठी का उत्तर मिल गया जो वो रिचा के नाम लिखकर कंडक्टर को दे आया था।अनुज बेचैन हो उठा।रिचा भी असहज महसूस कर रही थी।




तभी समीर बोला”अरे रिचा!तुम लोग भी तो  आगरा से पहले चंडीगढ़ रहते थे,ये भी चंडीगढ़ का है, क्या कभी तुम दोनों ने एक दूसरे को,कहीं, माॅल या मार्केट में कभी नहीं देखा”

फिर खुद ही बोला” यार अनुज! अच्छा ही हुआ कि तूने रिचा को पहले नहीं देखा,वरना मुझसे पहले तू ही इसे उड़ा ले जाता “हा हा हा,और हंस पड़ा।रिचा को आज समीर का बिहेवियर कुछ बदला बदला सा लग रहा था, कहीं वह हमारे बारे में जान तो नहीं गया,फिर सोचा आज बहुत दिनों बाद किसी के साथ बैठा है शायद इसलिए मूड ठीक है।

वीक ऐंड पर अनुज अपनी माँ और सामान लेकर आ गया।उसे भी समीर के घर के पास ही घर मिल गया था।

एक दिन रिचा ने अनुज और उसकी माँ को खाने पर बुलाया,बातों बातों में अनुज की माँ समीर की माँ से बोली “बहन जी!काश ऐसी ही बहू हमें भी मिल जाती तो मै अनुज की तरफ़ से बेफ़िक्र हो जाती,पर क्या करें ये तो शादी ना करने की कसम खाऐ बैठा है!”रिचा सर झुकाए सुनती रही,उसकी आंखें भर आई।

अनुज जब भी समीर के घर आता,अनु के साथ कभी लूडो,कभी क्रिकेट खेलता,कभी सायकिल चलाना सिखाता,रिचा उसका सामना कम से कम करने की कोशिश करती।समीर अनु को उतना टाइम नहीं देता था जितना अनुज देने लगा था,अनु उसके साथ बहुत खुश रहती,कभी कभी कहती”अंकल!हमारे नाम “सेम टू सेम ” हैं ना?रिचा सकपका जाती।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बेटी….!! – विनोद सिन्हा

एक दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी,समीर ऑफ़िस से लौटा नहीं था,समीर के माता-पिता और रिचा परेशान थे,उसका फ़ोन भी नहीं लग रहा था,हमेशा जब उसे देर होती वो ख़बर जरूर करता,रिचा ने अनुज को फ़ोन किया कि वो पता लगाये,थोड़ी देर बाद अनुज अपनी कार लेकर आया, उसने बताया समीर की गाड़ी पर आतंकी हमला हुआ है, धबराने की बात नहीं है,वो रिचा और उसके माता-पिता को लेकर आर्मी हॉस्पिटल आया,समीर बुरी तरह से घायल हुआ था ।





समीर ने डाक्टरों से मिल कर जल्दी से जल्दी ट्रीटमेंट के लिए कहा,खून बहुत बह गया था इसलिए डाक्टर ने खून देने को कहा, इत्तेफ़ाक़ से अनुज का ब्लड समीर से मैंच कर गया,अनुज ने कहा “जितना चाहो ब्लड ले लो डाक्टर मगर मेरे दोस्त को बचा लो”।

उसने समीर के पूरे परिवार को संभाला।रात रात भर वो समीर के पास रहा।

डाक्टर ने बताया ख़तराअभी टला नहीं है एक दो दिन वाॅच करना होगा,।

तीसरे दिन समीर ने रिचा को बुलाया उसका हाथ पकड़कर कहा”माँ पापा और अनु का ध्यान रखना”,रिचा  रो रो कर कह रही थी तुम ठीक हो जाओ, हम दोनों उनका ध्यान रख लेगें,अनुज से उसका रोना देखा नहीं गया।

समीर ने रिचा का हाथ पकड़कर अनुज के हाथों में देते हुए कहा “मेरे पास टाइम बहुत कम है,रिचा जैसी बीवी किस्मत वालों को मिलती है,मुझे माफ़ करना रिचा! मैंने अनुज की चिट्ठी पढ़ ली थी”।

“अनुज !मेरे दोस्त तुम्हारा प्यार तुम्हें लौटा रहा हूँ।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

नीला लिफाफा –  डाॅ उर्मिला  सिन्हा : Moral stories in hindi

रिचा और अनुज कहते रह गए “तुम्हें कुछ नहीं होगा,हमें कुछ नहीं चाहिए,बस तुम ठीक हो जाओ।

पर तब तक समीर सब को छोड़ कर जा चुका था।

रिचा और अनुज एक दूसरे को चाहते जरूर थे पर समीर को खोकर कभी नहीं!उनकी चा।त स्वार्थवश कभी नहीं थी!

 

समीर की डैथ को महीना बीत गया,रिचा ने समीर के माता-पिता और अनु को लेकर आगरा जाने का तय किया।

तभी समीर के माता-पिता अनुज की माँ के पास रिचा का रिश्ता लेकर आ गए,पर रिचा ने कहा वो उन दोनों को इस बुढ़ापे में छोड़कर कहीं नहीं जाऐगी।उन्होंने रिचा को समीर का वास्ता दिया,तब रिचा ने कहा कि वो एक शर्त पर शादी के लिए राजी होगी,अगर वो दोनों भी उनके साथ रहेंगे।

अनुज की माँ और अनुज को कहाँ एतराज़ हो सकता था।

दोस्तों!

समीर, रिचा और अनुज के इस रिश्ते , उनकी चाहत को को मैं क्या नाम दूँ, समझ नहीं आ रहा, आप ही बताएं?

धन्यवाद

कुमुद मोहन

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!