आज सुबह से माही के आने की तैयारी चल रही थी। कभी सोनल अपने पति सुमित कहती- देखोजी दीदी के आने पर हमें कोई कमी न रखने है। साल में एक बार ही तो राखी का त्योहार आता है, तब सुमित कहता है क्या मैं कहीं कोई कमी रखता हूं! सोनल तू बता न…क्या लाना है? फिर सोनल किचन के चारों ओर नजर दौड़ा कर कहती
-अजी सुनते हो, मैं ये कह रही हूं कि खाना तो मैनें पूरा तैयार कर लिया है। पर आप उनके मन की खोवे की जलेबी और मिल्क केक ले आते तो कितना अच्छा रहता है ना…. तब सुमित हां में हां मिला कर कहता है हम अपनी बहन को कोई चीज की कमी थोडे़ ही रहने देगें।
फिर सोनल ननद को देने के लिए गिफ्ट पैक करती है, तभी डोरबेल बजती है और सुमित कहता – लगता है शायद माही आ गयी। मैं देखता हूं। और वह दरवाजे खोलकर देखता है, तभी उसकी रमा बुआ आती है वो उन्हें अंदर बुलाकर बैठाता है तभी अंदर से आते हुए सोनल पूछती है -“अरे सुमित कौन आया है, कोई आवाज़ समझ न आई तो मैं यहां तक आ गयी। अगर दीदी होती तो सबसे पहले उनकी आवाज मेरे कानों में गूंजती। “
तब वो कहता -अरे बुआ जी आई है … सुनो पानी ले आओ, थक गयी होगी… हां आओ- आओ बुआ… आप इतनी दूर से आती हो थकी तो होंगी ही…. और आप कितने बजे बैठी बस में? काफी भीड़ रहती त्योहार में…. तब बुआ कहती -सुमित बेटा भीड़ तो रहती त्योहार में, तीन घंटे लग गये मुझे और क्या….
इस कहानी को भी पढ़ें:
इतने में सेजल कहती- बुआ जी आप त्योहार की भीड़ में बेकार ही इतनी परेशान होती है। आप को सुबह से जल्दी निकलना पड़ता होगा, ऊपर से भीड़ अब आप मत आया करो ,राखी में ऐसा किया करो कोई इस तरफ आए तो उनके हाथ राखी भिजवा दिया करो या इनको फोन कर लिया करो। हम लोग आ जाया करेंगे।
तब बुआ कहती – मायके की देहरी आने में मुझे जो खुशी होती है न वो तुम लोग नहीं समझ सकते हो वो हम ही समझ सकते हैं।
अब सेजल नाश्ते की प्लेट लाकर रोली टीके की प्लेट देते हुए कहती है- बुआ जी अब तो हमें राखी बांध दो।
और वो दोनों राखी बंधवा लेते हैं। राखी बांधने के बाद जैसे ही बुआ जी अपने हाथों की बनी मिठाई खिलाने को डिब्बा खोलती है, तब सेजल और सुमित कहते हैं बुआ जी आप तो हमें प्लेट की मिठाई से ही मुंह मीठा करा दो ,आपके हाथ की बनी मिठाई तो मीठी होगी वो तो हमसे न खाई जाएगी। ऐसा करो
आप इसे बैग में ही रख लो। तब बुआ कहती -“अरे बेटा कैसी बातें कर रहा है , ये मैनें घर पर दूध ओट कर बनाई है,खा कर के देख तो जरूर पसंद आएगी।पहले मैं राजा रसगुल्ले वाले की रसगुल्ले लाती तो वो भी अच्छे न लगते थे।बेटा इस बार भी ऐसा कह रहा है….फिर सुमित कहता- अरे बुआ छोडो़ ना,,
ये खाओ या वो…कुछ नहीं होता…और बुआ जी ये लो हम दोनों की तरफ ये दो सौ रूपये रख लो। वो दो सौ रूपये बड़े ही मन से रख लेती है।
इतने में दरवाजे खुले होते है, तब घर पर कार रुकने की आवाज आती है ,तब सोनल कहती लगता है माही दीदी आ गयी है…. वो खड़े होकर बाहर की तरफ झांककर देखती है ,तब उसे ननद दिखती है। वो तुरंत ही बाहर जाती है ,तब वह कहती – “अरे सुनो जी,दीदी आ गयी, वो कहती है कि दीदी हम लोग तो आप का ही इंतजार कर रहे थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
कब आप आओ और हम लोग कुछ खाए पिये ,तेरे भैया ने अभी तक कुछ नहीं खाया । आप लेट कैसे हो गई? ” तब माही बोली -” मेरी भी ननद आ गयी, क्योंकि उन्हें अपनी ननद के यहां शाम को जाना था तो पहले हमारे यहां ही आ गयी।” यही कहते हुए माही अंदर आती है। और बुआ को देखकर गले लगते हुए बोलती – बुआ जी….
आप कब आई? यहां मिलना तो हो ही जाता है, हम अलग से मिल ही नहीं पाते,,केवल सोचते रह जाओ। तब बुआ बडे़ ही स्नेह के साथ उससे गले लगाकर कहती है तुझे कितना तो बुलाती हूं ,तुम तो आ ही नहीं पाती हो। हां -हां बुआ आप सही कह रही हो, अब जल्दी ही आऊंगी। पक्का वादा है बुआ जी……
तब दोनों भाभी भैया बहुत खुश होते हैं पूछते कि बहना बता तुझे क्या खाना …इतने में माही कहती- भैया भाभी पहले राखी तो बंधवा लो। फिर खाना पीना चलता रहेगा,तो वो कहता हां- हां बंधवाता हूं।
अगले ही पल सुमित कहता है बुआ जी आपके हाथों की चाय कितने दिनों से नहीं पी, आप बनाएंगी क्या !!!तब फिर बुआ खुशी- खुशी कहती,हां हां हम चाय बना कर पिला देगें उसमें कौन सी बड़ी बात है….वो किचन की ओर चली जाती हैं।
इतने में सुमित बहन माही से कहता चल अब तू राखी बांध दे, हम दोनों को, और माही राखी, टीका करके, मीठा खिलाती है। और भाई भी बहन माही को पांच हजार एक रुपये देकर कहता है ये बहन रख ले नहीं तो बुआ देख लेंगी तो फिर क्या कहेंगी। हम उन्हें केवल दो सौ रूपये देते हैं।
क्या कह रहे हो भैया माही हैरान होकर पूछती है! दो सौ रुपये…और चाय बनाते- बनाते जब बुआ जी को इलायची नहीं मिलती तो वो आकर ये बात सुन लेती है। उनकी आंख में आंसू भर जाते हैं, तब उनकी नजर माही से यकायक मिल जाती है। तो बुआ को देखकर माही कहती – ” बुआ जी आप दुखी क्यों हो रही हो?
पता नहीं भैया की सोच कैसी है ,जो आपके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। वे ऐसा सोच पा रहे है। क्यों भैया!!बुआ पापा को कितना मानती थी, और पापा भी बुआ पर कितनी जान छिड़कते थे। और कभी ऐसा नहीं हुआ बुआ ने पापा को राखी न बांधी हो।” तब हकलाते हुए सुमित कहता – हम तो यही चाहते कि अब पापा नहीं है तो बुआ काहे को यहां आने जाने में परेशान हो।
उसी समय सोनल भी कहने लगती दीदी अब पापा तो रहे नहीं तो जरुरी थोडे़ ही है कि बुआ से राखी बंधवाई ही जाए। वो तो भाई बहन का राखी त्योहार है। ये सब सुनकर रमा बुआ कहती वो तो मैंने भाई से वादा किया था कि मैं मायके की देहरी कभी न छोडूं। इसलिए भाई की याद करके यहां चली आती हूं। मुझे यहां आकर सुकून मिलता है।
तब माही उनके बहते आँसू को पोंछते हुए कहती भैया आप जो बुआ की मिठाई देखते हो, वो सही नहीं है, ये नहीं देखते बुआ ने क्या कुछ नहीं किया, न तो घर में हिस्सा लिया, न ही अपने भाई से कोई कभी मांग की, उन्होंने अपने घर में कितने ही कष्ट सहे पर पापा के सामने उफ तक न की। उसका ये सिल्ला मिला!!!
क्या ये सही है? भैया बुआ ने तो आज तक कुछ लिया ही नहीं। कम से कम उनका सम्मान तो रहने दो। बुआ भी तो एक बहन है वो भतीजे को राखी इसीलिए बांधती है कि भैया के बाद भी मायके का आना जाना बना रहे। बुआ को यहाँ आकर सुकून मिलता है।
इस कहानी को भी पढ़ें:
तब बुआ के आंसू देख सुमित उनको बैठाते हुए कहता- ” माही सही कह रही है। आपने कभी यहां से कुछ नहीं लिया। पर शायद आप पैसै वाली होती तो मेरी नजर में अलग ही सम्मान होता है। हम पढ़े लिखे लोग डिब्बे पैक मिठाई को अच्छी समझ लेते हैं।
आपकी बनाई मिठाई की कद्र तक न करते हैं।” तभी सोनल के भी भाव बदलते हुए कहती – ” हा हां बुआ जी इनके साथ मेरी भी गलती है मैं भी आपको कभी समझ नहीं पाई। ” तब बुआ जी बोली- तुम्हारे पापा ने हमसे वादा किय था मैं रहूं या न रहूं पर घर आना मत छोड़ना, मेरे बदले की राखी मेरे बेटे सुमित को बांधना।
जिस समय तेरे पापा ने वादा लिया उसी दिन से मैं तुझे राखी बांध रही हूं। मेरी आत्मा नहीं मानती कि तुझे राखी न बांधू। इतना सुन दोनों सुमित और सोनल कहते माही दीदी ने हमारी आंखे खोल दी। अब हमारे मन में ऐसे विचार भी आए तो दो थप्पड़ जड़ देना। पर हमें माफ़ कर दो।
इस तरह बुआ जी ने भी उनके भावपूर्ण माफी से उनके ऊपर हाथ फेरने लगी। बेटा तुम लोग मुझे दो या ना दो पर मैं चाहूंगी कि बड्डपन बना रहे। बड़े होने के नाते यहां आती जाती रहूं।
तब वो दोनों हां बुआ जी आप हम पर आशीर्वाद बनाये रखे।
इस तरह राखी के त्योहार में खुशी खुशी लौट गयी।
स्वरचित रचना
अमिता कुचया
# बहन