कर्मों का फल तो इसी धरती पर मिलता है – मंजू ओमर 

शकुन्तला जी अपने कमरे में बैठीं बैठी आंसू बहा रही थी । अपने कर्मों पर ,जो कुछ उन्होंने अपने परिवार के साथ और खास तौर से अपने पति श्रीनिवास के साथ किया था उसकी गणना कर रही थी।आज खुद जिस स्थिति में है उसका हिसाब किताब लगा रही थी। जिसकी जिम्मेदार वो खुद थी कोई … Read more

कर्मों का फल – रीतू गुप्ता

सविता जी को 5 दिन बाद आज अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी।  जब से  डॉ. छुट्टी का बोल कर गए है तब से वो बहुत उत्साहित थी घर जाने को।  पति सोमेश से कितने दिनों बाद मिलेगी … पोते ऋशव और पोती दिया से खूब बाते करेगी। सविता जी के चेहरे पे आज अलग … Read more

कर्मों का फल – सुनीता माथुर

बहुत समय पहले एक गाँव में हरिदास बहुत ही मेहनती किसान था लेकिन स्वभाव से बहुत आलसी था जब मौसम आता, तो वह बीज तो बो देता, मगर समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई नहीं करता हरिदास के बचपन का दोस्त गोपी भी इसी गांव में रहता था और उसके पास ही उसका खेत था लेकिन—— … Read more

जैसी करनी वैसी भरनी – विमला गुगलानी

“ चाहत बहू, मेरा चशमा ठीक करवा ला बेटा, चार दिन से एक शीशे से पढ़ रही हूं, सिर दर्द होने लगता है”। बल्कि एक चशमा और ही बनवा दो, ताकि एक टूटे तो दूसरा काम आ जाए, सविता ने बड़े प्यार से बहू चाहत से कहा।       ओह माताजी, आपके काम ही खत्म नहीं होते, … Read more

कर्मों का चक्र – विक्रम की कहानी – डॉ. स्नेहा नीलेश निंबालकर

विक्रम एक बड़े शहर में बिज़नेस करता था। शुरूआत में वह मेहनत से काम करता था, लेकिन जैसे-जैसे पैसा और ताक़त उसके हाथ आई, उसकी नीयत बदलने लगी। वह ठेके लेने के लिए रिश्वत देता, नकली कागज़ बनवाता और घटिया माल बेचकर लाखों रुपए कमाता। धीरे-धीरे उसने और भी बुरे काम शुरू कर दिए—लोगों से … Read more

कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है – सोनिया अग्रवाल

आज सुरभि को मायके लौटे हुए पूरे 25 दिन बीत गए थे , मगर अजय को न उसकी परवाह कल थी और न ही आज। कहते है न परवाह भी इंसान उसी की करता है जिसकी उसे जरूरत होती है , उस से प्यार होता है। मगर जब अजय की जिंदगी में पहले से ही … Read more

विश्वास – एम पी सिंह

मां , एक बार कहा न कि मुझे अंदर नहीं जाना मतलब नहीं जाना, तुम अंदर जाओ। राहुल की मां, राहुल को भोले बाबा के मंदिर में आने के लिए बोल रही थीं, पर वो स्कूटी पर ही बैठा रहा और बोला मैं यहीं इंतजार करता हूँ। तभी एक बड़ी सी कार से साधारण से … Read more

कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है। – मधु वशिष्ठ

——————–           बहुत समय बाद भावना को एक सेमिनार के सिलसिले में दिल्ली आना पड़ा। पूरी रात मां के साथ पुरानी यादें ताजा करते रहे। क्योंकि सेमिनार स्थल उनके पुराने घर के पास था तो भावना ने सोचा  कि वह ताई जी और ताऊ जी से मिलकर ही सेमिनार स्थल पर जाएगी।   उनका बचपन उसे पुराने … Read more

कर्मों का चक्र – खुशी

गोपाल अपने माता पिता का एक बेटा था।परिवार में उसकी दो बहने रति और मणि थे।पिता श्यामलाल सीधे साधे व्यक्ति जितना उन्हें कहां जाता वो उतना ही काम करते ।उनकी बीमारी की वजह से उन्होंने जल्दी ही काम छोड़ दिया था। उस समय गोपाल पढ़ रहा था।गोपाल का शिक्षण उसके मामा के यहां हुआ था … Read more

कर्मो का चक्र तो चलता ही रहता है। – लक्ष्मी त्यागी

शहर के भीड़ -भाड़ वाले इलाके में, एक नुक्क़ड पर ”राधेश्याम ” चाय वाले की दुकान थी। देखने में, वह साधारण सी दुकान थी। दुकान के शीर्ष पर एक पुराने बोर्ड पर ,लिखा हुआ था-” राधे श्याम चायवाला ” कहने को वह चाय वाला ही था लेकिन सुबह से शाम तक, उसको एक पल के … Read more

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