बुढ़ापा किसी का सगा नहीं होता – अनु अग्रवाल

“अब कान लगाए दरवाजे पर ही खड़े रहोगे या बत्ती बन्द करके सोओगे भी”- मीनाक्षी ने तीखे स्वर में कहा।

“बाबूजी के खाँसने की आवाज़ बहुत देर से आ रही है….लगता है तबियत ज्यादा खराब हो रही है…….ज़रा देखकर आता हूँ”

बस इतना ही कहना था रामानुज जी का…कि मीनाक्षी बिफर पड़ी…….देखकर क्या आते हो….ऐसा करो….अपना बिस्तर भी वहीं लगा लो….अभी थोड़ी देर पहले तो घण्टा भर बैठकर आये हो..अरे

उम्र का तकाज़ा है…और फिर मौसम भी बदल रहा है….ये खाँसी ज़ुकाम तो लगा ही रहता है…..चुप करके सो जाओ।

आइये मिलते हैं.….रामानुज जी के परिवार से… उनके परिवार में उनकी धर्मपत्नी… बेटा अनन्त जो इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है..जिसका कमरा ऊपर के माले पर है। बेटी की शादी हो चुकी है.. बुजुर्ग पिताजी हैं जिनका कमरा रामानुज जी के कमरे से ही सटा हुआ है।

अगली सुबह…..आँख खुलते ही रामानुज बाबूजी के कमरे में जाते हैं…..तो देखते हैं…..अनन्त…..उनके पैर के पास बैठा- बैठा ही सो रहा होता है.

अनन्त….अनन्त……सुबह-सुबह यहाँ कैसे?- रामानुज जी ने अनन्त को झकझोंरते हुए पूछा।




देर रात तक पढ़ते-पढ़ते भूख लग आयी थी तो किचन में आया था….देखा दादाजी बहुत खांस रहे थे….इसलिए यहीं रुक गया… दवाई से भी आराम नहीं पड़ा तो मैंने कहा…भी था डॉक्टर के पास चलने के लिए लेकिन….दादाजी ने मना कर दिया…….बहुत दुखी भी लग रहे थे अंदर से.

माँ ने कुछ कहा था क्या?…

अनन्त अपनी माँ की आदत जानता था……बचपन से देखता आ रहा था………उनका व्यवहार दादाजी के लिए ठीक नहीं था……यहाँ तक कि रामानुज और अनन्त भी ज्यादा ध्यान रखते तो गुस्सा करतीं।

“अब तू तो अपनी माँ की बेलगाम जुबान को जानता ही है….जब बोलने पर आती है तो ये नहीं सोचती कि बाबूजी का कमरा पास ही है सुन लेंगें तो क्या बीतेगी उनपर”? -रामानुज जी ने आह भरते हुए कहा।

तभी बाहर से आवाज आती है….सुबह से ही सेवा चाकरी शुरू हो गयी बाप-बेटे की….चाय नाश्ता करना है या वो भी वहीं भिजवा दूं- मीनाक्षी जी ने रसोई से आवाज लगायी।




ये तीखे व्यंग्य बाबूजी के भी कान में पड़ते….जिससे उनके मन में जीने की इच्छा खो जाती……और फिर कुछ ही दिनों में शरीर त्याग दिया उन्होंने।

जिससे अनन्त को बहुत दुःख पहुंचा…..अपनी माँ के प्रति उसके मन में घृणा भर चुकी थी।

समय अपनी निरन्तर गति से चलता गया…….और रामानुज जी भी एक दिन काल के गाल में समा गए।

अनन्त अब एक सफल इंजीनयर बन चुका है और उसकी  शादी भी हो गयी…….लेकिन आज भी अनन्त को वो सारे ताने ….वो सारे उलाहने याद हैं जो उसके दादाजी को मिले थे….वो अक्सर कहता अपनी माँ से काश थोड़ी तुम्हारी जुबान मीठी होती तो….मेरे दादाजी थोड़ा और जी जाते…

खैर…. बुढ़ापा तो किसी का सगा नहीं होता…… सब पर आता है…..मीनाक्षी जी पर भी आया……अब अक्सर खाँसने की आवाज़ आती है मीनाक्षी जी के कमरे से……अपनी पत्नी को अब वो भी यही कहता है….उम्र का तकाज़ा है यह सब तो लगा ही रहता है लेकिन……….फिर जाकर दवा भी देता है….क्या करे “संस्कार” भी तो दादाजी के हैं…लेकिन उसकी निगाहें मीनाक्षी जी को अपनी गलती का हर पल एहसास करवा देती हैं।

नज़रें नहीं मिला पातीं हैं वो अब अपने बेटे से….

तो दोस्तों……ये बात तो पक्की है……..जैसा व्यवहार हम अभी अपने बुजुर्गों के साथ कर रहे हैं…..बिल्कुल उसी तरह के व्यवहार के लिए हमें भविष्य में तैयार रहना होगा…. आपका क्या कहना है इस बारे में….बताइएगा जरूर।

#संस्कार 

एक नयी कहानी लेकर जल्दी ही हाज़िर होती हूँ……….

आपकी ब्लॉगर दोस्त-

अनु अग्रवाल।

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