सुहानी और अंकुर कार से जयपुर जा रहे थे। रास्ते में एक ढाबे में चायपानी के लिए रुके… फिर जल्दी जल्दी पेमेंट करके गंतव्य की ओर बढ़ने लगे…. वहाँ सुहानी की बहन की गोदभराई का कार्यक्रम होना था।
“अरे सुनो, गाड़ी इतनी तेज मत चलाओ। दिल एकदम धकधक करने लगता है… थोड़ा लेट ही होंगे और क्या।”
“सुबह इतनी जल्दबाज़ी करने पर भी हमलोग लेट हो ही गए… चलो समय पर किसी तरह पहुँच ही जाएंगे।“
इसी तरह मस्ती में दोनों हँसते बोलते चले जा रहे थे। अचानक उसका हाथ अपने गले पर चला गया… उसका नया कुंदन का नेकलेस नदारद था…वो एकदम ही घबड़ा गई,”अरे अंकुर, कार रोको…देखो ! मेरा नया नेकलेस मेरे गले में नही है।”
वो भी बुरी तरह चौंक गया। सचमुच नेकलेस गायब था। अब खिसियाने की बारी उसकी थी,”सुबह कितना तो समझाया था…रास्ते में मत पहनो पर नहीं… हम तो पहनेंगे ही।”
“देखो अंकुर, इस समय गुस्सा मत करो। सुबह लेट हो रहे थे तो पहन लिया था। सोचा था समय पर पहुँचने पर मौका नही मिलेगा….पहले कार में देख लो…थोड़ा कार बैक करो और उसी ढ़ाबे तक चलो…वहीं गिरा होगा।”
“अच्छा, बड़ा नेक विचार है। उस भीडभाड़ वाले ढ़ाबे पर कोई आपका नेकलेस लिए खड़ा होगा और आपको दे देगा। अरे मैडम…किस दुनिया में जी रही हो।”
“प्लीज़, मेरी खातिर एक बार देख लेने में क्या हर्ज़ है।”
बहुत बेमन से वो गाड़ी मोड़ कर दस मील दूर उस ढ़ाबे पर ले गया। सुहानी दौड़ कर उस टेबुल तक गई और वहाँ मौजूद लोगों से पूछताछ करके रोने लगी। तभी वहाँ काम करने वाला स्टाफ आया और जेब से नेकलेस निकाल कर दिखाया,”यही है ना।’
उसने उसके हाथ से झपट कर छीन लिया और आँखों से लगा लिया।
वहाँ बैठे लोग इकठ्ठा हो गए। अंकुर से नही रहा गया,”भाई, तुम पर बहुत आश्चर्य हो रहा है… इतनी कीमती चीज़ तुमने लौटा दी…सच..विश्वास ही नही हो रहा।”
“सर आप ठीक सोच रहे हैं। आपके जाने पर मैं टेबुल साफ़ करने गया था। वहाँ ये पड़ा था…मैने उठा कर जेब के हवाले किया… और बहुत खुश था पर…।”
“हाँ तो पर क्या?”
“मैंनें सोचा ..इधर तो किसी की नज़र नही पड़ी थी पर उस ऊपर वाले के सीसीटीवी कैमरे से स्वयं को कैसे बचाऊँगा?”
नीरजा कृष्णा
पटना