दूसरी पारी – शिव कुमारी शुक्ला

समीर जी के रिटायरमेंट का समय जैसे -जैसे पास आता जा रहा था उनका उत्साह,जोश भी उतना ही बढ़ता जा रहा था।वे अब अपने लिए जीना चाहते थे।जीवन के एक -एक पल का भरपूर आनंद उठाना चाहते थे।जिन खुशियों की चाहत में पूरा जीवन तरसे उन्हें अब उन्हें दोनों हाथों से समेट लेना चाहते थे। … Read more

छुटकू – बीना शुक्ला अवस्थी

आज चॉदनी का जागती ऑखों से देखा सपना पूर्ण हो गया है। इस कालोनी में फ्लैट लेना उसका बहुत बड़ा सपना था।  आज  सुबह ही उसके फ्लैट की रजिस्ट्री हुई है और वह सीधे यहीं आ गई। उसने हल्के हाथों से उस नन्हें पौधे का सहलाया जो धीरे-धीरे विशालकाय वृक्ष बनने की राह पर अग्रसर … Read more

स्त्री से अपेक्षा – शिव कुमारी शुक्ला

दीपा मात्र छब्बीस की उम्र में छः माह के बेटे को गोद में लिए, वैधव्य की चादर ओढ़,सूनी आंखें लिए पिता की चौखट पर पुनः खड़ी थी। शादी को अभी दो बर्ष भी नहीं हुए थे कि यश मात्र एक माह के बच्चे को उसकी झोली में डाल स्वयं काल का ग्रास बन गया। ऑफिस … Read more

झूठा अहम् – शिव कुमारी शुक्ला

आज सुबह सुबह ही परेश और निशा में फिर खट-पट हो गई।यह खट-पट उनके जीवन का आवश्यक अंग बन गई थी और परेश का पूर्ण प्यार पाने के वावजूद भी समय असमय आने वाले तूफानों ने निशा को तोड़कर रख दिया था। निशा आज तक परेश को अपनी मानसिक स्थिति नहीं समझा सकी थी। उनकी … Read more

दरवाजा ध्यान से बंद करना – श्वेता अग्रवाल

“मम्मा खजला(चावल के पापड़) दो ना।” अंशुल अपनी मम्मा रीमा से कह रहा था। “खजले नहीं है,अंशुल। खत्म हो गए हैं।” “मुझे नहीं पता। मुझे तो खजला खाना है। दादी ने इतने सारे खजले तो दिए थे।” अंशुल जिद करते हुए बोला। “हाँ,दिए तो थे पर दिन में तीन- तीन बार ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब … Read more

भय की लक्ष्मण रेखा – बीना शुक्ला अवस्थी

******************** स्वस्तिका ने तीब्र प्रसव वेदना के बाद आज ऑखें खोली तो उसके वक्ष पर हल्का सा भार था और दो नन्हें नन्हें होंठ उसके वक्ष में कुछ ढूंढ रहे थे। उसके ऑखें खोलते ही नर्स और वंशज के साथ डॉक्टर की ऑखें भी खुशी से चमकने लगीं – ” हमें विश्वास था मिस्टर वंशज … Read more

माता की चौकी -श्वेता अग्रवाल

नेहा घर के दरवाज़े पर खड़ी रमन का इंतजार कर रही थी। जैसे ही रमन ऑफिस से घर आया, वह दौड़ती हुई उसके पास गई और मुस्कुराते हुए बोली “सुनो रमन, इस बार नवरात्रि पर गुरुजी हमारे ही घर रुकेंगे। नौ दिन की माता की चौकी यहीं लगेगी!” यह सुनते ही रमन उत्साह से बोला, … Read more

माता की चौकी – श्वेता अग्रवाल

नेहा घर के दरवाज़े पर खड़ी रमन का इंतजार कर रही थी। जैसे ही रमन ऑफिस से घर आया, वह दौड़ती हुई उसके पास गई और मुस्कुराते हुए बोली “सुनो रमन, इस बार नवरात्रि पर गुरुजी हमारे ही घर रुकेंगे। नौ दिन की माता की चौकी यहीं लगेगी!” यह सुनते ही रमन उत्साह से बोला, … Read more

कॉफी में छुपा प्यार – श्वेता अग्रवाल

“आराध्या, उठ जा बेटा। ले कॉफी पी ले। फिर अपने घाघरे की फिटिंग देख लेना।” माॅं की प्यार भरी आवाज सुनकर आराध्या उठ बैठी और माॅं के हाथ से काफी का मग लेकर काफी पीते पीते अपनी माॅं से बातें करने लगी। कुछ देर तक बेटी की प्यारी बातें सुनने के बाद कुंतल बेचैन होकर … Read more

“काॅंख में छोरा, गाॅंव में ढिंढोरा” – श्वेता अग्रवाल

नीरजा अपनी चचेरी बहन चेरी की शादी में जयपुर आई थी। उसकी शादी के बाद पीहर में यह पहला बड़ा फंक्शन था तो वह इसे लेकर बहुत एक्साइटेड थी। बचपन से ही सजने-संवरने की शौकीन नीरजा अपनी सबसे अच्छी-अच्छी ड्रेसेस छाँट कर लाई थी इस शादी में।आखिर आज मौका भी था और दस्तूर भी। रही-सही … Read more

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