एक दौड़ते भागते व्यस्ततम महानगर में रवीना खरे अपने सत्तर वर्षीय श्रीमान जी के साथ बढ़िया सी सोसाइटी में रहती है। रोज शाम को ज्यादा दूर तो नही पास में ही दोनो टहलने जाते हैं, क्योंकि दोनो ही गठिया के शिकार है। शरीर कमजोर तो है ही पर दोनो हमेशा मस्ती में रहते।
दोनो बेटे परिवार के साथ विदेश में व्यवस्थित हैं, पहले तो उदास रहते थे, पर अब उन्होंने जिंदगी का रवैया बदल दिया।
शाम को उन्हें रोज ऐसे कई जोड़े मिलते, जो वहां अकेले ही अपना बुढ़ापा बिता रहे थे, रोज कभी खुशी कभी गम के किस्से सुनाते थे। रवीना ने सबका ग्रुप बनाया, अब वहां पच्चीस तीस लोगो का “ऑलवेज यंग” के नाम से ग्रुप था, जिसमे कोई एक के घर में त्योहारों में सब मिलते।
आज अचानक प्रिया जी का फ़ोन आया, “रवीना, करवाचौथ कैसे करेंगे, व्रत पूजा तो मैं कर लेती हूं चाय जूस भी लेती हूं, पर पंद्रहवे फ्लोर से नीचे जाकर चांद को ढूंढना देखकर पूजा करना, शायद संभव नही हो सकेगा।”
रवीना ने कहा, “प्रिया जी, थोड़ी देर में विचार करके बताती हूँ।”
और रवीना जी ने भी अपने श्रीमान जी से मशवरा किया, फैसला ये हुआ, सब जोड़े करवाचौथ के दिन रवीना के घर आएंगे, हॉल में एक साथ पूजा होगी।
नियत दिन पूरे हॉल को आकाशनुमा चाँद सितारों से सजाया गया। सब लोग शाम से ही कई डिशेस और पूजा की थाली लेकर आ गए। टेलीविज़न में गाना लगाया …
जो चल रहा था थम गया
जो थम गया था चल पड़ा
उसी पुरानी राह पे
फिर से मैं निकल पड़ा
पुराने सिक्कों से ख़रीद ली
कुल्फ़ी कुल्फ़ी
हाँ, मीठी मीठी…
सब ऑलवेज यंग गैंग के लोग बैठे बैठे ही थिरकने को मजबूर हो गए।
रात 8.30 बजे रवीना की भतीजी किरण ने दिल्ली से वीडियो कॉल लगायी, आंटी लाइट बंद करिये, और मेरा फ़ोन देखिए। फ़ोन में सुंदर सा करवाचौथ का चांद था, छत आकाश का रूप ले रही थी और सब लोगों ने हॉल में ही चांद को थोड़ा जल चढ़ाया, पूजा करी, अपने अपने प्रियतम को मिठाई और पानी पिलाया। सबने मिलकर विभिन्न व्यंजन उड़ाये, और एक नए ढंग से करवाचौथ मनाया।
सब एक साथ गा रहे थे…कभी खुशी कभी गम
#कभी_खुशी_कभी_ग़म
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर