आज फिर सुषमा जी कमरे में अपने पति के सामानों को फैला कर बैठी थी। पिछले 3 महीनों से, जबसे उसके पति सुमेश गुजरे थे उनका यही हाल था। हर बात में उनका जिक्र करना, पल-पल उन्हें याद करके रोते रहना, उनके सामानों को बार बार देखना, उन्हें स्पर्श करते हुए महसूस करना, यही उनकी दिनचर्या बन गई थी। वह अपने पति के बिना जीवन जीना ही भूल गई थी।
सुषमा के बेटा बहू, अमन और दीप्ति उन्हें दुख से बाहर निकालने की कोशिश करते। उनको हंसाने की कोशिश करते। उन्हें समझाते कि पापा अब चले गए हैं मां, इस बात को स्वीकार करो और अपना जीवन जियो। मन करे तो सत्संग में जाओ या फिर पार्क में घूम आओ। लोगों से मिलो जुलो, अपने मन को दूसरी बातों में लगाओ।
कुछ पल के लिए सुषमा जी का ध्यान अपने दुख से हट जाता, बस फिर थोड़ी देर बाद वही ढाक के तीन पात।
आज कमरे में पति के सामानों में सुषमा जी को एक मोटी सी काली और सुनहरे कवर वाली सुंदर डायरी मिली। उत्सुकतावश उन्होंने उसे खोला और पढ़ना शुरू किया।
सुमेश ने विवाह के शुरुआती दिनों से कुछ खास खास दिनों और घटनाओं का जिक्र उसमें किया था। सुषमा जैसे-जैसे डायरी पढ़ती जाती थी, वैसे वैसे अपने पुराने दिनों को मानो दोबारा जीती जाती थी। पढ़ते-पढ़ते वह उसमें इतनी खो गई कि उन्होंने लगभग आधी डायरी पढ़ ली।
सुमेश ने लिखा था-“कल वह अचानक एक शादी समारोह में मिल गई। उसके साथ उसके बेमेल पति को देखकर बहुत ईर्ष्या हुई। मन में आया लंगूर के गले में हूर। कहां हो इस उम्र में भी बला की खूबसूरत और शालीनता से ओतप्रोत और कहां उसका बेढंगा पेटू पति।
मुझे तो आज अपनी मां पर भी बहुत गुस्सा आ रहा है। पहली बार चाचा जी की शादी में ही तो मिली थी, चाचा जी की साली मेघा। पहली बार देखा तो देखता ही रह गया था और आज भी वैसी ही लग रही है। इसके बाद सुषमा ने पृष्ठ पलटा तो”बीच वाला पन्ना”डायरी से गायब था।
सुषमा मेघा के बारे में और जानना चाहती थी। बीच वाला पन्ना गायब देखकर उसे बहुत बेचैनी हो उठी। उसे लग रहा था कि उस पन्ने में जरूर कुछ ऐसा लिखा था, जो सुमेश मुझसे छुपाना चाहते थे शायद इसीलिए उन्होंने वह पन्ना यहां से फाड़ दिया होगा। फिर भी मैं कोशिश करूंगी उसे ढूंढने की, क्या पता उनके सामानों में या किसी फाइल में मिल जाए।
इस कहानी को भी पढ़ें:
सधे हुए कदम – Blog Post by Kanchan Shrivastav
रोज वह उनकी फाइलें खोलकर उसमें एक एक कागज को खंगालती और आखिरकार एक दिन उन्हें डायरी का वह पन्ना मिल ही गया, जो कि शायद सुमित ने सचमुच फाड़ने के लिए ही निकाला था और अपने जाने से पहले उस बीमे वाली फाइल में रख कर भूल गए थे।
उसमें लिखा था”मैं उसके साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहता था लेकिन मां ने दबाव डालकर मुझे इमोशनल फूल बनाकर तुम से मेरी शादी करवा दी। तुम सर्वगुण संपन्न, सुंदर, मृदुभाषी और संस्कारी थी।
तुमने मुझे मेरे जीवन के दो अनमोल रतन मेरे बच्चे अमन और अमीषा दिए। मैंने तुम्हारे साथ पूरा जीवन बिता दिया, पर उसे ना भुला पाया। जानबूझकर तुम पर गुस्सा निकालता, तुम ही रोते हुए देखता तो ना जाने क्यों मन को शांति मिलती। मैं तुम्हारे साथ हुए विवाह को जीवन भर सिर्फ एक जिम्मेदारी समझकर निभाता रहा, दिल से कभी तुम्हें चाह न सका।।”
सुषमा जैसे-जैसे बीच वाले पन्ने को पढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे उसके आंसू सूखते जा रहे थे।
“चाह कर भी मैं तुम्हारे अंदर कोई कमी निकाल नहीं पाता था और बिना गलती के भी गलती निकाल कर तुम्हारा अपमान करता था। अब तो शादी में उसे देख कर मन बहुत बेचैन हो उठा है। सच कहूं तो, तुम गुणी होते हुए भी मेरे मन में बसी वह स्त्री ना थी जिसके साथ में जीवन बिताना चाहता था।”
बस , सुषमा अब और आगे के पृष्ठ पढ़ ना सकी और उसमें डायरी बंद कर दी। वह सोच में डूबी हुई थी कि इस”पुरुष” का मन कितना गहरा था। साथ रहते हुए भी इसने मुझे किसी बात की भनक तक लगने ना दी और मैं पागल इसके लिए रो रो कर अपना जीवन दुख से भरे जा रही हूं।
मेरा पूर्ण समर्पण भी इसके हृदय को छू न सका और यह स्वार्थी पुरुष उस लड़की को भुला ना सका। मेरी सेवा और त्याग पर इस स्वार्थी” पुरुष” ने पानी फेर दिया। ना जाने क्यों मुझे इससे घृणा हो रही है हालांकि इस बात का अब कोई फायदा नहीं। यह सब सोचते-सोचते सुषमा ने अपने आंसू पोछ डालें और मन में कुछ निर्णय लेती हुई ,मुस्कुरा कर बाहर आ गई।
बेटा बहू ने उन्हें बहुत समय बाद मुस्कुराते हुए देखा था।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जाकी रही भावना जैसी – Blog Post by Nirja Krishna
बाहर आकर सुषमा ने कहा-“अमन, मैंने तुम्हारे पापा का सारा सामान बांध दिया है। कल सारा सामान हटा देना, जिसे चाहो दे देना।”
अमन-“ठीक है मां, पर यह सब अचानक?”
सुषमा-“बच्चों, मैंने तुम लोगों की बात पर गौर किया कि मुझे पुरानी बातें भूल कर खुश रहना चाहिए। मुझे तुम्हारी बातें ठीक लगी और हां बेटा ,मुझे एक बात और कहनी है।”
अमन-“हां मां, कहिए ना।”
सुषमा-“बेटा व्हाट्सएप पर एक ग्रुप है औरतों का, जिसमें हर उम्र की औरत शामिल हो सकती है। वे लोग हर 6 महीने बाद कहीं ना कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं। उनके साथ घूमने जा रही हूं।”
अमन-“अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है।”
सुषमा ने अगले दिन बच्चों के ऑफिस जाने के बाद डायरी को फाड़ कर आग में झोंक दिया, साथ ही अपने दुख को भी और निकल पड़ी अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने के लिए।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली
#पुरुष