घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

मानसी मैं तो परेशान हो गया हूं । जब देखो तुम्हारे पापा आए दिन बीमारी का या अकेलेपन का रोना रोते रहते है और तुम भी उनका ख्याल रखने या फिर उनका अकेलेपन बांटने के लिए चली जाती हो। जबकि तुम्हें पता होना चाहिए, एक बेटी का शादी के बाद उसका ससुराल ही सब कुछ … Read more

पश्चाताप का फल – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

‘बिन घरनी घर भूत का डेरा’ आज आलोक को यह कहावत बार – बार याद आ रही थी। उसके बचपन मे एक सब्जी बेचने वाले चाचा मुहल्ले मे सब्जी बेचने आते थे। सुबह सुबह आते और करीब करीब सभी घरो मे सब्जी देते, फिर मंदिर के बाहर बैठकर कभी सत्तू तो कभी मुढ़ी खाते। थोड़ी … Read more

 घर दिवार से नहीं परिवार से बनता है – स्वाती जितेश राठी : Moral Stories in Hindi

कभी कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं।।जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ….. आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है। अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी … Read more

बड़ों का साया – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

राजेश की चीखती आवाज रात के सन्नाटे में घर की दीवारों को भेदकर बाहर अड़ोस-पड़ोस में भी पहुंच रही थी।उसका अनवरत बोलना चालू था। तुमने मेरे घर का सत्यानाश कर दिया।तुम्हें घर चलाना आता ही नहीं। तुम इस लायक नहीं कि ऐसे घर में रह सको। अभी के अभी इन नालायकों के साथ घर से … Read more

चार दीवारी का सच  – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

शहर की गलियों में सिमटा ‘बसंत निवास’ का कमरा नंबर 4 नाममात्र का घर था। दस बाय दस का वह कमरा, जहाँ रामकिशोर, उनकी पत्नी सुशीला, बेटा अमित (16वर्ष) और बेटी छवि ( 12 वर्ष) साँस लेते थे। बाहर से दिखता तंग, टूटा-फूटा… पर अंदर? एक अजीब गर्माहट थी, जैसे प्यार से बुना हुआ कम्बल।   … Read more

सच्चा घर – प्रतिमा पाठक : Moral Stories in Hindi

गाँव के एक कोने में एक पुराना, टूटा-फूटा मकान खड़ा था, जिसकी दीवारें झड़ रही थीं और छत से पानी टपकता था। लोग उसे बुढ़िया का घर कहकर बुलाते थे। उस घर में रहने वाली बुजुर्ग महिला, सावित्री देवी, अकेली थीं। उनका बेटा और बहू शहर जाकर बस चुके थे, और अब साल में कभी-कभी … Read more

घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है -करुणा मालिक :

Moral Stories in Hindi सुरभि की दादी ! इस साल झूला नहीं डलवाया क्या ? हाय क्यूँ ना डलवाती भला ? तुमने ध्यान ना दिया ….रोज़ तो मोहल्ले के बच्चे शाम को झूलने आते हैं, मेला सा लग जाता है । हाँ…. हर साल सावन शुरू होने से दो-चार दिन पहले डलवा देती थी…. अबकि … Read more

जुग जुग जियो बेटा – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अब ये पुरानी आराम कुर्सी भी लेकर जाएंगे क्या आप!! यहीं पड़े रहने दीजिए इसे। इसका एक हत्था भी अलग हो गया है ।इसकी लकड़ी भी बैठते समय चुभने लगी है। नए मकान में नया फर्नीचर रहेगा इस कबाड़ का क्या काम वहां सुजाता जी अपनी पुरानी साड़ियों का गट्ठर बांधते हुए पति कैलाश जी … Read more

घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अरे मम्मी आप क्यों झाड़ू लगा रही हो भाभी कहां गई ।घर में घुसते ही निभि ने मां से पूछा ,अरे बेटा आ गई तू गले से बेटी को लगाते हुए रेखा जी ने कहा। अरे क्या बताएं ।अरे ये आपकी उम्र है काम करने की आप क्यों झाड़ू लगा रही थी ।अरे काम वाली … Read more

घर दीवारों से नहीं, परिवार से बनता है – मीनाक्षी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सुबह की पहली आहट अभी ठीक से हुई भी न थी कि सीमा की आँख खुल गई। अलार्म की हल्की-सी आवाज़ उसके लिए दिन की शुरुआत का संकेत थी, पर जब वह बिस्तर से उठी तो देखा कि उसके सास-ससुर, प्रकाश जी और सुशीला जी, पहले ही जाग चुके थे। सुशीला जी ने हमेशा की … Read more

error: Content is protected !!