याद – आराधना सेन

नीतू आज बेटी की शादी की तैयारी में जुटी हैं उसे आज मांजी को दवा देना याद न रहा ,मेहमानों से घर भरा हुआ हैं लेकिन किसी को मांजी के कमरे में जाने की कोई इच्छा ही नहीं हैं नन्दे भी सजने संवरने में लगी हैं.  नीतू जल्दी सास के कमरे में गई ,कमरे से … Read more

बहू बनी सहारा – सुनीता माथुर

मां जल्दी से तैयार हो जाओ आपको कार से मंदिर ले चलती हूं आज तो शरद पूर्णिमा है आपको मंदिर जाना अच्छा लगता है ना—– अंजू बोली हां—— साक्षी बहू  लेकिन तुम्हें समर्थ को होमवर्क भी करवाना है,—– वो यू.के.जी में आ गया है दिन भर काम करके भी तुम थक गई होगी और शाम … Read more

बुढ़ापे का सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है । – करुणा मलिक 

आरती! बेटा मैं बाज़ार जा रहा हूँ , तुम सुबह पूछ रही थी ……… कुछ मँगवाना है क्या? हाँ पापा जी ! मम्मी जी की पीने वाली दवाई खत्म हो गई है। अभी डॉ० का पर्चा लाती हूँ । पापा जी! रात में खिचड़ी बना लूँ क्या? कल मिनी का पेपर है थोड़ा पढ़ा दूँगी … Read more

बुढ़ापे का सहारा ना बेटा ना बेटी बल्कि बहू होती है – डोली पाठक

क्या पिताजी आज फिर से बिस्तर गीला कर दिया आपने???  जूही ने अपने ससुर सुखदेव जी से जब ये सवाल किया तो वो शर्मिंदगी से नजरें चुराते हुए बोले- नहीं तो!!!  मैंने तो नहीं किया… मैं तो अभी-अभी बाथरूम से आ रहा हूं…  जूही पिताजी से बिना बहस किए   गीली बिस्तर हटाया साफ बिस्तर बिछा … Read more

बुढ़ापे की लाठी एक बहू ही होती है !! – स्वाती जैंन

नहीं नहीं कामिनी , तुम जितनी सीधी- सादी समझती हो उतनी सीधी नहीं हैं मेरी बहू , अरे बड़ी चंट हैं वह , अब जो घर में रहता हैं वहीं जानता हैं , हम तो सारे भेद जानते हैं उसके मगर अब अगल बगल वालो से क्या बातें करना वह भी अपने ही घर की … Read more

बुढ़ापे का सहारा, बहु! – लक्ष्मी त्यागी 

दीप्ती जी ,बहुत दिनों से बिमार थीं ,उनकी बहु ऋचा ने अपनी सास की खूब सेवा की एक बार को तो उन्हें लग रहा था ,अब वो नहीं बचेंगी किन्तु बहु ने अपने व्यवहार और सेवा से उन्हें बिस्तर से खड़ा कर दिया। उसका व्यवहार और उसकी सेवा देखकर कई बार उनकी आँखों में आंसू … Read more

“बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है“ – सोनिया अग्रवाल 

” अरे वाह बेटा क्या सब्जी बनाई है, बिल्कुल मेरी मां के हाथ के स्वाद की याद आ गई । जब से तुम्हारी सास इस घर में आई तो मां को कभी कोई कार्य ही नहीं करने दिया। आज तुम्हारे हाथ की सब्जी बिल्कुल मां के हाथ के खाने की याद दिला गई।” ससुर रमेश … Read more

बहू ही घर की असली लक्ष्मी है – विमला गुगलानी

       सुजाता के घर किट्टी प्रार्टी चल रही थी। पद्रहं- बीस औरतें सज धज कर बैठी तबोला खेल रही थी। फिर खाना पीना, गाना – बजाना, साड़ियों , जेवरों की बातें और सबसे जरूरी बहुपुराण या फिर बिना मतलब की यहां वहां की बातें, रसोई की , कामवालियों की यानि कि हर घरेलू मुद्दे पर बातें … Read more

सहारा – खुशी

निशा जी दो बेटों निमिष और निलेश और दो बेटियों प्रीति और निशि की मां थी।पति राघव सेल्स टैक्स में ऑफिसर थे अच्छा खाता कमाते थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। निशा अपने बच्चों पर जान छिड़कते थी। सब को लगता ये इतना बेटी बेटी करती हैं तो पता नहीं कल को … Read more

बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है – प्रतिमा श्रीवास्तव

जिस बहू को हमेशा से अपने ही घर में परायों सी जिंदगी गुजारने को मजबूर कर दिया जाता है वही बहू अपनी जिम्मेदारियों को निभाते – निभाते हर कदम पर ये साबित करती है की ये ही उसका परिवार है लेकिन फिर भी उसे वो स्थान या सम्मान कभी नहीं मिलता जो बेटी – बेटा … Read more

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