“कोई फोन आया अजय का?” घर में प्रवेश करते हुए माँ ने रीति से पूछा।
“नहीं माँ और आएगा भी नहीं। आप समझती क्यों नहीं हैं?” रीति ने कहा।
माँ ने सिर हिलाते हुए कहा,”बेटा, मैं सब समझती हूँ पर परिधि की माँ का आज फोन आया था। कह रही थीं कि रीति काफी दिनों से यहाँ रह रही है। कब जा रही है। कुछ गड़बड़ तो नहीं? तुम्हारी टोह ले रही थीं।”
“माँ, परिधि ने पहले ही सब बता दिया होगा। आपसे सुनना चाह रही होंगी।” रीति ने कहा।
“सही कह रही हो। आखिर कब तक मैं अजय की करतूतों पर परदा डालती रहूंगी।” माँ बोली।
माँ यानि रक्षा जी एक विधालय में शिक्षिका हैं।उनके पति रामेश्वर जी का देहांत गत वर्ष दिल का दौरा पड़ने से हो गया। रक्षा जी की बड़ी बेटी रीति और एक बेटा समर्थ है। समर्थ की शादी चार साल पहले परिधि से हुई है।परिधि एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाती है।समर्थ और परिधि के एक दो साल का प्यारा और नटखट बेटा है जिसका नाम संयम है।
रीति ने कत्थक में परास्नातक की डिग्री की है। वह शहर के सरकारी कत्थक केंद्र में बतौर सीनियर कत्थक शिक्षिका कार्य करती है। रीति की शादी उसी शहर में रहने वाले सिविल इंजीनियर अजय से छह साल पहले हुई है। अजय और रीति की एक प्यारी सी चार साल की बेटी निशि है।
रीति के ससुराल में सास शांता जी और ननद अनु है। पुश्तैनी घर है। ससुर जी राधेश्याम जी का स्थानांतरण दूसरे शहर में होने के कारण महीने में एक बार आ पाते हैं। राधेश्याम जी घरेलु मामलों में कुछ ख़ास बोलते नहीं हैं क्योंकि बाहर रहने के कारण पहले तो ज्यादा बातें उन्हें पता नहीं होती हैं और यदि वे कुछ कहें तो शांता जी दबंग प्रवृति की महिला हैं तो उन्हें बोलने नहीं देती हैं।
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अभी दो महीने पहले रीति पुन: गर्भवती हुई। दो महीने बीतते ना बीतते रीति की सास शांता जी ने कहना शुरू कर दिया कि “इस बार तो पोता ही होना चाहिये। महंगाई के इस जमाने में दो बच्चे बहुत होते हैं। लड़की एक ही बहुत है। इस बार लड़का ही होना चाहिए।”
अब वह रीति के ऊपर दबाव डालने लगी कि रीति लिंग जाँच करवाए और यदि लड़की हो तो भ्रूण अबार्शन करवा लें।
इन सब के बीच में जब रीति अजय की ओर देखती तो पाती कि अजय भी अपनी माँ से सहमत है। वह भी लिंग जाँच करवाने के पक्ष में है।
ननद अनु भी माँ की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती,”मम्मी सही कहती हों। भाभी की भाभी परिधि के तो पहली संतान ही बेटा है। तो यहाँ कम से कम दूसरा तो लड़का होना चाहिये। इसलिए लिंग परीक्षण करवा कर लड़की हो तो अबार्शन करवा लो।”
परेशान हो गई थी रीति। उसने सबको समझाने की भरसक कोशिश की ,” आज के युग में लड़का-लड़की बराबर हैं। भ्रूण लिंग परीक्षण कानूनन अपराध है और वो नहीं करवाएगी। जो भी भगवान की देन हो उसे स्वीकार करना चाहिए।”
और तो और शांता जी ने रीति की माँ रक्षा जी से भी इस बारे में रीति को समझाने को कहा।कि वह भ्रूण परीक्षण करवा ले तभी सही रहेगा। नहीं तो अगर लड़की हो गई तो रीति को सदा के लिए मायके भिजवा देंगी और अजय की दूसरी शादी करवा देंगी।
रक्षा जी, शांता जी और अजय के विचार जानकर हतप्रभ रह गईं। उन्होंने बहुत समझाने की कोशिशें कीं पर कोई नतीजा नहीं निकला।
अभी आठ दिन पहले अजय रीति और निशि को रक्षा जी के पास छोड़ गया ये कहकर कि लिंग जाँच करवाने के लिए तैयार हो तभी घर आना नहीं तो अपनी माँ के घर रहो।
ऐसे ही दो हफ्ते और बीत गए। रीति को तीसरा महीना पूरा होने को है। वो माँ के घर से ही अपने संस्थान जाती है।
अचानक एक दिन अजय अपनी माँ शांता जी के साथ आ धमका। रीति से बोला,”चलो अपने घर चलो।”
रीति और रक्षा जी को अचानक उनका बदला व्यवहार पल्ले नहीं पड़ा।
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रीति से रहा नहीं गया। उसने कहा,”मै लिंग परीक्षण नहीं करवाउंगी।”
दोनों ने रीति और उसकी माँ को बोला कि वे परेशान नहीं हों , उनके दिमाग में अब ऐसी कोई बात नहीं है।
विश्वास कर रक्षा जी ने रीति को अजय और शांता जी के साथ उसके ससुराल भेज दिया।
रीति को ससुराल आए तीन दिन हुए थे कि शांता जी और अजय ने कहा,कि अब उसे जल्दी जल्दी चेकअप कराते रहना चाहिए तो कल डॉक्टर को दिखाने चलते हैं।
रीति खुश थी कि इन लोगों का सोचने का रवैया तो बदला। माँ रक्षा जी को सब ठीक होने की सूचना फोन पर दे दी उसने।
अगले दिन निशि स्कूल गई और घर पर अनु को छोड़ ये तीनों डॉक्टर को रुटीन चेकअप कराने
निकले।
थोड़ी दूर जाकर जब अजय ने कार दाएं की जगह बाएं मोड़ी तो रीति ने कहा,”डॉक्टर का नर्सिंग होम दाएं साइड पर आता है। अजय गाड़ी गलत मोड़ ली।”
अजय ने कहा,”मैंने एक और अच्छा डॉक्टर मालूम किया है जिसके यहाँ मैटरनिटी सम्बंधित बेहतर सुविधाएं हैं। चल कर देख लेते हैं। अगर तुम्हें ठीक लगे तो यहीं डिलीवरी करवा लेंगे।”
“ठीक है।” रीति बोली।
वहाँ पहुँचे तो डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कहा कि पहली तिमाही में बच्चे की बढ़वार देखने के लिए जरूरी है।
रीति अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए डॉक्टर के केबिन से सटे रूम में लेट गई। तभी पास के केबिन से शांता जी की आवाज सुनाई दी। वो कह रही थीं, “डॉक्टर साहब अगर गर्भ में लड़की हो तो फौरन ही अबार्शन कर देना। “
डॉक्टर बोला,”माताजी, आप चिंता नहीं करो। अगर लड़का हुआ तो ठीक। नहीं तो आज के आज में अबार्शन कर देंगे। सब इंतजाम कर दिया है। रीति को भनक भी नहीं लगेगी। अल्ट्रासाउंड रूम से एनस्थीसिया देकर प्रोसीजर कर देंगे। साथ वाला रूम तैयार है। बस चाय पीकर जा रहा हूँ।”
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रीति ये सुन कर सन्न रह गई। तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम फोन कर सब बताया और उन्होंने कहा कि वे तुरन्त पहुँच रहे हैं। रीति ने अपनी माँ रक्षा जी को भी फोन कर सब बता दिया।
यहाँ डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड रूम में प्रवेश किया उधर पुलिस और रक्षा जी नर्सिंग होम आ गए।पुलिस को सामने देख डॉक्टर के होश उड़ गए और उसने सब सच उगल दिया कि लिंग परीक्षण करवाने के लिए रीति को लाए हैं और लड़की होने पर अबार्शन करनेवाले थे। पुलिस ने तीनों को अरेस्ट कर लिया और नर्सिंग होम सील कर दिया। पुलिस ने रीति की हिम्मत और समझदारी की तारीफ की।
जाते जाते अजय ने रीति को धमकी दी कि उसने उसे पकड़वाकर अच्छा नहीं किया। अब कैसे पालेगी अकेले बच्चों को। आना तो मेरे ही पास होगा तुम्हें तब तुम्हारी सारी अकड़ और हेकड़ी निकाल दूंगा।
पुलिस कांस्टेबल ने एक कसकर झापड़ रसीद किया कि हमारे सामने अपनी पत्नी को धमकी दे रहा है।
रीति ने अजय को जबाव दिया,”तुम जैसे पिता के साये को भी निशि और अपने होने वाले बच्चे पर नहीं पड़ने दूंगी। मैं काफ़ी हूँ अपने बच्चों को पालने के लिए।”
ऐसा कहकर रक्षा जी के साथ सीधे निकलती चली गई।
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कुछ वक़्त के बाद रीति ने अजय से तलाक केस कोर्ट में फाइल कर दिया। ठीक पांच महीने पश्चात रीति ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। अजय को जब जेल में पता चला कि बेटा हुआ है तो उसने किसी से कहलवाया कि वे सब साथ रहेंगे, तलाक का केस वापिस ले लो परन्तु रीति ने उसे करारा जवाब देते हुए स्पष्ट मना कर दिया।
अजय पर भ्रूण हत्या के प्रयास के मुकदमे के चलते रीति को अदालत ने अपेक्षाकृत कम समय में ही इस नासूर वैवाहिक सम्बन्ध से मुक्त कर दिया। अजय और उसकी माँ जेल में अपनी सजा काट रहे हैं।
रीति अपने दोनों बच्चों के साथ और अपनी माँ के साथ अपनी लाइफ में खुश है।
इति।।
लेखिका की कलम से
दोस्तों, आज के इस दौर में भी लिंग आधारित भेदभाव से महिलाएं गुजरती हैं। उन पर अपने ही बच्चे के लिंग जाँच का दबाव बनाया जाता है। रीति ने हिम्मत और साहस से काम लिया एवम् अपने अजन्मे शिशु का लिंग पता करने का डटकर विरोध किया। कहीं ये लोग सफल हो जाते और रीति के गर्भ में लड़की होती तो ये लोग उसे गर्भ में ही मार डालते। इस कल्पना से ही मन क्रोध से भर जाता है। वास्तव में ऐसे नीच मानसिकता वाले लोगों से अच्छा है कि माँ स्वयं ही बच्चों का पालन पोषण करें। माँ ही काफ़ी है अपने बच्चों के लिए।
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धन्यवाद।
प्रियंका सक्सेना
( मौलिक व स्वरचित)
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(कहानी -5 )