बापू कल से मैं भी तुम्हारे साथ ही मजदूरी करने चला करूँगा,अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ।
अरे कहाँ बड़ा हो गया है,अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।
मजदूरी को हम जाते हैं ना। कहते कहते शंकर अपने अतीत में खो गया,उसे याद आ रहा था कि वह तो स्कूल जाना चाहता था पर उसके पिता हरखू ने कहा सुन शंकर अब तू बड़ा हो गया है बेटा अब हमारे साथ मजदूरी पर चला कर।पर बापू अभी दो महीने बाद तो मेरे इम्तिहान ही है,फिर तो कक्षा पांच में आ जाऊंगा।
नही रे,शंकर अभी तो सेठ के यहां काम चल रहा है,वहां लग जायेगा तो मजदूरी करना सीख लेगा,और थोडा बहुत कुछ ना कुछ तुझे भी मजदूरी सेठ देगा ही।
वो तो ठीक है बापू पर मेरी इच्छा पढ़ने की होती है,मेरे जितने बच्चे सब पढ़ने को जाते हैं।बापू मुझे भी स्कूल जाने दे।
बेटा, वे बड़े बाप के है,हमारी गुंजाइश पढ़ाने की नही है,वैसे भी पढ़ लिख लेगा तो मजदूरी करने में भी शर्माएगा।बेकार हो जायेगा।शंकर छोड़ ये पढ़ाई वढाई की बात और कल से मेरे साथ चलना।
बेबस शंकर अपने पिता हरखू के साथ अगले दिन से ही मजदूरी पर जाने लगा।मजदूरी पर जाते समय रोज वह स्कूल जाते बच्चो को बड़ी ही हसरत भरी निगाहों से देखता।लेकिन बापू ने कहा था कि लिखने पढ़ने से आदमी बेकार हो जाता है, सो मन के न मानने पर भी बापू की बात मानने को वो मजबूर था।धीरे धीरे शंकर पक्का मजदूर बन गया।
अपने पिता हरखू ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया था,ये भी भूल गया था।हरखू तो संसार से विदा ले चुका था,पर शंकर का विवाह पार्वती से अपने जीवन काल मे ही करा दिया था।मृदु और कर्मठ स्वभाव की पार्वती ने शंकर को निराश नही किया।शंकर के साथ ही मजदूरी को जाती और सुबह सुबह ही रोटी भी बना लेती।दो दो रोटी दोनो सुबह ही कलेवा रूप में कर लेते और दोपहर में खाने को भी ले जाते।शंकर अपनी पत्नी पार्वती से पूर्ण रूप से संतुष्ट था।
दो वर्ष बाद ही पार्वती ने अपने महिला धर्म को निभाते हुए उसे राजू का पिता भी बना दिया।राजू को पाकर शंकर और पार्वती दोनो ही बेहद खुश थे।गोल मटोल सुंदर राजू दोनो की आंखों का तारा था। सात आठ माह शंकर को आर्थिक कठिनाई झेलनी पड़ी, गर्भावस्था और राजू के जन्म के बाद पार्वती मजदूरी पर जा ही नही पायी थी,इसलिये उससे होने वाली कमाई कम हो गयी थी जबकि राजू का खर्च बढ़ गया था।
शंकर ने एक दुकान पर सामान पकड़ाने का पार्ट टाइम काम पकड़ लिया था जिससे उसकी काफी पूर्ति हो गयी थी।शंकर और पार्वती मजदूरी करने जाते तो राजू को भी साथ ले जाते ,वह वही छाया में खेलता रहता,बीच बीच मे बारी बारी से दोनो आकर उससे कुछ खिला पिला भी देते और उसके साथ किलोल भी कर लेते।
आज शंकर जैसे ही काम पर आया तो मालिक की कार आकर रुकी।कौतूहल से शंकर एक ओर खड़ा होकर उस तरफ देखने लगा तो गाड़ी से मालिक के साथ ही उनका बेटा जो उसके राजू जितना ही बड़ा हो गया था,स्कूल की ड्रेस पहने उतरा। मालिक के बच्चे के रूप में उसे राजू नजर आ रहा था,उसे लग रहा था उसका राजू ड्रेस पहनकर स्कूल जा रहा है।
एकाएक एक झटका लगा उसका साथी मजदूर उसे झकझोर रहा था कि शंकर क्या खड़े खड़े ही सो रहे हो काम नही करना है क्या?चौक कर शंकर असली दुनिया में आ गया और काम करने लगा।उसकी आँखों से राजू का स्कूल ड्रेस में कल्पित अक्स आंखों से ओझल नही हो रहा था।उसे अपना बचपना याद आ गया वह अपने पिता से चिरौरी कर रहा था,बापू मैं स्कूल जाना चाहता हूं पर बाप उसे जिंदगी की कटु सच्चाई उस पांच वर्ष के बच्चे को समझा रहा था।
उसे याद आ रहा था कि उसके पिता ने उसे कैसे मजदूरी करनी सिखाई थी।मात्र एक ईंट सिर पर रख कर राज को देने से चली यह ट्रेनिंग 16 ईंटो के बोझ ढोने तक आ गयी थी।सब सिनेमा की तरह उसके दिमाग मे चल रहा था।अचानक उसने निर्णय ले ही लिया कि वह अपने राजू को पढ़ायेगा,स्कूल भेजेगा।उसके साथ जो हुआ सो हुआ वह अपने बच्चे के साथ नही होने देगा।
शंकर ने अपने राजू का दाखिला एक स्कूल में करा दिया।अब शंकर और पार्वती दोनो मजदूरी पर जाते ,राजू स्कूल जाता।घर की घर क्या एक खोली ही तो थी,उसकी एक चाबी राजू पर रहती स्कूल से राजू आता और मां द्वारा बना कर रखी रोटी खा बाहर खेलने चला जाता।शंकर को संतोष था कि उसने अपने बच्चे को स्कूल भेजा है,उसकी सोच थी कि वह राजू को खूब पढ़ायेगा जिससे वह बड़ा आदमी बन सके।गरीब भी सपना देख सकता है,अच्छा सपना देख सकता है,यही शंकर कर रहा था।
उस दिन उसके दिल पर पहाड़ टूट पड़ा जब राजू बोला बापू मैं बड़ा हो गया हूँ,अब मैं भी मजदूरी करने साथ चलूंगा।हां राजू बड़ा ही तो हो गया था जो बालपन में भी बाप की मेहनत में शरीक होने को कह रहा था।
शंकर बोला राजू मेरे बच्चे तूझे पढ़कर बड़ा आदमी बनना है बस यही है तेरी मजदूरी।आगे से बेटा स्कूल न जाने को मत कहना,वरना मैं टूट जाऊंगा,समझ गया न राजू।
राजू तब अपने पिता के मर्म को समझा या ना समझा पर वह यह समझ गया कि उसे स्कूल ही जाना है और बड़ा आदमी बनना है।वह अपने उसी कर्म पथ पर चल निकला।शंकर और पार्वती ने भी राजू की पढ़ाई लिखाई के लिये कोई कौर कसर नही छोड़ी,राजू ने पार्ट टाइम अलग से काम करना शुरू कर दिया,तो पार्वती भी दो तीन घरों में साफ सफाई का काम करने लगी।राजू भी होनहार निकला, उसने अपने माता पिता को कभी निराश नही किया।
आखिर एक दिन वह भी आया जब चहकता सा राजू आकर शंकर से लिपट गया बापू मैने कलेक्टर की परीक्षा पास कर ली है।शंकर के खुरदरे हाथों को सहलाते हुए बोला राजू, बापू अब आप मजदूरी पर नही जाओगे,मां कही नही जायेगी।शंकर कभी राजू को देख रहा था तो कभी उसके आंसुओ से भीगी अपनी हथेली को।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
मौलिक एवं अप्रकाशित।