बेटा..! थोड़ा बाथरूम तक ले चल मुझे…! कब से चिल्ला रहा हूं…?
मदन जी ने अपने बेटे कार्तिक से कहा…
कार्तिक: ओह…हो… तंग आ चुका हूं अपने जीवन से… ऑफिस से थक कर घर आओ, फिर इनकी चाकरी में लग जाओ… चलिए…! बस मेरा अब यही काम ही तो रह गया है…
कार्तिक ने चिढ़ते हुए कहा…
कार्तिक और उसके पापा ही थे उस परिवार में… कार्तिक की मां को गुज़रे अभी 6 महीने ही हुए थे और कार्तिक की अभी तक शादी नहीं हुई थी…
सुबह जब वह ऑफिस जाता, तो एक औरत लता आती थी… जो मदन जी की देखभाल के साथ साथ, खाना भी बनाती थी… मदन जी अस्वस्थ थे और बिस्तर पर थे… इसलिए दिन भर उनकी देखभाल के लिए, कार्तिक ने लता को रखा था और शाम को उसके आने के बाद, लता चली जाती थी..।
कार्तिक भी बस एक मशीन बन कर रह गया था… सुबह ऑफिस और शाम को पापा की देखभाल… चैन और आराम तो जैसे वह भूल ही गया था… एक रात कार्तिक जब पूरी गहरी नींद में था, तब मदन जी ने अचानक शोर मचाना शुरू कर दिया… कार्तिक हड़बड़ा कर अपने पापा के पास जाकर उनसे पूछता है… क्या हुआ पापा..? कोई तकलीफ है क्या..?
मदन जी: बेटा…! वह तू धीरे-धीरे सुन नहीं पा रहा था… इसलिए शोर मचाना पड़ा… मुझे बहुत तेज भूख लगी है… रसोई में कुछ है क्या..?
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कार्तिक: पर पापा..! आपको तो मैंने कितना कहा..? थोड़ा खाना खा लीजिए… पर आपने ही कहा.. बिल्कुल भी भूख नहीं है… इसलिए तो मैंने आपके पास यह बिस्किट भी रख दिया, ताकि अगर रात को भूख लगे तो आप खा ले… और यह बात मैंने आपको बताई भी थी…
मदन जी: पर मुझे बिस्किट नहीं खाना…
कार्तिक: अब इतनी रात को और क्या मिलेगा पापा…?
मदन जी: बेटा..! थोड़ी सी दलिया ही बना देता…
कार्तिक: अब यह क्या बात हुई पापा..? पूरे दिन भागा दौड़ी करता हूं, रात को भी अगर चैन से नहीं सोऊंगा… तो अगले दिन काम पर कैसे जाऊंगा..? मानता हूं.. आप लाचार है, पर आप मेरी लाचारी भी तो समझिए…
मदन जी: वाह बेटा..! अब तू पापा की बातों से परेशान होने लगा…? मैं भी जब दफ्तर से लौटता था, तो थका हारा ही होता था… पर फिर भी मन ना होते हुए भी तेरा घोड़ा बनता था.. इतना ही नहीं, रात को ना जाने कितनी ही बार तू जागता था और फिर जब तक तू वापस से ना सो जाए… मैं भी तेरे साथ जागता था… हां तब तू बच्चा था… और अब मैं बुढ़ा हूं…
उस वक्त जैसे तू मुझ पर और तेरी मां पर निर्भर था… इस वक्त मैं तुझ पर निर्भर हूं, क्योंकि मेरा तन मेरा साथ नहीं दे रहा…. मैं तो पिता था… मेरा तो वह कर्तव्य था, तेरी परवरिश करना… पर जरूरी नहीं बदले में औलाद भी वही करें…
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कोई बात नहीं बेटा..! अब से तुझे परेशान नहीं करूंगा… जो तू खाना देगा, तो खा लूंगा और जो ना दे तो पानी से ही काम चला लूंगा… अब तेरी मां तो रही नहीं, जो मेरे हर चीज़ का ध्यान रखें…
कार्तिक: हां… सही कहा आपने पापा… आज आपको लग रहा है कि मैं कितना परेशान हो रहा हूं, आपकी बातों से..? क्योंकि आपने मेरे लिए बहुत किया है… आपको इसलिए बुरा भी लग रहा है… पर मां भी तो आपके लिए बहुत करती थी… उनको भी तो कितना बुरा लगा होगा, जब आप उनसे परेशान हो रहे थे..?
अरे… मशीन को भी कुछ पल का आराम दिया जाता है… पर मां को कभी आराम नसीब हुआ ही नहीं… आज जब आप खुद बिस्तर पर लाचार पड़े हैं… तब आपको मां की अहमियत का पता चला… मैं तो यहां रहता नहीं था और मां के पेट दर्द को आपने कभी गंभीर लिया ही नहीं… और ना ही कभी मुझसे कुछ कहा… आप बस उन्हें पेन किलर देते रहे, और अपना काम करवाते रहे… जिससे उनकी इतनी गंभीर बीमारी का हमें पता नहीं चला..
अगर आपने ज़रा सी भी उनकी परवाह की होती, तो शायद आज मां हमारे बीच होती… पापा..! मैं तो जहां तक सकूंगा आपकी सेवा करूंगा… क्योंकि यह भी मां के ही दिए हुए संस्कार है… भले ही कभी-कभी मैं आपको उल्टा सीधा बोल देता हूं… क्योंकि मैं भी इंसान हूं, तंग मैं भी होता हूं… पर आपकी सेवा कभी नहीं छोडूंगा… क्योंकि मां हमेशा कहती थी, माता पिता की सेवा से बड़ा धर्म और कुछ नहीं… खैर मां ने तो वह मौका दिया नहीं… तो आपकी सेवा में, मैं कोई कसर नहीं छोडूंगा…
आज मदन जी बिस्तर पर पड़े पड़े सिर्फ आंसू बहा रहे थे… क्योंकि कार्तिक की कही हुई एक एक बात सच थी…
दोस्तों… माता-पिता की सेवा करनी चाहिए… यह तो हम अक्सर सुनते हैं… पर कभी कभी बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता पर चिढ़ने लगते हैं… सेवा करना तो दूर, उनका हाल-चाल भी नहीं पूछते हैं… तो हर वक्त गलती बच्चे की ही नहीं होती… क्योंकि शायद उनका यह बर्ताव उन्होंने अपने माता पिता को ही देखकर सीखा होगा… और यह इस कहावत को सिद्ध भी करता है…. बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से खाओगे..? मेरे यह विचार मेरे अपने हैं. मैं किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती… अगर फिर भी इसमें कुछ भी गलती आपको लगती है, तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं….
धन्यवाद
#5 वां जन्मोत्सव
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
रोनिता कुंडू