बसन्त और गौरी अपनी गृहस्थी में खुश थे। ज्यादा ऊंचे ख्वाब नहीं थे। सीधे सरल स्वभाव के खेती किसानी का काम करते। गाँव मे सबके साथ मिलजुल कर रहते। सुख दुःख में उनके साथ रहते। दोनों बहुत मेहनती थे। जब तक माता पिता रहै दोनों ने उनकी बहुत सेवा की। दो बहिनें है, जिन्हें तीज त्यौहार पर बुलाना, हर रीत भात में अपनी बहनों का मान रखना वे कभी नहीं भूलते थे। दोनों बहने अपने परिवार में खुश थी, वे दोनों बसन्त से बड़ी थी और भाई भौजाई को हमेशा मंगल आशीष देती थी।
बसन्त के दो बेटे थे, वह उन बच्चों को स्कूल में पढ़ा रहा था और उनकी शिक्षा दिक्षा में कोई कमी नहीं होने देता था। दोनों पति-पत्नी स्वयं तकलीफ देखते मगर बच्चों को किसी चीज की कमी नहीं होने देते। पढ़ाई के साथ उन्हें अच्छे संस्कार भी सिखाते। समय के साथ दोनों बेटे बड़े हुए। बडे़ बेटेअमित की गॉंव के विद्यालय में नौकरी लग गई। वह बहुत खुश था कि माँ पापा के साथ गॉंव में ही रहेगा। छोटे बेटे की एक प्रशासनिक कार्यालय में क्लर्क की नौकरी लगी उसे शहर जाना पड़ा। दोनों बेटों की उम्र में सिर्फ दो साल का अन्तर था। बसन्त और गौरी ने अच्छी लड़कियां देखकर दोनों का विवाह कर दिया।
रमा और लीला दोनों को गॉंव में अच्छा लगता था। बसन्त और गौरी उन्हें बहुत प्यार से रखते थे। मगर लीला को सुमित के साथ शहर जाना पड़ा उसे अकेले वहाँ परेशानी पड़ रही थी। कुछ दिन शहर से गॉंव अपडाउन किया ,मगर वह थक जाता था और बिमार रहने लगा। रमा के दो बच्चे हो गए, एक लड़का और एक लड़की। लीला का एक लड़का था। समय परिवर्तनशील है। बसंत और गौरी अब वृद्ध हो गए थे, उनसे काम करते नहीं बन रहा था, आए दिन बिमार रहने लगे। रमा का काम बढ़ गया था, और उसे सास ससुर एक बोझ लगने लगे थे।
एक बार वह सुमित के यहाँ शहर गई। उसने देखा की लीला के यहाँ तो इतना काम नहीं है। बस उसके दिमाग में विकृति आने लगी, वह सोचने लगी वह बड़ी है फिर भी घर के काम में खटती रहती है और लीला शहर में आराम से रहती है। अब वह घर पर हर काम मे बड़बड़ करने लगी। बसन्त और गौरी को उसका व्यवहार ठीक नहीं लग रहा था। उन्हें बहुत दु:ख होता मगर वे कुछ दिन तक सहन करते रहै। धीरे- धीरे आवाज अमित के कान में पड़ी, उसने रमा को बहुत समझाने की कोशिश की, मगर वह तो जैसे कुछ समझना ही नहीं चाहती थी। उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा था।
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एक दिन बसन्त ने कहा बेटा घर की लक्ष्मी नाराज रहै,,तो अच्छा नहीं लगता। तुम बहू को लेकर अलग रहने लग जाओ। हमारी चिन्ता मत करो हमे जरूरत होगी तो हम तुम्हें कह देंगे। बेटा जहाँ रहो सुखी रहो। रमा के क्लेश के आगे कोई विकल्प समझ में नहीं आ रहा था। अमित भारी मन से किराये का मकान लेकर रहने लगा। मगर रोज माता पिता से मिलने जाता था। बसन्त और गौरी अपना जीवन शांति से जी रहै थे। उनका व्यवहार गाँव के लोगों के साथ इतना अच्छा था कि उनका कार्य कोई भी कर देता था।
मगर उन्हें अमित के बच्चों की बहुत याद आती थी। उधर बच्चे भी दादी को बहुत याद करते थे। कभी-कभी मिलने आते थे।
सुमित का ससुराल बसंत के गाँव के पास के गाँव में था। जब सुमित की माँ को यह मालुम हुआ तो उन्होंने लीला को समझाया बेटा अब तुम्हारे सास ससुर को तुम्हारे साथ की जरूरत है तू और दामाद जी गाँव जाकर उन्हें शहर ले आओ। उनकी सेवा करना तुम्हारा धर्म है। बेटा एक बात हमेशा ध्यान रखना- “जिस घर में बुजुर्ग हॅंसते मुस्कुराते हुए रहते हैं।उस घर में भगवान का वास होता है।” सुमित और लीला गाँव जाकर बसन्त और गौरी को शहर ले आए। उन्होंने बहुत मना किया मगर वे नहीं माने। वे दोनों उनका पूरा ध्यान रखते सेवा करते।
शालीन अपने दादा- दादी के साथ बहुत खुश रहता, उनके साथ खेलता। बसन्त और गौरी खुश रहते और दिल से आशीर्वाद देते। सुमित के घर में उनके आने से रौनक आ गई थी। अमित के घर हर बात में क्लेश हो रहा था। दो बच्चों को सम्हालना रमा को मुश्किल हो रहा था, पहले अपनी सास के भरौसे बच्चों को छोड़कर आराम से मायके चली जाती थी। मगर अब जाना मुश्किल हो गया था, उसके जाने से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता था। पहले तो वह दिन में कुछ दैर आराम भी करती थी। बच्चे स्कूल से आते थे तो सासु जी उन्हें भोजन करा देती थी, सुला दैती थी,
सब्जियां साफ कर देती थी। कई छोटे मोटे काम वे कर देती थी जिसका अहसास उसे उनसे दूर होने के बाद हुआ। उसने शहर जाकर अपने सास ससुर से माफी मांगी और फिर से गॉंव चलने के लिए कहा। उन्होंने माफ तो कर दिया, मगर वे सुमित के पास ही रहै। कभी-कभी गाँव जाते तो अमित रमा और बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। किसी ने सच कहा है, कि “जिस घर में बुजुर्ग हंसते मुस्कुराते रहते हैं उस घर में भगवान का वास होता है।”
प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
वाक्य :#जिस घर में बुजुर्ग हंसते मुस्कुराते रहते हैं। उस घर में भगवान का वास होता है