इस बार ये पहला मौका है जब भाभी की अनुपस्थिति में मायका जाने का मौका मिलेगा । पाँच साल हो गए सुमित्रा भाभी को गुजरे हुए तब से इस बार भाभी के पोते की शादी में जाने का निमंत्रण आया है । जाना तो पड़ेगा ही, भतीजे की शादी के बाद ये पहला मौका होगा जब सब से मिलना होगा ।
समझ नहीं आ रहा जाऊं या रहने दूँ ? दोनों भाई सुखदेव और हरि भैया तो पहले ही चले गए , भाभियाँ थी इतनी ज्यादा पूछने वाली, अब वो भी रही नहीं, फिर किसके लिए जाऊं ? भतीजे – भतीजी तो पहले भी मुझे कम ही पसन्द करते थे । रूप से ही कम सुंदर और शादी भी कम पढ़ी – लिखी होने के कारण गरीब घर में हुई थी ।
वसुदेव जी (पति) की भी तबियत ठीक नहीं । क्या करूँ..?
60 वर्षीय नीलम जी बालकनी में बैठे – बैठे पुराने दिनों में खो गईं । उनके भतीजे के बेटे अक्षत की शादी थी । कार्ड वहीं मेज पर रखा था और वो अतीत के गलियारों में घूमने लगीं । जैसे ही दरवाजे की घण्टी बजी नीलम जी मानो नींद से जागीं । शाम का समय था । उनकी बहू शालिनी ऑफिस से आई थी ।
शालिनी ने नीलम जी को उदास देखकर पूछा…”आप क्या कर रहीं थीं मम्मी ? बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में ..। नीलम जी ने अक्षत की शादी का कार्ड दिखाते हुए कहा…”देख रही हो बहु ! अचानक लगा जैसे मायके घूम आयी । शालिनी ने नीलम जी को चाय का प्याला थमाते हुए कहा…”ऑफिस के लिए निकल रही थी तो देखी जब से कार्ड आया है आप सुस्त सी लग रही हैं।
अब धीरे – धीरे दोनों सास – बहू चाय पीने लगीं । शालिनी ने बातें करते हुए आराम से अपने पैर सोफा पर चढ़ाते हुए कहा…”सब भूल के शादी में जाइये मम्मी ! अक्षत की तो कोई बुआ भी नहीं हैं। तो शगुन मिलेगा सिर्फ आपको और विद्या मौसी को ।
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शालिनी ने मुस्कुराते हुए कनखियों से नीलम जी को निहारकर कहा ।तो नीलम जी ने भी फीकी मुस्कान बिखेर दिया । “नई पीढ़ी की पहली शादी है मम्मी ! तो जाना तो बनता है । कहते हुए शालिनी ने ट्रॉली निकाला और अच्छी – अच्छी पाँच साड़ियाँ नीलम जी को दिखाते हुए ट्रॉली में भर दिया
और अपने पति रितेश को फोन करके ऑफिस से घर थोड़ा जल्दी आने को कहा । तीन- चार घण्टे की दूरी पर नीलम जी के भाई- ,भतीजे का घर था । अब भी नीलम जी शांत थीं तो शालिनी ने कहा..”मम्मी ! आप उपहार की चिंता न करें और न ही पापा जी की , उनका ध्यान मैं रख लूँगी । रितेश आपको पहुंचा कर आ जाएँगे फिर शादी वाले दिन जाएँगे तो वहाँ देने के लिए उपहार लेते जाएँगे ।
नीलम जी ने चौकन्ना होते हुए अलमारी से एक साड़ी निकालते हुए पूछा..”क्या उपहार बहु ! ये जामदानी साड़ी देखो न ! ,बहुत पसंद है मुझे, यही लेते जाऊँगी देने के लिए । शालिनी ने अँगूठी दिखाते हुए कहा..”ठीक है मम्मी ! उसके साथ ये भी दे देंगे । अँगूठी को डिब्बे में समेटते हुए नीलम जी ने कहा..”इतनी हैसियत नहीं बहु ! अपने हिसाब से दूँगी । नीलम जी का हाथ पकड़ते हुए शालिनी ने कहा..”हैसियत तब कुछ और थी मम्मी, अब हमारी हैसियत आपकी भी है । नीलम जी ने टॉप्स को अलग कीमती की तरह पर्स में रख लिया और साड़ी ट्रॉली में डाल दिया ।
फिर नीलम जी के चेहरे के भाव पढ़ते हुए शालिनी ने कहा..मम्मी ! कुछ और चाहिए तो कहिए न । फिर नीलम जी ने कहा मेरे हाथों के बने अचार , पापड़, मुरब्बा और वड़ी मेरे भतीजे और भतीजियों को बहुत पसंद आता था, अगर तुम नाराज न हो बहु तो थोड़ा भर लूँ क्या ? रितेश ने गुस्साते हुए कहा..”क्या मम्मी ! आजकल कोई नहीं ये सब खाना चाहता, सबका स्वाद बदल गया है । सब हमारे से अच्छे ओहदे वाले हो गए हैं, कोई नहीं ये सब देखना चाहेगा । अगर आपको बेज्जत होना है तो ले जाओ । शालिनी ने अपने पति को समझाते हुए कहा..”तसल्ली होगी मम्मी को, ले जाने दीजिए न ।
अब निकलने का दिन आ गया । रितेश और नीलम जी के साथ शालिनी भी स्टेशन छोड़ने गई ।
दिए हुए सही पते पर पहुंच गए । तिलक की तैयारी थी , पैसे तो अथाह था लोगों के पास पर बिल्कुल सादगी प्रिय थे और शहर से गाँव में शादी करने आए थे ।
घर में बहुत भीड़ थी लेकिन बुआ को पहचानने में किसी ने देर नहीं लगाई । सबसे पहले अक्षत और उसकी मम्मी ने बुआ के चरण स्पर्श करके उन्हें अंदर बुलाया । फिर सप्रेम बैठाकर उनका भतीजा अपने हाथों से चाय बनाकर बुआ को पिलाया । “बड़ी सी सुंदर सुमित्रा भाभी की तस्वीर की ओर दिखाते हुए अक्षत ने कहा…”बुआ दादी ! ये दादी हैं । नीलम जी ने प्रणाम किया फिर सारे पुराने नए पीढ़ी बारी – बारी से आकर बुआ को गले लगा रहे थे ।
बुआ की आँखें भर आईं सबके प्रेम देखकर । घर के अंदर गईं तो पूरा घर का नक्शा , रंगत बदला हुआ था पर अपनापन में कोई कमी नहीं थी । जो सोचा भी नहीं था बुआ ने वो सब पाया । घर की सभी महँगी चीजों को बुआ प्यार से देखती जा रही थीं तभी अक्षत की बहन भूमि ने कहा.. “बुआ दादी ! हमारे लिए क्या लायी ? नीलम जी एक नज़र अपने हाथों से बनी चीजों को देखतीं तो कभी मायूस होतीं । कभी जी में आया भी की निकाल कर सबको दे दूं पर फिर ध्यान आया ये वो बच्चे नहीं रहे अब जो मेरे चीजों के चटोर हुआ करते थे, कहाँ से किस ओहदे तक आ गए, इन्हें कहाँ भाएगी ये चीजें ?
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रात को तिलक के बाद रितेश माँ से आज्ञा लेकर और शादी में आने की बात कह के चला गया ।
चारों तरफ चकाचौंध, गीतों की गूँज और महिलाओं की स्वर लहरी में कब शादी का दिन आ गया पता ही नहीं चला ।
नीलम जी ने सोचा थोड़ी देर में पहुंचता होगा रितेश । मुझे देखेगा ये बांटते तो नाराज होगा, फिर से उन्होंने एक नज़र अचार पर डाला और अंदर रख दिया ।
सब शादी में मशगूल थे । अगले दिन जब शादी के दुल्हन को लेकर अक्षत घर के अंदर आने लगा उसने सबका परिचय कराया । नीलम जी और उनकी बहन विद्या को देखते हुए कनखियों से इशारा करते हुए अक्षत ने दुल्हन को बताया…”ये दोनों हमारी हुनरमंद बुआ दादी हैं । एक सिलाई, बुनाई में कुशल तो एक का जवाब नहीं..हर एक चीज में स्वाद आ जाता है इनके हाथों से । नीलम जी ने धत बोलते हुए खुद को किनारे किया तो अक्षत ने बुआ को जोर से पकड़ कर कैमरामैन को फोटो लेने बोला और कहा..”बुआ दादी ! आप जो बैग में लेकर आए हो मैंने देख लिया । नीलम जी के पास कुछ शब्द नहीं थे ।
अब द्वार से अंदर आकर सारी रस्मे पूरी हुईं । अक्षत ने मम्मी से कहा…”मम्मी ! खाना के साथ जो अचार बुआ दादी ने लाया है वो भी चाहिए । नीलम जी अवाक थीं फिर भी उन्होंने पूछा..”तुमने कब देखा ? अक्षत ने हँसते हुए कहा…”बुआ दादी आपकी पोटली पर तो मेरी नज़र पहले भी रहती थी,
और आज भी मुझे उम्मीद था आप लाएंगी, मैंने पहले ही चेक कर लिया था । सोचा आप निकाल कर दे ही दोगी । अब नीलम जी अपनी पोटली लाकर सभी मेहमानों के सामने रख दीं और चिप्स, पापड़ को हलवाई को दिया तलने । अक्षत ने दुल्हन की थाली में भी परोसने बोला । उसने भी कहा..वाह बुआ ! आपकी पोटली की शादी से पहले हरदम चर्चा होती थी क़ स्वाद भी ले लिया, मुझे बहुत पसंद हैं घर की ये देशी चीजें । साथ मे सभी मेहमान ने खाकर जम के तारीफ की ।
अब नीलम जी के जाने का समय हो गया था । भतीजे और बहू ने मिलकर तोहफे की बौछार लगा दी और नई बहू भी प्रणाम करके नीलम जी से गले मिली फिर नीलम जी ने चुपके से पर्स से निकालकर टॉप्स दिया । जैसे ही अक्षत ने देखा तो हाथ पकड़ते हुए कहा..”इतना झिझक क्यों बुआ दादी ? आपकी भी बहु है आप उसके उंगली में पहना दीजिए । नीलम जी ने झट से दुल्हन की उंगली में पहना दिया और दुल्हन ने कहा…”आइयेगा बुआ दादी, आपको जैसा सुना बिल्कुल वैसा पाया, इतनी सारी खाने की चीजें भी नहीं भूलूँगी ।
भतीजे , बहु, बहन और अन्य रिश्तेदारों से लिपट कर भावुक हो गईं नीलम जी । मुठ्ठी भींच कर इस कदर रोयीं मानो अभी नई – ,नवेली बेटी मायके से विदा हो रही हो । हाथ जोड़ कर भतीजे से कहा..”लगा ही नहीं कि मेरे भैया भाभी की कमी है इस घर में, कोई कसर नहीं छोड़ा तुम सबने ।
“आती रहना आप बुआ दादी ! अच्छा लगा आप आईं वरना आपके बिना ये शादी में कोई रौनक नहीं होता । जो भी हमलोग से भूल हुई हो जाने अनजाने में तो माफ करिएगा । हमारी दादी की दिली इच्छा थी कि हम उनकी ननद का स्वागत सब कुछ पुराना भूलकर इक नई शुरुआत से करना चाहते थे । ये घर आपका है और रहेगा सदा । जब मर्जी हो स्वागत है ।
बुआ दादी के सभी सामान बारी – बारी से गाड़ी के अंदर रखवाया और बुआ ने सबसे अच्छे से विदा लिया ।
मौलिक, स्वरचित
(अर्चना सिंह)