“बोझ” – सेतु

शहर के बड़े रईसो में गिने जाने वाले राजकुमार जैन जी के इकलौते पुत्र यश से विवाह की बात पक्की होते ही अर्चना को चारों तरफ से बधाई संदेश आने लगे थे.सोशल मीडिया में तो जैसे शुभकामनाओं का तांता सा लगा हुआ था.

यश और अर्चना की मुलाकात कुछ महीनों पहले एक विवाह समारोह में हुई थी.

समारोह में अर्चना ने महसूस किया था कि दूल्हे के दोस्तो में से एक लड़का लगातार उसे छुप छुप कर देख रहा है.वो जिधर भी जाती थी वो लड़का भी पीछे पीछे किसी बहाने से उधर ही आ जाता था.

पहले तो अर्चना ने तय किया कि वो किसी से इसकी शिकायत करेगी पर पता नही क्यो उसे भी उस युवक का  छुप छुप कर देखना अच्छा लगने लगा था.कुछ देर यूँही छिपना और देखना चलता रहा.

“मेरा नाम यश है.”

अचानक सामने आकर उस युवक ने अपना परिचय दिया तो अर्चना एकदम से घबरा कर दूसरे कमरे में चली गयी थी.

पर कुछ देर में जब उसकी धड़कने काबू में आई तब वो भी मौका देखकर यश के सामने आ गयी थी.

“मैं अर्चना पाण्डे और इस विवाह की दुल्हन गायत्री मेरी बचपन की सहेली है”

बस फिर दोनों के बीच बातों  का जो सिलसिला शुरू हुआ तो सात महीनों बाद विवाह की सहमति पर जाकर ठहरा था.

लेकिन सबकुछ इतना आसान नही था.

यश करोड़पति घराने का इकलौता पुत्र था तो दूसरी तरफ अर्चना एक साधारण  अकाउंटेंट की बेटी थी.

इस कहानी को भी पढ़ें: 

चहेती भाभी’ – आराधना सेन : Moral Stories in Hindi




पर यश की जिद्द और अर्चना के सौम्य रूप-रंग और गुणों  ने हैसियत की दीवार को गिरा दिया था.

यश के पिता ने हाथ जोड़कर समधी कैलाश जी से बेटी का हाथ अपने पुत्र के लिए मांगा था.

उन्होंने विश्वास दिलाया था कि दौलत की दीवार कभी भी दोनों घरानों के बीच नही आएगी.

सगाई बड़े धूम धाम से हुई थी.पूरे शहर में चर्चा थी कि राजकुमार जी के पुत्र के विवाह के रिसेप्शन का वैभव देखने लायक होने वाला है.शहर के सारे करोड़पति,बड़े नेता,मंत्री,पुलिस -प्रशासन के ऊंचे अधिकारियों को न्योता गया था.

पर जाने क्यों अर्चना को कुछ अंदर ही अंदर परेशान किये जा रहा था.

छोटे से घर मे सीमित संसाधनों और माता पिता के बेशूमार प्रेम के बीच पली बढ़ी अर्चना को इतने बड़े घराने की बहू बनने की भारी भरकम जिम्मेवारियों के साथ ससुराल के लोगो की उससे लगी सम्भावित उम्मीदों का बोझ परेशान किये जा रहा था.

हैसियत और घराने के यह अंतर क्या सचमुच खत्म हो जाएगा या फिर रह रह कर उसे और उसके माँ पिता को चुभता रहेगा.

भविष्य के ऐसे कठिन सवालों स अंदर ही अंदर दो चार होती अर्चना शादी की तैयारियों में माँ का साथ देने में लगी थी.

आखिरकर विवाह और स्वागत समारोह धूम धाम से सम्पन्न हो गया.पूरे शहर में इस विवाह की चर्चा हो रही थी.

दिनभर के रीति रिवाजों के बाद अर्चना ससुराल में पहली बार अपने कमरे में आयी थी.



थक कर  बुरा हाल था उसका.ननद ने आकर बताया था कि यश कुछ विशेष मेहमानों को विदाकर लगभग आधे- एक घण्टे में कमरे में आएगा.

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पटरी वाली शॉपिंग – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

अर्चना भारी भरकम कपड़े उतार कर हल्के कपड़े पहन वाशरूम से बाहर आई तो सामने सासु मां खड़ी थी.

वैसे भी सगाई से लेकर अभी तक उसने महसूस किया था कि सासु मां उसके साथ उतनी सहज नही हो पा रही थी.

कहि एक साधारण घर की लड़की का बहु बनना तो नही खल रहा था उन्हें.

“अर्चना आज मैं जो कहने जा रही हूं उम्मीद है तुम उसे जीवन भर याद रखोगी “

सासु मां के आरंभिक शब्दों ने अर्चना को अंदर से और ज्यादा भयभीत कर दिया था.

वो एक जगह ठहर सी गयी थी.तभी सास वीणा देवी ने कमर से चाभियों का गुच्छा निकाल कर अर्चना के हाथों में रख दिया था.

“ऐसे ही विवाह के प्रथम दिन मेरी सास ने मेरे हाथों में अपनी जिम्मेवारियों को रख दिया था.तब से मैं इससे मुक्त होने के लिए बहु के आने की प्रतीक्षा कर रही थी.”

“बेटी तुम अब इस घराने और यश की देखभाल के जिम्मा सम्भालो और हमदोनो बुजुर्गों को आराम से घूमने फिरने और ईश्वर की आराधना में लीन हो जाने दो.”

भावुक होती सासु मां ने चरणोंस्पर्श के लिए झुकी अर्चना के दोनों कंधे पकड़कर झुकने से रोक लिया था पर अर्चना की तमाम आशंकाएं द्रवित होकर आंखों के रास्ते  वीणा देवी के चरणों में विसरित हो गयी थी.

तब तक यश भी पिता संग कमरे में आ गया था.

सारा परिवार एक दूसरे को लिपट गया .

अर्चना ने आज यश के साथ नवजीवन की शुरुआत से पूर्व सासु मां की चाभियों का बोझ तो ले लिया था पर  मन मे चल रही सारी गलत धारणाओं के पर्वतनुमा बोझ से मुक्त हो गयी थी.

सेतु

गोरखपुर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!