सदा सुहागन – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अम्मा मनिहारिन आई है ,वो कुछ बोलती की शहर से आई बहुत ने कहा व्हाट्स मनिहारिन ये क्या क्या शब्द आप सब बोलती रहती हैं मेरी तो कुछ समझ में नही आता। दलान में बैठी दादी सास ने मुंह बिचकाया हुं ये क्या जाने रस्मों रिवाज पूजा पाठ तीज त्योहार।इसे तो सिर्फ़ नौकरी करना और … Read more

तोहफा – डॉ० मनीषा भारद्वाज :

धूप की सुनहरी किरणें श्रीवास्तव जी के छोटे से ड्राइंग रूम में चाय की प्यालियों पर पड़ रही थीं। हवा में गुलाब जल और ताज़ा कटे हुए केक की मिठास मिली हुई थी। आज प्रिया का इक्कीसवाँ जन्मदिन था। उसकी माँ, सुधा जी, परदे को बार-बार समेटतीं, बाहर झाँकतीं। “अरे वाह! फूफी जी आ गईं! … Read more

घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है -करुणा मालिक :

Moral Stories in Hindi सुरभि की दादी ! इस साल झूला नहीं डलवाया क्या ? हाय क्यूँ ना डलवाती भला ? तुमने ध्यान ना दिया ….रोज़ तो मोहल्ले के बच्चे शाम को झूलने आते हैं, मेला सा लग जाता है । हाँ…. हर साल सावन शुरू होने से दो-चार दिन पहले डलवा देती थी…. अबकि … Read more

घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अरे मम्मी आप क्यों झाड़ू लगा रही हो भाभी कहां गई ।घर में घुसते ही निभि ने मां से पूछा ,अरे बेटा आ गई तू गले से बेटी को लगाते हुए रेखा जी ने कहा। अरे क्या बताएं ।अरे ये आपकी उम्र है काम करने की आप क्यों झाड़ू लगा रही थी ।अरे काम वाली … Read more

घर दीवार से नहीं परिवार से बनते हैं – मधु वशिष्ठ

घर दीवार से नहीं परिवार से बनते हैं सुमित्रा गुस्से में वर्मा जी से चिल्ला कर बोली। बंटी का दोस्त और  दीप्ति की सहेलियां भी घर से जा रही थी और दीप्ति उतरा हुआ मुंह लेकर खाने की प्लेटें सिंक में डाल रही थी।        आइऐ आपको वर्मा जी के परिवार के बारे में बताते हैं। … Read more

दान – पुष्पा कुमारी “पुष्प” : Moral Stories in Hindi

“आप मुझे पाँच रुपए उधार दे सकती हैं क्या?” बस का टिकट पंद्रह रूपए का था और उस लड़के के हाथ में उस इकलौते दस के नोट के अलावा उसके बटुए से एक पाँच सौ का नोट भी झांँक रहा था। इधर बस कंडक्टर उसे पाँच रूपए के बदले पाँच सौ का छुट्टा देने को … Read more

#घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – सरिता कुमारी : Moral Stories in Hindi

परिवार के जिस प्रारूप की परिकल्पना की थी कभी आज वो पूर्णतः प्राप्त हो गई है । वर्तमान समय में यह बड़ा ही दुर्लभ कल्पना का तो हकीकत बनना नामुमकिन ही था लेकिन मैं नाउम्मीद नहीं हुई और हमेशा प्रयत्नशील रही । यह काम बहुत कठिन था । हिंसा भड़काना या दिलों में नफ़रत पैदा … Read more

“स्वाति मेरा टिफिन तैयार है क्या”- एकता बिश्नोई : Moral Stories in Hindi

“माँ मेरा नाश्ता लगा दो, मुझे कॉलेज को देर हो रही है।”“मम्मी मेरी यूनिफॉर्म कहाँ रख दी आपने? मिल नहीं रही है  ढूंँढ कर दे दो जरा …।”“बहू एक गिलास पानी देना…दवा खानी है मुझे।”ये उसकी दिनचर्या के वे शब्द  थे जो स्वाति रोज सुनती थी पर पलट कर इनका कोई उत्तर नहीं दे पाती … Read more

संकीर्ण मनोवृत्ति का ज़हर – रत्नापांडे

मिश्रा जी का परिवार तीन पीढ़ियों के इर्द-गिर्द घूमता, रिश्तों की बारीकियों को समझता हुआ एक सामान्य परिवार था। जिसमें सब कुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा आम तौर पर होता है। लड़ना-झगड़ना, प्यार सब कुछ था। सास-बहू के बीच तकरार भी वैसी ही थी जैसी अधिकांश परिवारों में रोजमर्रा की जिंदगी में होती रहती … Read more

सुखमय जीवन – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू : Moral Stories in Hindi

——————– खाना परोस कर टाठी पति की ओर सरकाती हुई बेना  हांकते हुए बोली सुनिये ना अब तो बिट्टू की नौकरी भी लग गई तो अब  बिआह करे में काहे की देर ।अरे देख लो कोई सुघड़ लड़की और उसके हाथ पीले कर दो। आखिर कब तक अपने से रोटी बनाई खाई। अधिकतर  तो होटले … Read more

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