बुरा सपना – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

‘मां मुझे अभी शादी नही करनी, मुझे सिविल की तैयारी करनी है।’, संजना ने मां से कहा

‘ठीक है बेटी मत करना, एकबार देख तो ले…देखने मे क्या हर्ज है। इकलौता लड़का है…सुंदर स्मार्ट सरकारी नौकरी है। परिवार बहुत छोटा है,तू आराम से वहां अपनी तैयारी कर सकती है।देखले ऐसे रिश्ते बार-बार नही मिलते।’, मां ने कहा

‘राकेश अपने माता-पिता के साथ संजना को देखने आया। संजना की सुंदरता को देखकर राकेश उस पर लट्टू हो गया।’

‘मैंने सुना है आप सिविल की तैयारी कर रही है…मुझे पढ़ने लिखने और कैरियर के लिए जागरूक लड़कियां ही पसंद है।आपको मेरे यहां कोई दिक्कत नही होगी। आप आराम से अपनी तैयारी कर सकती है,अपने कैरियर को मुकाम तक पहुंचा सकती है।’, राकेश ने कहा 

‘संजना राकेश की सोच से बहुत प्रभावित हुई, उसने शादी के लिए हां कर दिया, मां की भी यही इच्छा थी।’


‘शादी खूब धूमधाम से हुई।’

‘शादी के बाद एक सप्ताह राकेश संजना गांव मे माता-पिता के साथ रहे। राकेश की छुट्टियां खतम हो गई थी इसलिए राकेश एक सप्ताह बाद संजना को लेकर शहर आ गया।सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।‌ लेकिन राकेश का रवैया धीरे-धीरे बदलना शुरु हो गया।अब वह देर रात तक दोस्तो के साथ बाहर रहता या तो दोस्तो को अपने घर ले आता…देर रात तक पार्टी चलती, राकेश संजना पर दबाव डालता पार्टी एंज्वॉय करने के लिए। संजना सबकुछ बर्दाश्त कर रही थी, कभी कुछ नही कहती थी।’

‘एकदिन राकेश आफिस से घर जल्दी आ गया।उस समय संजना घर का सारा काम निपटाकर अपनी पढ़ाई कर रही थी। संजना को पढ़ता देख राकेश आग बबूला हो गया।’

‘संजना के पास आकर बोला…तुम लड़कियों को कामधाम ना करना पड़े इसलिए पढ़ाई के बहाने किताब लेकर बैठी रहती हो।’

‘संजना बोली, मैं तो सब काम निपटाकर ही पढ़ने बैठी थी ।’

‘राकेश कुण्ठा में बोला, हां किसी तरह उल्टा-सीधा कच्चा-पक्का बनाकर खिला दिया…फिर किताब लेकर महारानियो की तरह बैठी रहती हो। अरे पढ़ने की क्या जरूरत है।औरतो के हाथों मे चौंका बर्तन ही शोभा देता है, ये किताबें नही..समझी।तुम औरतो से प्यार से क्या बोल दो…तुम सब सिर पर चढ़ जाती हो…तुम औरतो को तो पैरों तले दबा कर ही रखना चाहिए।’


‘संजना चुपचाप अवाक होकर बस राकेश को देख रही थी।’

‘राकेश अनाप-शनाप बड़बड़ाता हुआ संजना के हाथ से उसकी किताबें छिनने लगा। संजना अपनी किताबो को बचाने लगी उसी धक्का-मुक्की में संजना का हाथ राकेश के गाल पर लग जाता है। राकेश से बर्दाश्त नही होता, मां बाप की गाली देते हुए राकेश संजना पर हाथ उठा देता है। संजना ने राकेश का हाथ पकड़ लिया और कहा अपना हाथ अपने पास संभाल कर रखो नही तो मरोड़ दूंगी। मैं कोई अनपढ़ गंवार नही हूं…स्कूल टाइम मे कराटे चैम्पियन थी। अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना जानती हूं।’

‘तुम घटिया मानसिकता के दोगुले चरित्र के इन्सान हो। औरतों को अपने पैर की जूती समझने वाले घमंडी पाखंडी नीच आदमी…तुम किसी औरत के साथ रहने के लायक ही नही हो।’

‘मैं अभी और इसी वक्त यहां से जा रही हूं, तलाक के कागजात तुम्हें मिल जाएंगे।’

‘संजना ने तलाक ले लिया और एक बुरा सपना समझकर राकेश को हमेशा के लिए भूल गई।’

‘संजना ने नियमित रूप से कठिन परिश्रम करके सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली।’

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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