बुढ़ापा सबको आना है – संगीता अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

“चलो मेरी स्वीटहार्ट आपको अपनी बाइक की सैर कराता हूँ ” 

” चल शैतान.. इस उमर मे मैं क्या करूँगी बाइक पर बैठ तू अपनी असली स्वीटहार्ट को बैठा “

“अरे मेरी स्वीटहार्ट तो आप हो… मेरा पहला प्यार ….मेरा सब कुछ … मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ मेरी जान “!

” चल बेशर्म ” अब मेरे बाइक पर नहीं कंधे पर जाने के दिन हैं “! दादी ने मीठी झिड़की दी।

” अरे स्वीटहार्ट अभी तो आपको मेरे बच्चों को भी पालना है उन्हें हमारे प्यार की कहानियाँ सुनानी हैं “।

ये सँवाद हैं 65 साल की श्रद्धा देवी और उनके 19 साल के पोते आरव के…. दोनों मे बहुत प्यार है हो भी क्यों ना जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा उसने दादी के साथ जो बिताया.. उन्होंने ही उसे बड़ा किया .. आरव की माँ ऑफिस जो जाती हैं उसके बाद उनकी किटीज , समाज सेवा भी थी वो आरव को बहुत कम समय देती थी! आज आरव की दादी की तबियत थोड़ा खराब थी तो वो बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी इसलिए आरव उनका मन बहला रहा था । वैसे भी आरव जानता था दादी के कमरे मे उसके सिवा कोई आता भी नही जो दादी का अकेलापन दूर हो। 

“आरव ये क्या हर वक़्त दादी के कमरे मे घुसे रहते हो कभी हमारे पास भी आके बैठा करो । ” आरव की मम्मी अनु ने ऑफिस से आते ही कहा।

” जी मम्मा अभी आया दादी को दवाई देके दादी को बुखार और खाँसी है! ” आरव ने दादी के कमरे से आवाज़ दी!

” जी मम्मा ” थोड़ी देर बाद आरव ने आके पूछा।

” ये क्या अरु दादी को खाँसी है तो तुम्हे उनसे दूर रहना चाहिए कहीं तुम्हे कुछ हो गया तो ….उनकी देखभाल को वैसे भी कमला है ना।” अनु ने आरव से कहा।

” मम्मा मैं बचपन से अब तक कितनी बार बीमार हुआ पर अपने दादी से तो ये नही कहा कि मुझसे दूर रहें ” । आरव बोला।

” पर बेटा वो उनका फर्ज था… वैसे भी वो बड़ी हैं तुम बच्चे “। अनु ने उसे समझाया।

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” मम्मा तब वो उनका फर्ज था अब ये हमारा फर्ज है की उनकी देखभाल करें क्योकि तब हमें उनकी जरूरत थी अब बुढ़ापे मे उन्हे हमारी जरूरत है “! आरव ने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा।

” बेटा हम अपने फर्ज निभा रहे है उनके लिए पूरा दिन देखभाल को कमला को रखा हुआ है ना जिससे उन्हे कोई तकलीफ ना हो तुम बच्चे हो तुम्हे इन सबसे दूर रह बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए !” अनु बोली।

“मम्मा मैं अब बड़ा हो गया हूँ सब समझता हूँ । पापा का तो अधिकतर समय बाहर बितता है लेकिन आप भी तो हो आपको तो दादी ने हमेशा बेटी माना..हम सबका ध्यान रखा अब उन्हें हमारी जरूरत है । कमला काकी अपनी नौकरी करती है पर दादी को परिवार की जरूरत है। वैसे भी माँ- बाप जब बूढ़े हो जाते तो उनके बच्चे को ही उनकी देखभाल करनी चाहिए क्योकि बुढ़ापा तो सबको आता है “! आरव बोला ना जाने आरव के आखिरी वाक्य मे ऐसा क्या था कि अनु अंदर तक हिल गई। 

” कमला काकी दादी का खाना लाओ मैं अपने हाथ से खिलाऊंगा उन्हे जैसे दादी बचपन मे मुझे खिलाती थी !” थोड़ी देर बाद आरव दादी के कमरे से निकल बोला। आरव कि आवाज़ से अनु अपनी सोच की दुनिया से बाहर आई।

” बेटा दादी को खाना मे खिलाती हूँ तुम अपनी पढाई करो…! ” अनु ने खाने की प्लेट लेते हुए कहा!

” धन्यवाद मम्मा ” आरव मुस्कुराते हुए माँ के गले लगता बोला।

” धन्यवाद तुम्हे बेटा… कभी कभी बच्चे भी 

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उधर दादी के चेहरे की मुस्कुराहट देखते बनती थी क्योकि आज कितने समय बाद उनकी बहू उनके कमरे मे आई थी । उनके दिल से पोते और बहु के लिए ढेरों आशीर्वाद निकल रहे थे।

सच है दोस्तों हमारे बुजुर्ग हमसे थोड़ा वक़्त मांगते है बस और उसके बदले दुआओं की बरसात कर देते है ।

ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

#बुढ़ापा

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