बुढापे की लाठी सुपात्र बेटी – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

लोकपरिवहन बस के कंडेक्टर ने तेज आवाज लगाई “गंगा पुर…. गंगापुर….गंगापुर!” प्रकाश बस से उतरा । वह शहर से अपनी बेटी के नामकरण संस्कार की सामग्री का थैला थामे अपने घर की ओर रवाना हो गया ।  वह एक मध्यम वर्गीय मौहल्लै में अपनी पत्नी आशा व बेटी सुमित्रा के साथ रहता था । पति-पत्नी दोनों चाहते थे  दूसरी सन्तान बेटा हो, जो बड़ा होकर परिवार का सहारा बन वंश बढाए, परन्तु फिर कन्या के रूप में  वीनिता ने सात दिन पहले जन्म ले लिया, जिसका नामकरण संस्कार आज धूमधाम से सभी की आगन्तुकों की उपस्थिति में हुआ था । 

      प्रकाश ने तो सभी को साफ साफ कह दिया “मेरी दोनों बेटियाँ बेटों से भी प्यारी है ।” नारी में स्त्रीत्व और पौरुस्त के दोनों गुण होते हैं । ये तो ‘विद्या की देवी और शक्ति का स्वरूप है ।’ 

        आशा ने अपनी दोनों बेटियों को कलेजे से लगाते हुए कहा “मैं तो आज धन्य हो गई कि कन्याओं ने अपने चरणों से मेरे घर को पवित्र कर दिया ।”  बेटियाँ समयानुसार बड़ी होने लगी । 

       सुमित्रा और विनिता की अठखेलियों से पूरे घर में रौनक आ गयी । आशा दोनों के पीछे भागती हुई कहती “अगले साल दोनों का स्कूल में एडमिशन न करवा दूं तो मेरा नाम बदल देना । दिन भर  बहुत शैतानी करती हो तुम दोनों!” 

       ये कल जैसी बात लग रही है  ।  बेटियां कब बड़ी हो गयी, पता ही नहीं चला,  परन्तु उन्हें स्कूल बस में चढाने का शिलशिला आज भी जारी है । वह बस को तब तक निहारती रहती, जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी । सुमित्रा व वीनिता दोनों दसवीं कक्षा में आ गयी और अपने अपने प्रोग्रेस कार्ड पर मां के हस्ताक्षर करवा रही थी । 

         बहुत ही व्यवस्थित दिन चर्चा थी उन दोनों की । आचरण में सदाचार, विनम्रता, श्रम व सेवा के गुण कूट कूट कर भरे थे ! 

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         सुमित्रा हमेशा की तरह दिन निकलने से चार प्रहर पहले ही जाग गयी । जागने के बाद बिस्तर में पड़े रहना उसे अच्छा नहीं लगता था । पृथ्वी को प्रणाम करते हुए वह बुदबुदाती ” हे, धरती धरती माता तूं बड़ी तुझसे बड़ो न कोय तेरे ऊपर पांव धरूं पाप न लागे कोय ।”  उठ कर अंगड़ाई ली और स्नानादि किया । आंगन के किनारे लगे तुलसी के पौधे व आंवले के पेड़ को प्रतिदिन सींचती थी । 

        बाऊजी ऊंची आवाज में सुमित्रा की माँ को कहने लगे “अजी, सुनती हो! गाय रंभा रही है, दोहनी लाकर गाय दुह लो ।”  माँ गाय दुह कर रसोई में आई तब तक दोनों बहनों ने मिलकर चाय नाश्ता बना लिया । 

    कुछ ही देर में वीनिता नाश्ता लेकर आ गयी “सभी आ जाओ नाश्ता लग गया है ।”  हरी की माँ ने कहा । तब तक वीनिता की बड़ी बहन सुमित्रा रसोई से चाय लेकर माँ के पास आ गयी । 

        प्रकाश के ई-मित्र की दुकान थी । उन्हें ही सुबह जाकर आफिस खोलना पड़ता था । दोपहर का टिफिन भी बेटी वीनिता उनकी   गाड़ी में पहले ही रख देती थी । 

       दोनों बहने स्कूल का गृहकार्य करके कल पढाये गये पाठ की एक दो बार पुनरावृत्ति करती, इसबार दसवीं बोर्ड की परीक्षा में अधिक अंक लाने की होड़ भी थी । 

        स्कूल जाने से पहले माँ को बी. पी. , सुगर की टेबल्स देकर जांच भी करती । 

       शाम को दोनों बहनें स्कूल से लौटकर आती और सीधे माँ के गले से लिपट जाती । माँ की आंखों से गालों तक आंसुओं की धारा छूट जाती । बेटियां आंसुओं को पोंछ कर आज स्कूल में क्या क्या हुआ, कौनसी बहिन जी के नाक से पानी  बह रहा था? अंग्रेजी वाली मेडम पाश्चात्य सभ्यता वाली फैशन में कैसी लग रही थी? बताकर तीनों खिलखिलाकर हंसने लगतीं । तब तक पिताजी बाजार से शाम की सब्जी लेकर घर पहुँच जाते । दोनों बेटियों व माँ को हंसते हुए देखकर प्रकाश फूला नहीं समाता ।

         शाम को सभी साथ में पूजा पाठ करके  सस्वर आरती बोलते  । 

          सुमित्रा व वीनिता ने ग्रेजुएशन तक पढाई करली । आत्मरक्षा व प्रहार में दोनों ने स्कूली शिक्षा के दौरान ही दक्षता प्राप्त करली थी । घर में अतिरिक्त आय के लिए वीनिता आंवलों का मुरब्बा बनाकर बेचने के लिए डिब्बों में पैकिंग करती, सुमित्रा मौहल्लै के बच्चों को ट्युशन पढाती । आय, ईज्जत और उपकार का उपहार पाती । 

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         दो चार दिन से मां के सुगर और बीपी में भारी उतार चढ़ाव, तेज बुखार व सिर दर्द का उपचार करवाने दोनों बहने आशा को लेकर अस्पताल पहुंची । कई प्रकार की जांचें व टेस्ट हुए । चिकित्सक ने इंजेक्शन लगाये व ग्लूकोज चढाये परन्तु स्वास्थ्य सुधार तो वही “ढाक के तीन पात ।” सुमित्रा द्वारा चिकित्सक को बार बार कहने पर वह बोला “बेटों को बुलाओ खून चढाना पड़ेगा ।” दोनों बेटियां आवाक रह गयी  । वीनिता बोली “हम ही हैं बेटे! बोलो क्या चाहिए ? “

“ओ ग्रुप का खून ।” सुमित्रा ने कहा “माँ के लिए हमारा खून ले लो” डाक्टर सकपका गया “ये कैसे हो सकता है…! ” वीनिता ने पूछा “क्या बेटे और बेटी का खून अलग होता है। डाक्टर ” नहीं तो…. ” सुमित्रा की आंखों से आंसू बहने लगे “डाक्टर हमारी मां को बचा लो… ” डाक्टर ने दोनों बहनों का एक एक युनिट खून लेकर आशा के चढा दिया । बहुत तेजी से शाम तक सुधार हो गया । डाक्टर ने दवाओं के साथ आशा को बधाई दी “बहुत बहादुर है तुम्हारी बेटियां.. तुम बिलकुल ठीक हो ।  बहुत बहुत बधाई । हाँ जीएनएम आ रहा है एक इंजेक्शन लगाकर जाना  । ”  माँ बेटियां वहीं बैठकर इंतजार करने लगी ।

   जीएनएम पीयूष आकर  इंजेक्शन लगाने लगा, आशा उसके चेहरे को टकटकी लगाये देखती ही रह गयी । हृष्ट-पुष्ट व छरहरा बदन । नाक नक्श से सुन्दर व अपने कार्य में पारंगत नवयुवक का चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा ! उस युवक ने मां जी के चरण छूते हुए कहा “माता जी आपने मुझे पहचाना नहीं?

मैं आपकी छोटी बहिन के देवर का लड़का हूँ।” पुरानी स्मृतियाँ माँ जी के आंखों के सामने छा गयी । आशा ने कहा “हाँ मुझे संजू ने बताया था कि उसके देवर व देवरानी का देहांत एक एक्सीडेंट में हो गया, लेनदारों का भारी कर्ज चुकाने के लिए घर भी बिक गया । अब तुम कहाँ रहते हो बेटा?” पीयूष ने कहा “बुआ के घर रहता हूँ माँ जी, पर अब उनका परिवार भी बड़ा हो गया, मुझे यहीं कोई मकान किराये पर लेना है, आजकल बिना जान पहचान कोई बात भी नहीं करता । अगर आपके ध्यान में कोई खाली मकान किराये पर हो तो बताइयेगा, आपका एहसान होगा । 

         माँ जी ने कहा ” भगवान ने चाहा तो सब अच्छा ही होगा….. ।”

          दूसरे ही दिन प्रकाश ने बुआ के गाँव जाकर सुमित्रा का विवाह पीयूष से तय कर दिया । 

            प्रकाश अपनी  बेटी को विदाई देकर कहाँ भेजते ? मकान के एक हिस्से में सुमित्रा के विवाह पर मिले उपहार रख दिये । सुमित्रा ने पीयूष को अपने रहने का स्थान बताते हुए कहा “माँ जी ने ये मकान तय किया है, हमारे लिए !  पर याद रखना किराया तो लगेगा!” दोनों बहुत खुश हुए । 

          सुमित्रा पढीलिखी तो थी ही पिछले साल उसने शिक्षक प्रशिक्षण का डिप्लोमा भी प्राप्त कर लिया था । आज डाकिया  सुमित्रा के शिक्षिका पद का नियुक्ति पत्र दे गया । उसे इसी गाँव के एक सरकारी स्कूल में नियुक्ति मिल गयी । 

         सुमित्रा अपने माता पिता व परिवार की भलीभाँति देखभाल करती । पीयूष अपने कार्यालय जाते समय उसे स्कूल छोड़ जाता । सबके दिन मजे से कट रहे थे । 

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           सभी को चिन्ता बस यह एक ही थी कि “वीनिता के योग्य वर मिल जाये उसकी शादी धूमधाम से हो जाये । 

             पीयूष ने बताया एक स्वजातीय लड़का इसी महिने डाक्टर  लगा है, वह पढी लिखी सुसभ्य लड़की चाहता है, आप कहो तो उनसे पूछ लूं । 

               प्रकाश ने कहा ” डाक्टर के साथ बेटी के विवाह की मेरी औकात नहीं…. ” पीयूष ने बीच में ही बात काटते हुए कहा ” वैसे तो डाक्टर साहब बिना दहेज के विवाह करेंगे, फिर भी…… आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं, आपकी बेटी मेरी तनख्वाह से घर चलाती है और अपनी इतने वर्षों की तनख्वाह वीनिता के विवाह के लिए बैंक में ही रख रही है । इतने रुपयों में तो कोई भी शानदार विवाह कर सकता है, और तो पढेलिखे ,  समझदार व समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति है , किसी प्रकार की कमी हो ही नहीं सकती ।

          वीनिता की विदाई के समय 

माँ बेटियों की आंखों के  सामने बीते समय की सभी स्मृतियाँ ताजा हो गयी । खुशी और बिछड़ने के गम के कारण आंसुओं से तीनों के गाछ गीले हो गये । 

          सुमित्रा ने एक साथ दो बच्चों को जन्म दिया । इनमें एक नर व दूसरी मादा थी । 

           लम्बी छुट्टी के बाद जब वह अपनी नौकरी पर जाने लगी तो दोनों बच्चों की देखभाल अपनी माँ आशा की देखभाल में छोड़ जाती । दोनों नानी के पास खुश थे । 

             दोनों बेटियां सुखी हैं, यह सोचकर प्रकाश चैन की सांस लेता । 

            पिछले साल  बच्चों के जन्म दिन पर वीनिता पीयूष के साथ आई थी । वीनिता इस बात से बहुत खुश हुई कि माँ, बाऊजी व सुमित्रा के परिवार में  सुख सुविधाओं में कमी नहीं है । 

      अचानक एक रात प्रकाश चल बसा । पूरा गाँव उनके अन्तिम संस्कार के लिए कल्याण भूमि ले जाने का इंतजार करने लगा । पण्डित जी ने कहा इनके पुत्र या गौत्र का आदमी ही सबसे पहले रथी के हाथ लगाये ।  परन्तु वहाँ न ही तो उनका पुत्र था और न ही उनकी गौत्र का दूसरा आदमी । 

          सुमित्रा बाहर आकर रूंधे गले से बोली “पण्डित जी ! शास्त्रों में बेटी द्वारा अन्तिम संस्कार करने का विधान नहीं है? पण्डित जी की आंखें भर आई । ”  हाँ बेटा, पुत्र न होने पर बड़ी पुत्री अन्तिम संस्कार कर सकती है, पिण्ड दान व पितृ तृप्ति करना भी शास्त्र सम्मत है ।” सुमित्रा ऐसा ही करके सब लोगों के साथ घर आई और माँ से चिपककर बहुत रोई…. बहुत रोई….! माँ ने दोनों बेटियों को ढाढस बंधाया । 

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          वीनिता अपने घर चल गयी । सुमित्रा व पीयूष अपनी ड्यूटी पर जाने लगे । समय बीता, सब सामान्य लगने लगा । 

             आशा अपने आंगन में 

फिर खुशियाँ खोजने लगी । सुमित्रा के दोनों बच्चे छिप कर आवाज लगाते “नानी! हमें ढूंढ लो तो जाने!” आशा कुणाल और खुशी को एक बार फिर आंगन, बगीचे और घर के कोने कोने में ढूंढने लगी । 

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          नेमीचन्द गहलोत (अध्यापक)

          पंचारिया ट्यूबवैल के पास, 

          रोड़ा रोड़ नोखा (बीकानेर)

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