भीगे बादाम – पिंकी नारंग #लघुकथा

बादाम छीलते हुए रीता ने दो बादाम चुपके से अपने मुँह मे रख लिए |जब वो पति राधे को दुध के साथ बादाम देने गई तो बादाम देखते ही अम्मा जी बिफर पडी |बादाम तो मैने पूरे भिगोए थे फिर लला को कम कयो दे रही हो |रीता की काटो तो खून नही वाली हालत हो गई, कंपकपाती अावाज मे बोली, वो वो अम्मा जी छिलते हुए नीचे गिर गए थे अब भला वो बादाम कैसे इनहे दे देती |अम्मा जी की शंकित नजरें उसे अंदर तक बेध रही थी |

तुमहारे पीहर से नही आती बादाम की बोरी जो नूँ ही गिराती फिरती हो |

रीता भी मन के चोर को छुपाते हुए बर्तन उठाने के बहाने वँहा से खिसक गई |रसोई मे जुठे बर्तन रखते हुए मायके के नाम से उसकी आँखें भर आई |वँहा ऐसा भेदभाव नही था |यहाँ अम्मा जी को लगता था, जितनी भी ताकत की अच्छी चीजे है वो मर्द लोगो के लिए है कयोंकि उनहे घर से बाहर जा कर पैसा कमाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है |औरतो का कया चौका बर्तन मे कैसी मेहनत |


ससुर जी थे नही इसलिए अम्मा भी घर के मरदो की कैटीगरी मे ही आती |ले दे कर एक उसे ही औरत का दर्जा था |वो सोच रही थी अगर राधे जी भी उसका साथ ना देते तो जिंदगी दोज़ख हो जाती |काम करते दिन कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता |रात का खाना बर्तन निपटा कर कमरे मे आई तो राधे जी उसका इंतजार कर रहे थे |गले लगा कर रीता को कहने लगे तुमहारे लिए कुछ लाया हूँ और मुस्कराते हुए बादाम का पैकेट रीता के हाथो मे रख दिया तुमहे भीगे बादाम बहुत पंसद है ना अलग से भिगो कर खा लिया करो |राधे जी की बातो ने उसे प्यार के सरोवर मे अंदर तक भिगो दिया था बिल्कुल भीगे बादामो की तरह

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!