Short Story in Hindi
औलाद का दर्द
“यह क्या बात हुई भैया, आपने पहले कहा था कि आप 15 तारीख को आकर मम्मी और पापा को अपने साथ ले जाएंगे। अब आप दो दिन पहले कह रहे हैं कि आप नहीं आएंगे।” “अरे, मैंने क्या ज़िंदगी भर का इनका ठेका लेकर रखा है? इनकी वजह से हम कहीं घूमने भी नहीं जा … Read more
परिवार – खुशी :
Moral Stories in Hindi जगन्नाथ जी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिनकी कपड़े की मिल थी।घर में दो बेटे विनय और गौरव प्यारी सी बेटी मेघा और पत्नी पूजा थे।सुखी परिवार था। जगन्नाथ जी बाहर का देखते और उनकी मां जानकी देवी की मृत्य के बाद घर की सारी जिम्मेदारी पूजा पर थी।जब तक सास … Read more
रेशम की डोर – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi
मम्मी जी ….आज मेरे साथ आप चलेंगी बाजार ….? मुझे राखी लेना है….हम लोग दो चार दुकान घूम-घूम के पसंद कर के लेंगे… इनके साथ जाने से तो बस जल्दी करो , जल्दी करो ही रट लगाए रहते हैं अनन्या ने अपनी सासू मां किरण जी से कहा…। हां बहू …दोपहर में चलेंगे , उस … Read more
रस और सच का पेड़ – डॉ मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi
एक शाम, पुराने आम के पेड़ की छाया में नाना पंडित जगन्नाथ शर्मा अपनी दो नातिनों मनू और तनू के साथ लूडो खेल रहे हैं। सुनहरी धूप पत्तों से छनकर बिखर रही है। तनू:(एक पासा फेंकते हुए) नाना, ये आम का पेड़ कितना पुराना है? इतने सारे फल लगते हैं! मनू:(मुस्कुराते हुए) हाँ नाना! पर … Read more
गँवई ज्ञान – डॉ मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi
सूरज ढलने को था। आम के बगीचे की छाँव में, धूल भरी गलियों से उठती गरमाहट कुछ कम हुई थी। मैं, एक शहरी लेखक, पुराने कुएँ के पास चबूतरे पर बैठा, कॉपी पर कुछ ठीक कर रहा था। तभी आवाज़ आई: “साब! ये कागज-कलम लेके क्या खोजते रहते हो? ज़मीन में गड़ा मिलता है क्या?” … Read more
दीवार – खुशी : Moral Stories in Hindi
नमिता जी दो बेटों नितिन और निलेश की मां थी एक बेटी आराधना जिसकी शादी की जिम्मेदारी से वो मुक्त हो चुकी थी।पति राजेश जी नाक की सीध में चलने वाले व्यक्ति थे।सुबह दफ्तर और दफ्तर से घर यार दोस्त भी नाम मात्र के थे।इसलिए पूरा निजाम नमिता के पास था।नितिन मल्टीनेशनल कंपनी में काम … Read more
“खुशी मिली इतनी की मन में ना समाये – सुनीता मौर्या “सुप्रिया” :
Moral Stories in Hindi “मम्मी…मम्मी…मम्मी जीईईई…कहां हो आप?” दस साल का पल्लव खुशी से अपनी मां को पुकारता हुआ घर मे दाखिल हुआ। हाथ में सूखे कपड़ों का ढेर लिये सीढियों से उतरती मैथली झुंझलाते हुए पूछती है,”क्या हुआ जो इतना बेसब्रा हुआ जा रहा है, छत पर गई थी सूखे कपड़े उठाने?” पल्लव हाथ … Read more
अनकही गंध – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi
सुबह का सूरज अभी आँखें मल ही रहा था। हवा में कसैली सर्दी और डीजल इंजनों की तीखी गंध घुली हुई थी। छोटे से शहर के स्टेशन पर, प्लेटफॉर्म नंबर दो के पास, करमचंद का चाय का ठेला जैसे सिसकती हुई दुनिया में एक ऊष्मा का केंद्र था। उसके बर्तनों से निकलती भाप, जीवन की … Read more