मैं देख रही थी अपने सामने सजी संवरी खिलखिलाती राशि को जो अपने छोटे से बेटे को गोदी में उठाए सब मेहमानों से प्यार से गले मिल रही थी उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी ।आज उसकी ननद रितु की शादी थी मैं अपने पति के साथ और मेरे मायके से मम्मी पापा व भाई शिखर भी आए हुए थे ।
अचानक मेरी नजर शिखर पर पड़ी जो एकटक राशि को देखे जा रहा था और फिर उसे जैसे कुछ एहसास हुआ उसने मेरी तरफ नजर घुमाई और उन आंखों से मुझे डर लगने लगा और मैंने अपनी डबडबाई आंखे घुमा ली । मैं ही तो थी जिम्मेदार इन आंखों की वीरानी के लिए , भाई की खुशियों को गम में बदलने के लिए तो फिर किस मुंह से मैं उसे सांत्वना देती कि “भाई जो हो गया उसे भूल जाओ” नहीं मैं नहीं कह सकती थी ।
जिन रिश्तो को मैंने ही नहीं बनने दिया तो फिर दिलासा कहां से दूं ..? राशि और मैं कभी एक दूसरे की जान थे कॉलेज में हमारी दोस्ती के चर्चे सब और होते थे यानी जहां राशि वहां मैं और जहां मैं वहां राशि । राशि एक मध्यवर्गीय परिवार से थी और मैं एक धनाढ्य बिजनेस परिवार से जहां पैसा ही पैसा था । परिवार दोनों का ही खुशहाल था मेरे परिवार में मैं, भाई शिखर और मम्मी पापा थे और राशि के परिवार में राशि और उसकी बहन दिशा व मम्मी पापा।
हमारी दोस्ती की वजह से हमारे परिवारों में भी मधुर रिश्ते थे । मुझे अमीर होने का एहसास तो था ही और कई बार मैं कुछ ऐसा कड़वा भी बोल जाती थी जो मुझे नहीं बोलना चाहिए होता था पर राशि सहजता से झेल जाती थे। हमारे दोनों की स्टैंडर्ड में काफी अंतर था, स्वभाव भी अलग था । जहां राशि सुलझी हुई और मधुर थी वहां मैं थोड़ी घमंडी और बिंदास पर इन बातों का हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ता था असर पड़ा तब जब दोनों परिवारों में शिखर और राशि के रिश्ते की बात चलनी शुरू हुई और बस मैं जलन से भर गई राशि को इतना अमीर परिवार क्यों मिला वह खुद तो एवरेज परिवार से थी उसका और हमारा आपस में कोई मेल है क्या…?
दोस्ती अपनी जगह पर और रिश्ता… ना भाई ना । मैं जानती थी कि राशि अगर हमारे परिवार में आ गई तो मेरी तो अहमियत ही खत्म हो जाएगी क्योंकि मैं अपने स्वभाव को जानती थी मैं यह भी जानती थी कि शिखर भाई के दिल में भी राशि के लिए कुछ था और यह मुझे मंजूर ना था। साम दाम दंड भेद से मैंने रिश्ता होने ही ना दिया ।
मेरी और राशि की दोस्ती में खटास आ गई उसकी वजह भी मैं ही थी। मैंने ही कॉलेज में फैला दिया कि राशि ने पैसे की वजह से ही मुझसे दोस्ती की थी और अब मेरे भाई को भी इसी ने फसाया है। मैं जानती थी यह सब झूठ है मेरे आगे कोई बोले तो सही ये तो हो ही नहीं सकता था और राशि की शादी मनीष से हो गई। मनीष की मम्मी मेरी मम्मी की खास सहेली थी ये रिश्ता मेरी मम्मी ने ही सुझाया था उन्ही के कहने पर बात आगे बड़ी और राशि इस परिवार की बहू बनकर परिवार का हिस्सा बन गई ।
मनीष की मम्मी बहू की तारीफें करती ना थकती थी हमेशा राशि के लिए उनके मुंह से फूल ही झड़ते रहते थे हमेशा कहती इसने मेरे घर को स्वर्ग बना दिया है और मेरी मम्मी मन ही मन उदास होकर रह जाती थी मेरा गुस्सा और मम्मी की उदासी साथ साथ चलती । शिखर की आंखों की वीरानी दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी । राशि की शादी के 6 महीने बाद ही शिखर के लिए रिश्ता एक अमीर परिवार से आया शादी हो गई।।
शिखर की पत्नी रिचा घमंडी, नकचड़ी और स्वार्थी थी उसे बस अपने से ही मतलब था परिवार का हिस्सा वो कभी भी न बन पाई। शादी के 6 महीने बाद जब रिचा मातृत्व की तरफ बढ़ी पर वो उसे मंजूर ना था ये मातृत्व उसे अपनी आजादी में बाधक लगा और किसी को बताए बिना उसने अपना अबॉर्शन करवा लिया। यह परिवार और शिखर के लिए एक आघात था।
बनती तो दोनों में ना थी अब ताबूत में आखिरी कील भी ठुक गई । दोनों का तलाक हो गया पर जाते-जाते भी रिचा सारी ज्वेलरी और 80 लाख लेकर चली गई । शिखर पहले ही टूटा हुआ था अब रही सही कसर भी पूरी हो गई। मैं जब भी घर जाती मुझसे बात ना करता ।
मम्मी पापा के साथ भी मेरे बस औपचारिक संबंध रह गए थे। वे शिखर और घर की बर्बादी के लिए मुझे ही जिम्मेदार समझते थे और यह सच भी था । मेरा स्वार्थ, मेरा अहम, मेरी ज़िद सबने रिश्तों के एहसास को ही खत्म कर दिया। जिस राशि की खुशी को मैं छीनना चाहती थी वहीं खुशी अब मेरे परिवार से कोसों दूर हो गई थी । मेरे पास अब पछतावे के आंसू के सिवाय कुछ ना था।
#पछतावा
शिप्पी नारंग
नई दिल्ली
21/5/23