आज की सुबह कुछ अलग है।
सरला जी अपने बिस्तर पर लेटी हुई हैं। सरला जी जो सुबह सुबह ही राजधानी एक्सप्रेस की तरह काम में लग जाती हैं, आज बिस्तर पर निढाल है। इनका स्वभाव अपने नाम की तरह ही बिलकुल सरल और सीधा है। वे अपने समय से कहीं आगे हैं एवं समाज की रुढ़िवादिता से कहीं दूर हैं, वे ५५ साल की उम्र में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग है। उन्होंने अपने दोनों बच्चों में भी यही संस्कार डाले है।
लेकिन आज सरला जी किसी उधेड़बुन में लग रही है। उनकी आंखे देख कर लगता है की आज रात आँखों-आँखों में ही बिती है , शायद इसलिए उन्हें अपने मोबाइल में बजता अलार्म सुनाई नहीं दे रहा था। उनके विचारों की कश्तियां तब किनारे लगी जब पास ही में दीवान पर सोयी उनकी बेटी सुनन्दा ने उठ कर अलार्म बंद कर कहा,
‘ माँ आप तो जागी हुई हो, फिर क्यों अलार्म बजा रही हो?’
सरला जी बिस्तर से उठ कर खड़ी हुईं और सुनन्दा से बिना कुछ कहे ही चले गई। सुनन्दा को ये बात कुछ अटपटी लगी। युं तो रोज़ सरला जी उसे डपट दिया करती है, की चाहे कॉलेज की छुट्टियां ही क्यों न हो, उसे रोज़ जल्दी उठना चाहिए पर आज उन्होंने कुछ नही कहा।
सरला जी ने बाहर जा कर मोटर चालु की और फ्रेश होने चली गई, जब बाहर आयी तो देखा सुनन्दा ने चाय चढ़ा दी है।
‘ माँ में फ्रेश हो कर आती हूं, सुयश भैया अभी कुछ देर और सोएंगे क्युंकी आज शनिवार की छुट्टी है न!! मैं सफाई कर के आती हूं फिर खाना बना दूँगी। आपको तो आज स्कूल जाना है ना ? आप तब तक चाय देख लेना माँ ।’
सरला जी ने बस “हम्म” कह दिया। सुनन्दा को सरला जी के व्यवहार में आये इस बदलाव से कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। पर उसने सोचा काम निपटा कर ही माँ से बात करुंगी।
सरला जी एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। और यही सरला जी की दुनिया है। बस तीन प्राणियों की गृहस्थी। पर एक समय था, जब इस घर में तीन लोगो की नहीं बल्कि चार लोगों की चहलकदमी हुआ करती थी। पर पिछले साल ही उनके पति बृजराज जी का निधन हो गया। सरला जी ने युं तो गृहस्थी की बागडोर बहुत पहले ही संभाल ली थी। लेकिन फिर भी बृजराज जी की कमी उन्हें एवं उनके बच्चों को बहुत खलती थी।
युं तो बृजराज जी आज भी सरला जी के मन में ज़िंदा हैं। लेकिन कल हुई एक बात ने उन्हें अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया। बात कल की है, सरला जी स्कूल में बैठे कुछ काम कर रही थी तब उनका फ़ोन बजा, उन्होंने फ़ोन उठाया, फ़ोन किशन लाल जी का था। किशन लाल जी सरला जी को अपनी बहन मानते थे एवं उनका परिवार भी उनका बड़ा आदर करता था। किशन लाल जी ने पहले उनका हालचाल पूछा और फिर उनसे कहा,
“दीदी आपने कॉलर ट्यून तो बहुत ही अच्छी लगायी है, वो क्या कहते है आजकल के बच्चे बहुत रोमांटिक। हा हा!’ सरला जी को किशन लाल जी की ये व्यंग्यात्मक हंसी तीर की तरह चुभी।’ पर दीदी अब आपको ऐसी कॉलर ट्यून नहीं लगानी चाहिए। जीजाजी भी अब इस दुनिया में नहीं है , कमला भी कह रही थी कि मैं आपको समझाऊं बाकी आप समझदार हैं। चलिये, आप अपना और बच्चों का ध्यान रखियेगा, फिर कभी बात करेंगे।”
किशन लाल जी की ऐसी बातों ने सरला जी को दुखी कर दिया।
सुनन्दा जब काम निपटा कर आयी, तो देखा चाय उबलती जा रही है और सरला जी का ध्यान नहीं है। सुनन्दा ने फटाफट गैस बंद की और सरला जी को अपने पास बैठा दिया, इतने में सरला जी का बड़ा बेटा सुयश भी उन लोगों के पास आ गया।
सुनंदा सरला जी से कुछ पूछती उस से पहले ही उन्होंने सुयश को अपना फ़ोन देते हुए कहा,
‘बेटा इसकी कॉलर ट्यून बदल दे और कोई भजन लगा दे’
सुयश और सुनन्दा को ये बात कुछ अटपटी लगी। ऐसा नहीं था की सरला जी भगवान को नहीं मानती थी। पर सरला जी कभी भी धार्मिक नहीं रही। उन्हें भजन सुनना अच्छा लगता था, पर उनके बच्चे ये अच्छी तरह जानते थे की भजन से ज़्यादा सरला जी को मोहम्मद रफ़ी और आर डी बर्मन के गाने बहुत अच्छे लगते हैं, किशोर कुमार की तो वो फैन हैं। और अभी कुछ दिनों पहले ही तो माँ बेटी ने बहुत सारे पुराने गाने सुन-सुन कर माँ का पसंदीदा गाना ‘ खोया खोया चांद…’ कॉलर ट्यून पर लगाया था। फिर एकदम से माँ का यूं उदास रहना और कॉलर ट्यून बदलने का कहना, बच्चों को ये बात कुछ ठीक नहीं लगी।
‘क्या हुआ माँ? सुबह से देख रही हूं। आपका ध्यान कहीं और है और तो और आपकी सूजी हुई आँखों से साफ़ दिख रहा है की आप रोई हो, प्लीज बोलो न माँ क्या हुआ?’ एक ही सांस में सुनन्दा इतनी बातें बोल गई।
सरला जी आज तक बच्चों से कुछ छुपा पाई थी? जो अब छुपाती, तो उन्होंने कल फ़ोन पर किशन लाल जी से हुई बात का किस्सा सुना दिया और उनकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली। सुनन्दा और सुयश एक साथ हंस पड़े, सरला जी बच्चों की हंसी से आश्चर्य में पड़ गई।
‘क्या माँ तुमने तो डरा ही दिया था। बस इतनी सी बात थी। आप पहले ही बता देती तो, हम ये परेशानी कल ही दूर कर देते। आप कम से कम अच्छे से सो तो लेती।’ सुयश ने कहा।
सरला जी कुछ समझ नहीं पा रही थी। सुयश मां को देख मुस्कुराया और बोला,
‘माँ हम जानते हैं, आप पापा से बहुत प्यार करती हैं। और प्यार से ज़्यादा पापा और आप एकदूसरे का सम्मान करते थे। पापा हमेशा से ही आपके खुले विचारो पर गर्व करते थे और आपके सरल और खुशमिज़ाज़ अंदाज़ से प्रेम करते थे। फिर आप आज लोगों की बातों को दिल से क्यों लगा रही है?’
सुनन्दा ने सरला जी का हाथ थामा और कहा,
‘हम तीनों ही पापा को बहुत याद करते हैैं। और हम दोनों से कहीं ज़्यादा आप उन्हें याद करती हैं, लेकिन पापा के जाने का अर्थ ये नहीं कि आप जीना ही छोड़ दें। पापा आज जहां कहीं भी है, वो यही चाहते कि आप आज भी उसी तरह सजे संवरे, अपने पसंदीदा गाने गुनगुनाए। याद है? किस तरह वो आपके गाए गाने रिकॉर्ड किया करते थे? तो फिर अब आप क्यों नहीं अपने पसंदीदा गाने सुनेंगी या कॉलर ट्यून पर नहीं लगाएंगी?
एक स्त्री का जीवन उसके पति के मरने के बाद ख़त्म नहीं हो जाता। ये आप ही समझाती थी न हमे? फिर अब जब पापा इस दुनिया में नहीं रहे तो आप ऐसा क्यों सोच रही है? यकीन मानिए पापा जहां भी है, वो आज भी आपको हंसते खेलते उसी अंदाज़ में देखना चाहेंगे जैसे आप उनके होते हुए थी। तो लोगों को जो कहना है कहने दीजिए । आप अपने लिए जियो। पापा भी यही चाहते।’
अपने बच्चों की बात सुन सरला जी को लगा मानों उनकी और बृजराज जी की परवरिश कि मिठास आज उनके बच्चों के विचारों में है। उन्हें गर्व हुआ के बृजराज जी और उनके आँगन में खिले ये दो फूल अपने विचारों से इस समाज को थोड़ा ही सही, पर सुगन्धित करेंगे।
सरला जी ने सुयश को फ़ोन थमाते हुए अपनी एक नई पसंदीदा कॉलर ट्यून लगाने को कहा, और फटाफट स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगी।
कुछ दिनों बाद किशन लाल जी ने फिर सरला जी को फ़ोन किया और नई कॉलर ट्यून को सुन झेंप गये। सरला जी की नयी कॉलर ट्यून थी…”कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…”
डॉ अनुभूति दवे
उज्जैन, मध्यप्रदेश