नैतिक स्कूल से आकर अपनी मम्मी से पूछता है,”मम्मी हमारी बुआ राखी पर क्यों नहीं आती? सब की बुआ आती है।”
वह तुम्हारी बुआ दूर रहती है ना मम्मी ने नैतिक को टालना चाहा।
“दूर रहती है तो क्या हुआ? राखी तो भेज ही सकती है ना।” नैतिक तर्क करते हुए बोला।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मम्मी ने नैतिक को बहकाना चाहा।
परंतु आज नैतिक जिद पर ही अड़ गया।
आखिरकार मम्मी को बताना ही पड़ा,”जब तुम्हारे बाबा खत्म हुए थे, तब तुम्हारे फूफा जी की आर्थिक स्थिति कुछ खराब हो गई थी। बुआ ने बाबा की जमीन जायजाद में से कुछ हिस्से की मांग करी। तब तुम्हारे पापा बहुत गुस्सा हुए। बुआ के हिस्से मांगने की बात सुनकर सुनकर सारे खानदान को लगा कि लड़की ने हिस्सा मांग कर बहुत गलत किया है। सब ने कहा कहा कि एक बार ब्याह कर दिया। अब हमारा कोई मतलब नहीं है।
लड़ाई झगड़े की वह खाई आज तक भी नहीं पटी है।”
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इसमें बुआ कि क्या गलती थी? बाबा की जायजाद में उनका भी तो हिस्सा बनता था। अगर उन्होंने कह दिया तो इसमें कौन सी गलत बात थी।
नैतिक ने कहा,”अगर कल को मैं यह कहूं कि पापा की सारी जमीन जायजाद मेरी है। शादी के बाद मेरी बहन मानसी का इस पर कोई हक नहीं है, तो आपको कैसा लगेगा?”
नैतिक की मम्मी उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गई।
नैतिक के पापा मनोहर दूसरे कमरे में से सारी बात सुन रहे थे। मानसी के बारे में नैतिक के मुंह से ऐसा सुनकर उनके तो पैरों तले जमीन खिसक गई। मानसी तो उनके जिगर का टुकड़ा है, जिसे वह नैतिक से भी अधिक प्यार करते है।
तो फिर उनकी बहन सुरभि की क्या गलती थी? वह भी तो कभी घर की बहुत लाडली हुआ करती थी। कितना प्यार करते थे वह दोनों बहन भाई एक दूसरे को। लेकिन ऐसा क्या हो जाता है कि विवाह के पश्चात अपनी संतान पैदा होने के बाद और दूसरे रिश्ते खटकने लगते हैं। जिस बहन को मनोहर जी जान से प्यार करता था वह उसके लिए इतनी पराई कैसे हो गई?
जमीन जायदाद के लोभ लालच में उन्होंने भाई बहन के पवित्र रिश्ते को मतलबी रिश्ता समझ लिया।
10 साल बिता दिए गए बिना बात करें। समस्या चाहे कोई भी हो भी हो, उसका समाधान बातचीत से ही संभव होता है। लेकिन उन्होंने तो जो लकीर खींची थी उसे कभी पार ही नहीं किया जा सका।
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आज नैतिक के पापा को अपनी भूल का एहसास हुआ। बेटियां विवाह के बाद परायी नहीं होती। वह सदैव घर आंगन की रौनक होती हैं । घर का हिस्सा होती है बेटियाँ।
आज उसे अपनी गलती का बहुत एहसास हुआ। मनोहर पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा। एहसास भी कब हुआ हुआ जब अपनी बेटी की बारी आई। बहन और बेटी में इतना फर्क क्यों?
आखिर बुआ भी तो घर की बेटी हुआ करती हैं। पर व्यक्ति इतना फर्क क्यों करता है?
मनोहर ने सबके सामने अपनी भूल स्वीकारी। अपनी बहन सुरभि को फोन लगाया। 10 साल बाद भाई-बहन का एक दूसरे की आवाज सुनकर गला भर आया। दोनों की आंखों से पानी बरसने लगा। दोनों खूब एक दूसरे से अपने के लिए शिकवे बताने लगे। 10 वर्षों से रिश्तों पर जमी धूल आज नैतिक की समझदारी से हट गई।
कच्चे धागे से बंधा यह रिश्ता आज फिर मजबूत हो गया। भाई बहन के प्यार का बंधन बहुत मजबूत होता है जो बंधता तो कच्चे धागों से है पर जोड़ बहुत मजबूत लगाता है।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर
#बहन