रागिनी अपनी ननद के बेटे के उपनयन संस्कार में दिल्ली आई थी। सास-ससुर एक महीने पहले ही आ चुके थे।सास को इस अनुष्ठान के विधि-विधान का अच्छा अनुभव था, इसलिए ननद ने जल्दी बुलवा लिया था।दस साल पहले रिटायर हो चुके ससुर के पास जमा-पूंजी के नाम पर कुछ विशेष नहीं बचा था।उनके घर का पहला नाती था सुदीप,सो यथाशक्ति अपनी तरफ से नाना और मामा ने उपहार दिए थे।रागिनी संस्कार वाले दिन ही पहुंच पाई थी पति के साथ, छुट्टी ना मिल पाने के कारण।
ननद से आमना सामना होते ही रागिनी समझ गई कि ननद का मन अच्छा नहीं है। फुर्सत मिलते ही दोपहर में ननद ने अपने मन की भड़ास निकाली शुरू कर दी-“देखो ना भाभी,साल भर पहले से बताकर रखा था मां-बाबा को,इस संस्कार के बारे में।मां को तो कोई भी नियम अब याद ही नहीं।मेरी ससुराल वालों के सामने नाक कटवा दी।सुदीप की बुआ,दादी, चाचा-चाची कितने मंहगें गिफ्ट लेकर आएं हैं,और इन्हें देखो , सिर्फ एक पतली सी अंगूठी ऐसे दिखा रहें,जैसे खजाना दे दिया है।अच्छा तुम्हीं बताओ,साथ में एक चेन तो दे सकते थे ना?”
रागिनी ने ठीक ही परखा था,ननद बेइज्जती की आग में झुलस रही थी।रागिनी ने समझाया”अमृता,बाबा के पास तो अब कुछ बचा नहीं,तुम्हारे दादा ने ही कोआपरेटिव से लोन लेकर अंगूठी बनवाई है।अभी छोटी बहन की शादी का कर्ज भी है सर पर।तुम बुरा मत मानो।जैसे ही हालात कुछ ठीक होंगे,सुदीप को हम चेन ज़रूर देंगे।”
“कम से कम तुम्हें तो इस बात का अहसास है भाभी,इन लोगों को अपने कर्तव्य का बिल्कुल भी बोध नहीं।”अमृता चिढ़कर बोली।
छोटी बहन आ नहीं पाई थी संस्कार में,फोन पर सारी बातें पूछ रहीं थीं अपनी दीदी से।अज्ञानता वश उनकी कुछ बातें रागिनी ने सुनी,तो उसके होश उड़ गए।
“अरे !नहीं रे,क्या बताऊं तुझे,मां-बाबा को झेलना ना किसी के बस का नहीं।पता नहीं भाभी कैसे झेल लेती है।बाबा को वैस्टर्न टॉयलेट में बैठने की आदत नहीं।कितनी बार कहा फ्लश अच्छे से कर दिया करो,सुनते ही नहीं।इतने मेहमान और उन्हें दिन में दस बार चाय चाहिए,वो भी इस गर्मी में।और सुन जनेऊ हो जाने के बाद बोल रहे हैं मां को दिल्ली घुमाने के लिए।तू ही बता इतने सारे मेहमान हैं,सब को ले जाना पड़ेगा।गाड़ी अगर बुक भी की तो मेरी ननद अपने हिस्से का खर्च दे ही देगी,पर मां-बाबा के पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है।
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सुबह पांच बजे से उठ जाती है मां,फूल तोड़ने।हमारी आदत देर से सोने और देर में उठने की है।एक दिन बोला मां को चाय बना कर पी लेने के लिए तो किचन में इतनी आवाज करने लगी कि सभी की नींद टूट गई।अब तू ही बता, मेहमानों से भरे घर में मां के लिए बिना प्याज लहसुन का खाना बन सकता है क्या???
रागिनी अचंभित होकर एक बेटी के उद्गार सुन रही थी।जिस बाप ने अपनी बड़ी बेटी की शादी के लिए एम आई जी वाला फ्लैट तक बेच दिया था। जो अपने बेटे की शादी में बेटी और दामाद को लिवाने गाड़ी बुक कर के गया है,जिस मां ने बेटे की शादी के अवसर पर ,बड़ी बेटी को नेंग में मोटे कंगन बनवाकर दिया है,जिस नाती को गोद में लेकर पूरे कॉलोनी और हॉस्पिटल में मिठाई बांटी हो मां -बाप ने ,आज बिना रुपयों के उनका सारा किया धरा शून्य हो गया।रागिनी ने अपनी ननद को समझाने की एक और कोशिश की-“देखो,समय अभी ठीक नहीं
हमारा।कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा।बाबा के पास सचमुच अब पैसे नहीं हैं।मैंने भी छह सालों में नहीं देखा उन्हें बैंक से पैसे निकालते।”रागिनी की बातें सुनकर और चिढ़ती हुई वह बोली”भाभी,अभी तुमने इन्हें पहचाना नहीं है।तुम सचेत रहना।अरे खर्च करने से पहले सोचना चाहिए ना कि हमारी कितनी हैसियत है।पिछली बार जब आए थे तो जाने का किराया भी नहीं था पास,तुम्हारे ननदोई ने टिकट करवाया।यह कोई अच्छी बात है क्या??”मां को हर दिन मीठा खाना है।बाबा को पान चाहिए दिन में दस-बीस।जब उम्र हो जाए ना,तो अपने शौक पर भी लगाम लगाना चाहिए।हां एक बात और भाभी जब तुम जाओगी ना अब इन्हें साथ लेकर जाना।”
रागिनी अब और कुछ सुनना नहीं चाहती थी।अगले ही दिन उसका वापसी का टिकट था। तत्काल में बहुत कोशिश करने पर भी सास-ससुर का टिकट नहीं हो पाया।रागिनी अपने बच्चों को लेकर निकलने लगी जब ननद के घर से,ससुर की निरीह दृष्टि ने भेद दिया उसका अंतर्मन।इतनी लाचारी वृद्धावस्था की।मुंह से एक भी शब्द नहीं बोले थे उस स्वाभिमानी पिता ने पर उनके मन की वेदना ,मौन में झलक रही थी।रागिनी ने बड़ी मुश्किल से बचाया हुआ पांच सौ का नोट उनके हांथों पर रखा छिपाकर और बदले में अपनी हथेली पर उस बूढ़े बाप की आंखों का गरम-गरम दर्द महसूस किया था।
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पंद्रह दिनों के बाद नौ तपे की भीषण गर्मी में वृद्ध माता-पिता अपने बेटे-बहू के पास पहुंचे।आते ही सास अपनी बेटी के घर आयोजित अनुष्ठान का महिमा मंडन करने लगीं।अपमान का बोध भी शायद कम हो जाता होगा वृद्धावस्था में,और भूल भी जाता है सब कुछ।ससुर ने बस रागिनी को अपने पास बुलाकर अमावट का एक पैकेट दिया जो उन्होंने स्टेशन के बाहर खरीदा था,उसके लिए।रागिनी का हांथ पकड़ा बूढ़े बाप ने बस इतना ही कहा”बहूमां(बंगालियों में बहू को स्नेह से कहा जाता है)अब मुझे जीते-जी किसी के पास मत भेजना।
मुझसे वादा करो।”रागिनी ने अपने आंसू छिपाते हुए उनका हांथ अपनी अपने हांथों में जोर से दबा लिया।कहा”ठीक है ना ,अब बुढ़ापे में मेरे जैसी आप लोगों की सेवा करेगा कौन?मत जाना कहीं,यहीं रहना मेरे पास और क्या?दस्तखत करवा के आईं हूं मैं पिछले जन्म वाला।”ससुर रागिनी की बात सुनकर हंसने लगे,इतना हंसे कि रो पड़े।आज उन्हें देखकर रागिनी को एक सीख मिल गई थी कि अपने बुढ़ापे के लिए हमें अभी से संचय करके रखना चाहिए।मां -बाप बच्चों को देते हुए ही अच्छे लगते हैं,लेते हुए नहीं।ममता के वशीभूत खर्च करने में आज जो हम अति करेंगे,भविष्य में खाली बैंक बैलेंस हमारे स्वाभिमान पर तमाचा लगाएगा।
शुभ्रा बैनर्जी
(व)