#संस्कार
शुचि तुमने माँ को बता दिया ना कि हम आज पिच्चर जा रहें हैं और खाना भी बाहर से खाकर आयेंगे….शादी के पन्द्रह दिन बाद बाहर जातें समय रमन ने पूछा…??
नहीं रमन मैंने तो नहीं बताया…!!!!
हाँ तो अब बोल ना…!!
ये समझ नहीं आया कि बताना क्यूँ है…??
देखो हम संयुक्त परिवार में रहते हैं….यूँ तो कोई कमी नहीं हैं..कोई रोक-टोक नहीं हैं… फिर भी कोई भी कही जाता है तो मम्मी जी को बताकर ही जाता है क्यूँकि जब खाना बनता है तो मम्मी जी की निगरानी में ही बनता हैं तो उस हिसाब से कम-ज्यादा कर सकतें हैं और बड़ों को बताकर जाने में क्या हर्ज है…!!!!
ठीक है इतना लम्बा भाषण मत दो मैं बोल देती हूँ..!!
शुचि ने जाकर बोला तो…मम्मी जी को बोला तो…उन्होनें कहा ठीक है बेटा समय से घर आ जाना..!!!!
दो-तीन दिन बाद शुचि की एक सहेली का फोन आया उसने कहा आजा बातें करेंगे और फिर बाहर ही चाट पार्टी कर लेगें…शुचि ने ना किसी को बताया ना बोला और पर्स उठाया और निकल गयी…!!!!
रात को रमन आया तो वो कमरें में नहीं थी…उसे शिखा भाभी दिखी तो उसने पूछा…उन्हें नहीं पता…!!
रमन ने शुचि को फोन लगाया तो उसका फोन बंद आ रहा था तो उसने मम्मी जी (सासु माँ) को फोन लगाया तो उन्होनें कहा कि यहाँ तो नहीं आयी अब सबकों चिन्ता हो गयी…मम्मा जी ने कहा जल्दी जाओ तुम सब ढूँढों चारों
भाई अलग दिशा में गयें…तो एक को शुचि सामने से आती दिखी…घर ही आ रही थी..सभी को फोन कर दिया सभी घर आ गयें…!!!!
रमन ने जोर से चिल्लातें हुये पूछा…तो मम्मी जी ने कहा कि धीरे बोलो..!!
शुचि भी थोड़ा डर गई….आप सब ऐसे क्यूँ देख रहें हैं… फिर जोर से बोली कि क्या हुआ…??
मम्मी जी ने कहा…तुम कहाँ गई थी…??
मेरी सहेली आई थी तो उसने बोला तो मैं उसके साथ ही थी..!!!!
तुम्हारा फोन क्यूँ बंद है…??
अचानक से गई तो चार्जिंग कम थी तो बैटरी चली गयी…!!
बेटा! तुम जाने से पहले किसी को बताकर भी जा सकती थी…बताकर जाती तो इतनी बात नहीं बढ़ती…!!!!
मम्मी जी हमारे घर में तो ऐसा कुछ नहीं था मैं और मेरा भाई हम अपने हिसाब से आते-जाते थे..यहाँ अलग ही नाटक है…बताओ…पूछों…फिर जाओ…!!!!
रमन गुस्से से कुछ बोलता उससे पहले मम्मी जी ने उसे रोक दिया..फिर शुचि कहा तुम यहाँ बैठों मेरे पास…देखों बेटा तुम्हारें घर में अगर ऐसा होता था तो गलत था और फिर भी चल इसलिए जाता था…क्योंकि तुम्हारा एकाकी परिवार हैं…लेकिन अब तुम इस परिवार का हिस्सा हो और ये जो छोटी-छोटी बातें होता हैं ना ये हमारें संस्कार होतें हैं…जिन्हें सबकों सीखना या मानना जरूरी है…!!!!
बेटा! ये जो संस्कार होतें है वो कभी बंदिशें नहीं होती है…वो हमारी बुनियाद है….कहतें हैं ना अगर बुनियाद हिल जाती है तो परिवार बिखर जाता है तो…उसी को बचानें के लिये हमें छोटी-छोटी बातें या संस्कार अपनाने पड़ते हैं ताकि हमारी बुनियाद बनी रहें…!!!!
शुचि को मम्मी जी ने इतनें अच्छें से समझाया तो उसने सभी से माफी माँगी और आगे से वो ऐसी गलती नहीं करेगीं….मम्मी जी ने उसे प्यार से गले लगा लिया….!!!!
#संस्कार
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)