तो फिर क्या निर्णय लिया आपने, छाया ने विवेक से पूछा। अरे इसमें सोचने वाली क्या बात है वो भाभी थी मेरी, जैसे भी हो वो मेरे बड़े भैया हैं आज अपने जीवनसाथी की मृत्यु के बाद उनकी हालत कैसी होगी मैं समझ सकता हूं। भले ही हम उनके दोनों बेटों की शादी में ना गए हो लेकिन इस दुख की घड़ी में मैं उनसे मिलने जरूर जाऊंगा। मैंने फ्लाइट बुक कर दी है कल ही हमें निकलना होगा बेंगलुरु के लिए। छाया कल के जाने के लिए अपने और अपने पति के कपड़े बैग में रखने लगी और विवेक करवट बदलकर अतीत की स्मृतियों में चला गया। दोनों भाइयों को आपस में मिले हुए 8 साल हो गए थे।
विवेक की मां अपने बड़े बेटे को याद करते-करते एक बार उसे देखने के लिए तरसती हुई ही इस दुनिया से चली गई थी। कितने फोन किए थे विवेक और छाया ने उन्हें बुलाने के लिए की मां के प्राण केवल आप में ही अटके हैं। लेकिन वह नहीं आए। और तो और उनकी मौत के बाद भी केवल एक दिन के लिए औपचारिकता निभाने आए थे। दोनों बच्चे तो आए भी नहीं थे। विवेक ने क्या कुछ नहीं कहा था अपने बड़े भाई कोउस समय लेकिन वो यह कहकर वहां से चले गए थे माँ शरीर का कष्ट ही भुगत रही थी अच्छा हुआ चली गई विवेक आश्चर्य चकित रह गया था कोई अपनी मां के लिए ही इतना निर्मोही कैसे हो सकता है?।
तब से आज तक उनका आपस में कोई संबंध नहीं था? बड़ी संतान में मां-बाप का विशेष प्यार होता है। विवेक की मां भी अपने बड़े बेटे आलोक से बहुत प्यार करती थी। आलोक की शादी के कुछ समय बाद ही पिताजी का देहांत हो गया था। कुछ समय बाद ही आलोक अपनी पत्नी के साथ बेंगलुरु में शिफ्ट हो गए थे। दो-तीन साल में एक बार मिलने आ जाता था। मां के बार-बार कहने पर एक बार मेरठ में आया हुआ आलोक अपनी मां को अपने साथ बेंगलुरु ले गया था।
कुछ समय तक तो ठीक था लेकिन मां का वहां रहना उनकी पत्नी और बच्चों को बहुत अखरने लगा था। मां इस सबसे अनजान नहीं थी लेकिन विवेक के मना करने के बाद भी खुद जिद करके अपने बेटे के पास आई थी इसीलिए उन्हें छोटे बेटे के पास वापस जाने में हिचकीचाहट हो रही थी। विवेक हर बार पूछता था मा आपका मन लग रहा है तो वह खुश होकर कहती थी हां बेटा लग रहा है। लेकिन कुछ दिनों से माँ की आवाज में काफी दर्द महसूस किया था विवेक ने इसलिए वह अपनी मां को लेने बिन बताए हीबेंगलुरु पहुंच गया था।रो ही पड़ा था वह मां की हालत देखकर 4 महीने में ही माँ की हालत नौकर से भी बदतर हो गई थी।
कितनी रोई थी वह विवेक के गले लगा कर। क्या-क्या नहीं सुनाया था विवेक ने आलोक को। मत भूलो भैया बुढ़ापा आप पर भी आना है आपके भी दो लड़के हैं। इतिहास अपने आप को दोहराता जरूर है। अरे कैसी औलाद हो आप ,मां ने हमें किस तरह से पाला है। मां और पापा की की तपस्या है आप आज जिस मुकाम पर खड़े हो। मुझसे ज्यादा तो आपने देखा है। अपनी मां को खून के आंसू रूलाए हैं। भगवान आपको कभी माफ नहीं करेगा। बिना समय गवाये ही विवेक अपनी मां को अपने साथ अपने घर लेकर आ गया था। मां को तो जैसे घुन लग गया था तब से मा की तबीयत खराब रहने लगी थी। बस यही कहती रहती थी
भगवान बुढ़ापा कभी किसी को ना दे। अपने पेट के जाए बच्चों पर भी बोझ बन जाते हैं मां-बाप। अपने जीवन साथी के न रहने के दुख से भी ज्यादा व्यथित माँ को उनकी औलाद के उपेक्षित व्यवहार ने कर दिया था। वहां से आने के बाद उन्हें ऐसा सदमा लग गया था कि उन्हें विवेक और उसके बच्चों को भी कुछ कहते हुए डर लगने लगा था। जबकि छाया और बच्चे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते थे की दादी बिल्कुल ठीक हो जाए। 1 साल बाद ही उनकी मृत्यु भी हो गई थी। सोचते सोचते ही विवेक को नींद आ गई थी। बेंगलुरु पहुंचकर आलोक अपने भाई के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ा। तुम्हारी भाभी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई।
मैं अकेला किस तरह जिऊंगा विवेक। अपने भाई को धैर्य दिलाते हुए उसकी आंखों से आंसू टपक बड़े। कोई से भी बच्चे को वहां ना देख कर विवेक ने पूछा तो आलोक में बताया दोनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो चुके हैं। उनकी मां उन्हें देखने के लिए आखिरी समय में तरसते हुए ही दुनिया से चली गई। बच्चों ने तो यह कह कर ब पल्ला झाड़ लिया था जब कैंसर जैसी घातक बीमारी है तो मां का दुनिया से जाना ही ठीक है। उन्हें अपने कष्ट से भी मुक्ति मिल जाएगी। सच कहा था विवेक तुमने।
हम कितनी भी ऊंचाइयों पर क्यों न पहुंच जाए हमारे ही कर्म हमें नीचे जरूर गिरा देते हैं? जब तक शरीर ठीक से काम करता है हमें लगता है कि जैसे हमें बुढ़ापा नहीं आएगा। तुम सही कहते थे इतिहास अपने आप को दोहराता है बस चेहरेरे ही तो बदल जाते हैं। । मां कभी अपने बच्चों को बद्दुआ नहीं देती। लेकिन अपने मां बाप का अपमान करने वाली औलाद को भगवान कभी नहीं बक्शते। सब कुछ होते हुए भी मैं आज बिल्कुल अकेला हूं।मेरा बुढापा भी एक सजा बन गया है। मां के आखिरी समय में मैं नहीं तो कम से कम तुम तो मां के पास थे। मेरे पास तो कोई भी नहीं है। सच ही तो कहा था आलोक ने। अपने भाई के लिए बहुत दुख हो रहा था विवेक को लेकिन अपने मां-बाप को दुख पहुंचा कर कौन दुनिया में सुखी रह पाया है भला?
सच ही कहां है किसी ने
जो बोएगा वही पाएगा तेरा किया आगे आएगा।
सुख दुख है क्या फल कर्मों का
जैसी करनी वैसी भरनी
पूजा शर्मा स्वरचित।
Beautiful❤❤❤… Nice story…..