चाभियों का गुच्छा – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ ये क्या कर रही है सुनंदा बहू… अभी आते ही घर की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की बड़ी जल्दी है तुम्हें जो अपनी तिजोरी की चाभियों का गुच्छा राशि को सौंप रही है।” चाची सास की आवाज़ सुन सुनंदा जी सकपका गई

“ क्या हुआ चाची जी हमारे घर की ही तो परम्परा निभा रही हूँ…आपने भी तो अपनी बहू को सौंपी ही थी ना फिर सासु माँ ने भी मुझे अपने कमर से ये चाँदी का गुच्छा निकाल कर सौंप दिया था तो अब मेरी बारी….बहू लाने के साथ यही ख़्वाहिश तो थी चाची जी की जब बहू घर आ जाएगी तो मैं भी उसे ये जड़ाऊ चाँदी की चाभियों का गुच्छा उसे थमा सकूँ पर आप मना क्यों कर रही है ।”सुनंदा जी आश्चर्य से पूछी

“ ये सब बातें बाद में करेंगे सुनंदा बहू पहले नई बहू के सब रस्म हो गए हो तो उसे कमरे में आराम करने भिजवा कर तू मेरे साथ आ कर बैठ ।” चाची सास ने कहा

 घूंघट में राशि को भी समझ नहीं आ रहा था ये चाभियों के गुच्छे पर सासु माँ को क्यों मना किया जा रहा … चलो वैसे भी मुझे कौन सा ये गुच्छा कमर में लटका कर घुमने का कोई शौक़ है।

सुनंदा जी ने राशि की चचेरी जेठानी और ननदों के साथ कमरे में भेज दिया और खुद चाची सास के साथ चल दी।

“ क्या बात है चाची जी आपने मुझे ऐसे मना क्यों कर दिया .. बहू क्या सोच रही होगी ?” सुनंदा जी ने कहा

“ दिल छोटा मत कर सुनंदा बहू…वक्त पर सब ठीक हो जाएगा पर जो तुम्हें आज ना रोकती तो ज़िन्दगी भर तुम्हें बहुत पछतावा होता।” एक लंबी साँस भरते चाची सास ने कहा जैसे मानो कोई बात याद आ गई हो और वो उसे भुलाना चाहती हो

“ बताइए ना चाची जी आपने मुझे मना क्यों कर दिया?” सुनंदा जी ने फिर पूछा

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“ सुनंदा बहू तुम तो मीनू को जानती ही हो…तुम्हारी देवरानी ..जब मैं भी उसे ब्याह बाद घर लाई सबकी तरह मेरी भी ख़्वाहिश थी बहू को अपने हाथों इस घर की ज़िम्मेदारी देकर उसे इस घर से जोड़ कर ये एहसास करवाऊँ ये सब तुम्हारा ही है … पर मैं जैसा सोच रही थी वैसा कुछ ना हुआ… मीनू ने फिर मुझे ही सब चीज को तरसाना शुरू कर दिया…..

हमारी जिस अलमारी में गहने रखे होते उसकी चाभी भी उसी के पास थी… मैं अपने गहने भी माँगूँ तो कहती अब आपकी उम्र थोड़ी रह गई है वो भारी गहने पहने.. हल्क़े पहना कीजिए… बहू तेरे चाचा की बीमारी में पैसे बहुत लग गए फिर जब तेरे चाचा ससुर के लिए फल और दवाइयों की बात आती वो आना कानी करने लगी …

मेरा बेटा तो साफ कहता घर की बागडोर मीनू के हाथ है इसमें मैं कर ही क्या सकता हूँ… मायके वालों पर जम कर खर्च करती पर हमारे लिए पूरी हिसाब किताब तैयार रखती…. तब एहसास हुआ हम ये गलत ख़्वाहिश पाल कर बैठ जाते है कि बहू को आते ज़िम्मेदारी सौंप कर उसे इस घर का हिस्सा समझें…

.बहू के ज़रूर चाभियों का गुच्छा थमाना चाहिए पर वक्त आने पर जब वो भी हमारे साथ रच बस जाए और हमें भी यक़ीन हो जाए अब बहू हमारी अपनी है … और ज़िम्मेदारी उठाने लायक़ है….नई लड़की इतना सब देख कर ना तो ज़िम्मेदारी सही से सँभाल पाती ना ही उसे ये सब करने की आदत होती ऐसे में वो मनमानी करने लगती… बस अपने दिन याद आ गए इसलिए तुम्हें मना कर दी।” चाची सास ने एक आह भरते हुए कहा

 “ समझ गई चाची जी… हम सास बनते ख़ुशी ख़ुशी अपनी ख्वाहिश नई बहू से पूरी करने के चक्कर में जल्दबाज़ी कर बैठते हैं पर हमें उसे पहले नई शादीशुदा ज़िंदगी को अच्छे से समझने का मौक़ा देना चाहिए…धीरे धीरे ज़िम्मेदारियाँ देनी चाहिए और जब हमें लगे कि अब बहू सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम हैं तब हमें अपनी चाभियों का गुच्छा उसके हाथ में ख़ुशी ख़ुशी सौंप देना चाहिए ।” सुनंदा जी ने कहा

“ हाँ बहू सही कहा तुमने…।” चाची सास कहते हुए उठ गई

सुनंदा जी समझ गई सास बनते ही बहू से अपनी ख्वाहिशों को पूरा करवाने में कभी जल्दबाज़ी नहीं करना चाहिए…. नाज़ुक पौधे को पहले ज़मीन में जमने देना चाहिए जब पकड़ मज़बूत हो तो ही वो ज़िम्मेदारी उठाने लायक बन सकता है ।

दोस्तों कई सास आज भी बहू के आते सोचने लगती बहू आ गई अब वो सब करेंगी पर ये सोच शायद मेरी नज़र में सही नहीं है.. कोई भी नई लड़की आपके घर के ना तो पूरे रीति रिवाज जानती ना नियम क़ानून…उसे समझने और जानने में वक्त लगता है… ऐसे में सबको थोड़ा सोच समझ कर ही काम करना चाहिए … ना की जल्दबाज़ी में अपनी ख़्वाहिश पूरी करने के चक्कर में बोझ डाल देना चाहिए ।

धन्यवाद

लेखिका : रश्मि प्रकाश

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