बुरे फंसे – प्रीती सक्सेना

बात बहुत पुरानी है,  san 84 की , हम नई नई शादी के बाद इन्दौर, पतिदेव की पोस्टिंग पर आए, कुछ दिन तो घर जमाने में लग गए,आखिर नई गृहस्थी, नया नया सामान, एक अलग सा अनुभव, घर की मालकिन होने का गर्व, कुछ ज्यादा ही समझदारी का गुरुर सा होने लगा हमें।

  अब पतिदेव के टूर शुरू हो गए, कसम से रात से ही रोना शुरू, कैसे रहूंगी दिन भर अकेले, क्या करूंगी, ये बोले आसपास लोगो से पहचान करो, सहेली बनाओ मैं हमेशा घर पर थोड़े ही रह सकता हूं हमेशा, बात तो सही थी, जब ये मुझे देखने आए थे और पूछा था , मेरा टूरिंग जॉब है एडजस्ट कर लोगी, तब फट से बोल दिया था हां, तो अब क्या बोलूं, खैर आसपास देखना शुरू किया बाजू में एक भाभी नजर आईं हमने जोरदार मुस्कुराहट उनकी तरफ फेंकी, जिसे उन्होंने कुशलता से लपक लिया, चलो भईया कुछ तो समय कटेगा, सोचकर हमने गहरी सांस ली ।

एक दिन दरवाजे पर घंटी बजी, देखा तो पड़ोस वाली भाभी थी, आई बैठी फिर धीरे धीरे पर ज्यादा ही खुलने लगीं, बोली तुम्हारे भईया कहते हैं, तुम ज़रा भी रोमेंटिक नहीं, हमने उन्हें  ज्ञान

दे दिया, हमने कहा आपके मन में जो भी आए वो कागज पर उतारती जाइए बिलकुल बिंदास, अपने मन को पूरी तरह खोल दीजिए, फिर मुझे बताएगा, मैं आगे का उसके बाद बताऊंगी।

काफी दिन हो गए भाभी खुश नज़र आने लगीं , हम अपने आपको जरुरत से ज्यादा समझदार समझने लगे, एक दिन भाभी आई और हमें कागजों का पुलंदा देकर चली गईं, बोली आराम से पढ़ना । मै बाद में तुमसे मिलती हूं ।

हमने फटाफट घर का काम निपटाया , पतिदेव को बाय बाय करके विदा किया और , भाभी के लिखे कागजों के पुलंदे को पढ़ने बैठ गए , पढ़ते पढ़ते हमें रोना आने लगा, इतना की हम चुप ही नहीं हो पा रहे, कारण क्या बताएं, भाभी ने जो भी अपनी भावनाएं लिखी थी वो अपने पति के लिऐ नहीं हमारे पति के लिऐ लिखी थीं ।

प्रीती सक्सेना

इंदौर

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