आत्म सम्मान – रत्ना पांडे : Moral Stories in Hindi

रोज-रोज अपने आत्म सम्मान पर चोट सहन करती उर्मिला अपने मन में सोच रही थी कि आख़िर क्यों वह अपने आत्म सम्मान को प्रतिदिन तार-तार होने देती है? क्यों बात-बात पर ताने सुनती है? क्या इस परिवार के लोगों को सम्मान देना सिर्फ़ उसका कर्तव्य है? क्या उनका कर्तव्य कुछ नहीं जो उसे उसके परिवार … Read more

तिरस्कार कब तक – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

सुनैना को लगा कब तक तिरस्कर, अपमान और बेज्जती, सहन करनी पड़ेगी!— आखिर मेरा कसूर क्या है? मैंने अपने बच्चे को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया और इतने संघर्ष के बाद भी उसकी  पसंद की शादी की जब तक पति जिंदा थे अपने बेटे आकाश को अच्छी परवरिश दी बेटे की नौकरी भी अच्छी लग … Read more

उस जमाने की लड़कियां – रवीन्द्र कान्त त्यागी

सर्दियों का मौसम और गुनगुनी धूंप में बैठकर मूंफली कुड्कूड़ाने का मजा एक फोन ने खराब कर दिया था। शहर के एक बड़े ट्रांसपोर्टर मेरे एक अनन्य मित्र थे। उनका फोन आया कि गुड़गांव (तब यही नाम था) से उनका ट्रक चोरी हो गया है। लछमन यादव नाम का ड्राइवर अभी जॉब पर रखा था। … Read more

घूंघट के पट खोल – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

जब से नए पड़ोसी आए थे लोगों की जिंदगी में झांकने की मेरी दिलचस्पी को जैसे नए पंख लग गए थे।वैसे तो कुल पांच जने थे उनके घर में लेकिन चार कहना ज्यादा उचित होगा क्योंकि घर की लक्ष्मी  मतलब उनके घर की बहू लक्ष्मी अदिति  हमेशा अदृश्य अवस्था में ही रहती थी।नहीं नहीं नई … Read more

“तिरस्कार कब तक”? – प्रीती श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

समीरा का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वह अपने माता-पिता की पहली संतान थी, लेकिन बेटी होने के कारण उसका स्वागत खुशी से नहीं हुआ। जब वो पैदा हुई, दादी ने कहा, “लड़की हुई है? हाय राम! बेटा होता तो वंश चलता।” माँ की आँखों में भी एक अजीब सा खालीपन था, जैसे … Read more

करवा चौथ के बहाने – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

सुनिए देखिए जरा मानसी ने पति रमेश को अपने गले में पहना हार दिखाते हुए बोला कैसा लग रहा। अच्छा है, पति ने उत्तर दिया मगर तुम इसे कहां से उठा लाई, अरेऽऽ चोर उचक्का समझा क्या मुझे ? उठाकर नहीं लाई सुनार से किश्तों में खरीदा है बस दस हजार रुपए महीने की किश्त … Read more

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगीं – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

आज फिर पीहू रोते रोते बड़ी मुशकिल से सोई। मानसी भी सोना चाहती थी, लेकिन नींद भी तो आए। करवटें बदलते बदलते जब बदन दुखने लग गया तो उठ खड़ी हुई। रसोई में जाकर पानी पिया। समय देखा तो रात का एक बज चुका था। हर तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था, लेकिन मानसी के अंदर … Read more

“एक निर्णय – नई दिशा” – सुरेश कुमार गौरव : Moral Stories in Hindi

प्रस्तावना: वो जून की दोपहर थी। सीमित साधनों में जी रही सीमा अपनी माँ की पुरानी साड़ी में बैठी थी — चुपचाप। आँखों में कोई सपना नहीं, बस चिंता, तनाव और टूटन। उसका विवाह तय हो चुका था — एक नौकरीपेशा लड़के से। पर उसकी माँ आज रो रही थी। “लड़के के पिता ने आज … Read more

“दीपशिखा – एक बेटी का उजास” – सुरेश कुमार गौरव : Moral Stories in Hindi

अध्याय 1: जन्म एक दीप का सहादरा गांव की वह सुबह कुछ अलग थी। हल्की गुलाबी धूप खेतों पर पड़ी थी और बासमती की फसलें बयार में झूम रही थीं। उसी सुबह रघुनाथ बाबू के घर बेटी ने जन्म लिया। उसकी माँ सरला देवी ने जैसे ही नवजात को देखा, उसका नाम “शिखा” रखने की … Read more

“जो खुद को नहीं छोड़ सकी” – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

रागिनी जब पैदा हुई थी, उसकी माँ उसे छाती से लगाकर केवल तीन महीने ही जी पाई थी। माँ की मौत के बाद उसके पापा ने उसे जैसे-तैसे बड़ा किया। बचपन कड़की में बीता, लेकिन रागिनी की आँखों में कभी ना हौसले की, ना उम्मीद की कमी हुई।  वो पढ़ना चाहती थी। दिन में सिलाई-कढ़ाई … Read more

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