आज सुबह से ही सर दर्द के मारे फटा जा रहा था सोचा था संडे की सुबह है तो जल्दी से नाश्ता निपटा कर कहीं आउटिंग पर जाएंगे लेकिन दर्द के मारे तो हाल बेहाल है। सभी अपने अपने कामों में व्यस्त हैं सुनील ऑफिस का काम निपटा रहे हैं, तो बगल में बैठा किट्टू मोबाइल गेम में मस्त है किसी को कोई फिक्र ही नहीं है मेरे दर्द से किसी को कोई वास्ता नहीं सोच सोच कर दुख के मारे विनीता और बेचैन हो रही थी।
अब तो दर्द के कारण जी भी मिचला रहा है, हे भगवान मेरे किस कर्म की सजा दे रहा है मुझे?
किट्टू सुन ना बेटा थोड़ा मेरा सर दबा दे!
मां डिस्टर्ब मत करो!चुपचाप लेटी रहो ना! आप देख रही हो ना मैं खेल रहा हूं! एक संडे ही तो मिलता है चैन से खेलने के लिए आपसे वह भी नहीं देखा जा रहा है!
कैसे बात कर रहा है तू अपनी मां से तुझे अपनी मां की कोई परवाह नहीं?
अरे मां दवाई खा लो ना आराम मिल जाएगा..!
अब दर्द हो रहा है तो मैं क्या करूं? कामवाली दीदी आएंगी अभी तो उनसे दबवा लेना!
दु:ख अतिरेक में आंखों के कोर गीले हो गए!
क्या यही दिन देखने के लिए मैं औलाद के लिए मरी जा रही थी! यही संस्कार दिए हैं मैंने तुझे! गुस्से से डांटते हुए विनीता ने कहा!
अब मुझे क्या पता मां यह तो आप जानो मैंने तो बस वही कहा जो आप से सीखा है!
मुझसे सीखा है? क्या बकवास कर रहे हो मैंने कब सिखाया कि तुम मुझसे इस तरह से बातें करो?
जब दादी आई थीं अपने घुटनों का ऑपरेशन करवाने के लिए.. उनको कितना दर्द हो रहा था मैंने अपने कानों से सुना था आप मासी से फोन पर कह रही थी कितना परेशान करती हैं सारा दिन यह नहीं चुपचाप बैठी रहे दर्द हो रहा है तो मैं क्या करूं? दवाई खाकर आराम करें!
फिर काम वाली दीदी ने आकर थोड़ा सा नारियल तेल लेकर दादी के घुटनों की मालिश की थी तो दादी आराम से लेट गई थी!
लेकिन आपने तो एक बार भी दादी के पैरों की मालिश नहीं की बल्कि जब दादी दर्द से कराहती थीं तब आप या तो फोन पर बातें करती रहती थी या टीवी देखती रहती थीं बस यही मैंने आपसे सीख लिया!
किट्टू ने जैसे विनीता को आईना दिखा दिया हो आज उसे अपनी सासू मां कविता जी के दर्द का एहसास अंतर्मन की गहराइयों से हो रहा था।
सचमुच जो बोए पेड़ बबूल के तो फूल कहां से होय!
कविता जी शुरू से ही अपने पुश्तैनी घर में गांव में रही ! दो बेटों की मां कविता जी सदैव अपने भाग्य पर इतराया करती थी उनके पति रामसखा जी हरदम उनसे कहते कि तुम तो झूले पर बैठ कर राज करोगी दो दो बहुओं का सुख तुम्हें नसीब होगा!
एक-एक करके दोनों बेटों की शादी हो गई और दोनों अपनी अपनी बहुओं को लेकर गांव छोड़कर शहरों में बस गए आखिर अपने परिवार का पालन पोषण भी तो करना था लेकिन कविता जी और रामसखा सदैव अपने गांव में ही रहे।
एक दिन सुबह-सुबह रामसखा जी को अत्यधिक बेचैनी अनुभव हुई और जब तक कोई समझ पाता कि उनको क्या तकलीफ है वह इस नश्वर संसार से विदा ले चुके थे।
अपने पति के विछोह में कविता जी ने उनकी यादों को ही अपने जीने का सहारा बना लिया था इसीलिए कभी भी उन्होंने अपने बेटों के साथ रहना मंजूर नहीं किया लेकिन जब उम्र के इस पड़ाव में उनके घुटनों में दर्द होने लगा और डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा तब वह मजबूरी में अपने बड़े बेटे सुनील के पास आई थी क्योंकि छोटे बेटे की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह मां के घुटनों का ऑपरेशन करवा सके। बस इसी बात को लेकर कितना उपेक्षित व्यवहार किया था विनीता ने कविता जी के साथ एक-एक करके चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने सारा मंजर घूमने लगा….!
कविता जी जब दर्द में कराह रही होती तो विनीता उन को झिड़क देती थी अरे मां दवाई खा लो ना आराम मिल जाएगा क्यों हल्ला करती रहती हो सारा दिन..!
जबकि कविता जी को दवा से ज्यादा विनीता के साथ और स्पर्श की जरूरत थी।
सुनील ऑफिस से आ कर मां का हालचाल पूछता तो वह अपने दर्द को छुपा कर कह देती बेटा मैं ठीक हूं तुम जाओ आराम करो सुबह तुम्हें फिर काम पर निकलना है क्योंकि सुनील का काम ही ऐसा था सुबह 8:00 बजे निकलता तो रात को 10:00 बजे वापस आना होता।
अब उसकी इतनी व्यस्त दिनचर्या में कविता जी उससे अपना हाल क्या बयां करती!
एक मालिश वाली लगवा कर विनीता ने अपने कर्मों की इतिश्री कर ली थी शायद इससे ज्यादा वह अपनी सासू मां के लिए कोई भावना नहीं रखती थी।
इसीलिए तो ऑपरेशन के कुछ दिन बाद कविता जी अपने गांव वापस आ गई थी जब सेवा नौकर चाकर से ही करवाना है तो अपने गांव के पहचान वाले क्या बुरे हैं कम से कम उनके स्पर्श में स्नेह और अपनापन तो रहता है।
अपने दर्द की तड़प भूल कर विनीता ने तुरंत कविता जी को फोन लगाकर उनका हालचाल पूछा और सुनील से कहा की अबकी छुट्टियों में वह कहीं नहीं जाएगी अब वह ज्यादा से ज्यादा समय मां के साथ बिताना चाहती है।
सचमुच संस्कारों की नीव बच्चों में परिवार से मजबूत होती है।
धन्यवाद 🙏
कामिनी सजल सोनी
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