बुजुर्ग दरख़्त – मनप्रीत मखीजा

उर्वी और अर्शी, दोनों बचपन की सहेलियां थीं| दोनों ही सुंदर, तेज दिमाग, और हुनरबाज थीं। लेकिन दोनों की समझ में भी काफी अंतर था। किस्मत का खेल था कि अर्शी ने परिवार की मर्जी के बिना लवमैरिज कर ली और विदेश चली गई। वहीं दूसरी तरफ उर्वी ने अपने बचपन की सहेली अर्शी के बिखरे परिवार को समेटने के लिए अर्शी के भाई से शादी करने की इच्छा जताई ताकि अर्शी के परिवार की बहू बनकर परिवार को संभाल सके।

उर्वी ने बहू बनकर नहीं बल्कि बेटी बनकर पूरे परिवार को संभाला। बेटी के भाग जाने की बदनामी से टूटकर बिखर चुके परिवार को फिर से एक सूत्र में बांधा। इसके साथ ही उर्वी ने एक एनजीओ से जुड़कर बुजुर्ग दंपतियों की सेवा में मुफ्त नौकरी करना शुरू किया| उर्वी बाहर और घर दोनों के ही बड़े बुजुर्गों को खुश करके बड़ा सुकून महसूस करती। घर में उसके सास ससुर उर्वी से बड़े खुश रहते।

आज शादी के दो साल बाद उर्वी की ही कोशिशों के बाद आज अर्शी के परिवार ने उसे माफ कर दिया और आज दो साल बाद, पहली बार अर्शी ने विदेश से अपने परिवार को फ़ोन किया।

“माँ आप लोग मुझसे नाराज तो नही!”

“नहीं बेटी, उर्वी ने हमें समझाया कि उम्र की नासमझी में तुमने वो कदम उठाया और अब तो तुम अपने पति और ससुराल में खुश हो, इससे ज्यादा हमें क्या चाहिए? लो अपनी भाभी और सहेली उर्वी से बात करो।”

“कैसी हो उर्वी भाभी!”

“हम सब लोग यहाँ बहुत अच्छे हैं। तुम अपना सुनाओ, कैसा ससुराल है, कितने लोग हैं, क्या करती हो, सास ससुर कैसे हैं!”

“घर में सिर्फ मैं और मेरे पति ही रहते हैं।”

“क्यूँ, सास ससुर नहीं हैं क्या तुम्हारे!”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 वादा राखी का – बेला पुनीवाला




“हैं लेकिन…हमारे साथ नहीं रहते।”

“क्यूँ!!! क्यूँ नहीं रहते!”

“यार ये ओल्ड पीपल, ये बुजुर्ग जो होते हैं न, पता नहीं क्या चाहते हैं हम जवानों से! मुझे और मेरे पति को एक साथ रहने का तो मौका ही नहीं मिलता था जब सास यहाँ थी। थोड़ी थोड़ी देर में हमारे कमरे के बाहर आ जाती, कहती ‘अकेलापन बर्दाश्त नहीं होता। तुम लोगों को देखती हूँ तो अच्छा लगता है।’ उफ्फ्फ! कोई प्राइवेसी ही नहीं रह गई थी हमारी जिंदगी में। और ससुर, वो तो कुछ खरीदने ही नहीं देते थे। हर बात पर बचत का भाषण सुनाते जैसे ये सारी दौलत उन्होंने अकेले कमाई हो। हुह, मेरे बर्थडे पर एक मामूली सी पचास हजार की जीन्स ले आये मेरे पति तो घर में इतना बड़ा क्लेश कर डाला। बस, हमने भी सोच लिया कि घर में या तो वे रहेंगे या हम।”

“तो क्या तुम दोनों ने उन्हें घर से जाने को कह दिया!”

“हम कुछ कहते, उससे पहले ही वे तय कर चुके थे कि अब वो विदेश में नहीं रहना चाहते। तो चल दिये, अब पता नहीं किसी ओल्ड एज होम में रहते हैं इंडिया में। कुछ फ़ोन नहीं आता। खैर, अब हम दोनों पति पत्नी खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं|”

अर्शी की बातें अब भी चालू थीं, लेकिन उर्वी ने रिसीवर साइड में रख दिया। एक एक कदम बढ़ाती हुई रसोईघर में गई तो उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे। न जाने क्यूँ, अपनी बचपन की प्रिय सहेली अर्शी के मुँह से उसके अपने ही सास ससुर के बारे में ऐसी बात सुनकर उर्वी को चिढ़ सी होने लगी। रसोई की खिड़की से बाहर बगीचे में बात करते, अपने सास ससुर को उर्वी ने देखा तो अपने आप से कहने लगी

“न जाने क्यूँ, अपने ही घर में उपेक्षित कर दिए जाते हैं,

ये बुजुर्ग दरख़्त छाया देकर भी खुद को झुकाते हैं|

इन्हें वक़्त और परवाह देकर तो देखे कोई

कुछ पल को इन्हें भी समझे कोई

अपने अनुभव के खजाने से हमारी झोली भर जाते हैं

इस कहानी को भी पढ़ें: 

इंसानियत जिंदा है अभी! – प्रियंका सक्सेना

मेरे लिए तो शीतल हवा के झोंके से हैं ये बुजुर्ग

जो प्यार का ही आशीर्वाद बरसाते हैं।”

उर्वी ने भगवान को शुक्रिया कहा कि उसके सर पर बुजुर्गों का साया है और यूँ ही बना रहे|

©मनप्रीत मखीजा

 

Leave a Comment

error: Content is protected !!