बुढ़ापा एक सच्चाई है , जिसे कोई बदल नहीं सकता न ही झुटला सकता है। बुढ़ापा तो आना ही है ये ही परम सत्य है। लेकिन कुछ लोग अपनी जवानी के दिनों में ये भूल जाते हैं कि आज भले से वो जवान हैं लेकिन एक दिन उन्हें भी बूढ़ा होना है। आज की ये कहानी आधारित है एक ऐसे ही नौजवान पर जो आज एक छोटे से कमरे के बिस्तर पर लेटा है। लेकिन आज वो जवान नहीं है , आज वो एक बूढ़ा है और याद कर रहा है अपने जवानी के दिनों और जवानी की गलतियों और कर्मों को और आज उसे पछतावा हो रहा है लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वक़्त तो रेत की मानिंद उसके हाथ से निकल चुका है.
समीर , जो कभी एक नौजवान था , उसे सिर्फ अपनी जवानी को अच्छे से जीना था , उसे न तो किसी की परवाह थी , न ही किसी की सुनता था। उसकी पढाई में भी कोई रूचि नहीं थी और मां बाप की तो उसे कोई परवाह ही नहीं थी ,, पिता अकेले ही घर का सर बोझ ढो रहे थे, समीर उनकी दुकान पर जाता तो था लेकिन सिर्फ पैसे मांगने, उसने कभी दुकान पर पिता का हाथ नहीं बँटाया।
मां अक्सर उसे समझाती थी कि बेटा तू ही हमारे बुढ़ापे का सहारा है , तो समीर इस पर कहता अभी मैं जवान हूँ , मुझे मेरी जवानी जीने दो , अपने बुढ़ापे में मुझे मत पीसो और ये कहकर समीर अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमने फिरने निकल जाता।
माँ समीर को समझा समझा कर रोती रह जाती तो समीर के पिता माँ को समझाते हुए कहते कि ” रो मत, हमारी ही परवरिश में शायद कोई कमी रह गई है , जो आज बेटे को हमारा बुढ़ापा बोझ दिख रहा है।
समीर की माँ ने एक सुशील और संस्कारी लड़की से ये सोच कर समीर की शादी कर दी कि शायद समीर सुधर जाये लेकिन समीर शादी के बाद भी नहीं सुधरा बल्कि अब तो वो घर से और भी ज़्यादा लापरवाह हो गया , उसे लगने लगा कि अब माँ बाप जो कहेंगे अपनी बहु से कहेंगे। .मैं अपनी जवानी को खूब एन्जॉय कर सकूंगा।
समीर के गम में कुछ वक़त बाद उसके माँ पिता का भी देहांत हो गया , समीर की पत्नी ने उसे कई बार सही रास्ता दिखाने की कोशिश की लेकिन समीर तो खोया रहा दोस्तों में , पीने खाने और जवानी को जीने में। हार कर समीर की पत्नी ने समीर से तलाक ले लिया और उसे छोड़ कर चली गई।
शुरू में तो समीर को लगा कि अब वो बिलकुल आज़ाद है और जो चाहे कर सकता है , अब वो अपनी जवानी को जी भर कर जियेगा , अब उसे कोई रोकने टोकने वाला नहीं है ,, कुछ साल तो गुज़र गए जिनमें समीर ने जी भर कर खाया पिया , घुमा फिरा लेकिन अब समीर के पास जब पिता की दौलत धीरे धीरे ख़त्म होने लगी तो समीर के दोस्त भी उसे नज़रअंदाज़ करने लगे , उससे मिलना जुलना कम और फिर बिलकुल ख़तम करने लगे।
जहाँ एक तरफ समीर के पास पैसा खत्म हो गया , वही दूसरी तरफ समीर पर बुढ़ापा भी जल्दी ही आना शुरू हो गया। अब समीर शीशा देखते हुए भी घबराने लगा , उसे अपने बालों की सफेदी और चेहरे की झुर्रियां देखना बर्दाश्त नहीं होता था.
आज समीर अकेले बैठकर आंसू बहा रहा था , एक एक करके अपनी जवानी के दिनों की स्मृतियां उसके सामने आ रही थी की कैसे उसने जवानी को ही एकमात्र सत्य समाज कर जवानी पर सब लुटा दिया और अपने बुढ़ापे के दिनों के लिए कुछ संभाल कर नहीं रखा। न दौलत न घर , यहां तक कि सबसे ज़रूरी होता है “परिवार “
जो बुढ़ापे का सहारा बनता है , लेकिन उसने तो अपने परिवार को भी जवानी के ऐशोआराम में खुद से दूर कर दिया था।
समीर को आज माँ पिता की सीख याद आ रही थी , वो हमेशा कहते थे कि बेटा जवानी को जीना अच्छी बात है , लेकिन इसका भी एक तरीका होता है , जवानी में काम धंधा जमाया जाता है , माँ बाप और बीवी बच्चों के साथ जिया जाता है , जवानी तो अच्छी बुरी जैसी भी हो , गुज़र ही जाती है , लेकिन बुढ़ापा अंतिम सत्य है , वो ख़राब नहीं होना चाहिए। बुढ़ापे में परिवार ही साथ निभाता है। जवानी में कमाया धन बुढ़ापे का सहारा बनता है।
अगर बुढ़ापे को अच्छे से व्यतीत करना है तो जवानी को तरीके से जियो।
लेकिन समीर हमेशा उन की सीख को नज़रअंदाज़ कर देता था।
आज न समीर के पास जवानी है , न परिवार , न वक़्ती दोस्त , न पैसे,,,आज अगर कुछ समीर के पास है तो वो है एक मात्र बुढ़ापा और पछतावा।
आज समीर को पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं है , बीमार समीर आज कुर्सी पर बैठा बैठा यही सोच सोचकर दुनिया से चला गया कि काश उसने परिवार के साथ जवानी को जिया होता तो आज बुढ़ापे में उसका परिवार उसके अंतिम समय में उसके साथ होता और शायद उसका ऐसा अंत भी न होता।
#बुढ़ापा
शनाया