भेदभाव – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

“मम्मीजी भी न ,जब देखो मेरे पर ही सारी जिम्मेदारी डालती रहती हैं ।” त्रिशला अपने मे बड़बड़ा रही थी ।

आज त्रिशला की सास  मालती और उनके पति  कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे थे  ।इसलिये घर की सारी जिम्मेदारी त्रिशला को सौंप दी थी ।

“देखो बेटा ,धोबी का हिसाब समय से कर देना ।”

“दूध वाले से कहना दस दिन एक लीटर दूध कम देगा ।”

” अखबार वाले से कहना अंग्रेजी का अखबार  पापा के लौटने के बाद  देगा ।”

“बगल वाली वर्मा आंटी के यहां हमारे कुछ बर्तन गए हैं ।उनका काम हो जाये तो याद से मंगवा लेना ।”

त्रिशला चुपचाप उनकी हां में हां मिला तो रही थी ,पर मन ही मन नाराज भी हो रही थी ।

“ये भी कोई बात हुई भला ? सरिता  भाभी को तो घर पर रहना है फिर भी मम्मीजी ने उनको कोई जिम्मेदारी नही सौंपी और वो ….उसे तो स्कूल भी जाना है फिर भी सारा सरदर्द उसे ही सौंप दिया ।” 

उधर त्रिशला की जेठानी सरिता अलग ही मन ही मन कुढ़ रही थी ।

“ये भी कोई बात हुई ।वो इस घर की बड़ी बहू है फिर भी मम्मीजी ने सारी जिम्मेदारी उसकी देवरानी त्रिशला को सौंप दी ।” 

“सुनो जी ,मेरी तो इस घर मे कोई इज्जत ही नही है ।” कमरे में पहुंचते ही सरिता ने पति से कहा ।

“क्यों क्या हुआ ?”

“देखिए न , मम्मीजी कितना भेदभाव करती हैं ।एक बार फिर वो   सब कुछ त्रिशला को ही सौंप कर गईं है ।”

“अरे , क्यों परेशान होती हो ।अच्छा ही तो है ,तुम सारे पचड़े से दूर हो ।” पति ने बात को टालने के उद्देश्य से कहा ।जबकि इस सबके पीछे की सच्चाई वो भी जानता था ।

दस दिन आराम से गुजरे । रात में मालती और उनके पति वापस आ गए । 

सुबह त्रिशला ने पिछले दस दिनों का ब्यौरा सास को दे दिया ।मालतीजी ने अनुभव किया कि त्रिशला उनसे सब बातें बता तो रही थी ,मगर उसकी बातों में थोड़ी नाराजगी सी थी ।

शाम को रसोई में मालतीजी ने बातों ही बातों में त्रिशला से इसका कारण पूछ ही लिया ।

“कुछ नही मम्मीजी ,इधर स्कूल में काम ज्यादा था ऊपर से घर का भी सारा बोझ सिर्फ मेरे पर था इसीलिये थोड़ा परेशान हो गयी थी ।” कहने को तो त्रिशला ने अपनी बात बहुत सामान्य ढंग से कही थी लेकिन मालतीजी के तजुर्बे से ‘सारा बोझ सिर्फ मेरे’ का मन्तव्य छुपा न रह सका ।उधर सरिता ने भी बातों बातों में अपनी नाराजगी प्रकट कर दी थी ।

मालतीजी समझदार थीं । दूसरे दिन रविवार था ।मालतीजी ने दोनों बहुओं को ऊपर छत पर बुलाया ।गमलों को ठीक करते करते उन्होंने बातों का सिलसिला आरम्भ किया ।

“अच्छा त्रिशला ,अबकी बार तो तुम्हारी  प्रिंसिपल ने तुम्हे ज्यादा  ही काम सौंप दिए हैं ।जबकि नई टीचरों को कम काम दिया है ।ऐसा क्यों ?”

“वो मम्मीजी  पिछले साल जो दो नई टीचरें आयीं थी न ,उनके काम से प्रिंसिपल मैडम बहुत संतुष्ट नही थीं ।”

“ऐसा क्यों?”

” पिछले साल कई बार ऐसा हुआ कि जब जब मैडम ने उनको कोई अतिरिक्त कार्य सौंपा ,वो उसको ठीक से कर नही पायीं ।”

“अच्छा”

“हां, एक की तो तुरंत तबियत खराब हो जाती थी ,और दूसरी को इतना तनाव हो जाता कि सारी झुंझलाहट बच्चों पर निकाल देती ।”

मालतीजी हंस  दीं ।

“क्या हुआ मम्मीजी ?” इस बार सरिता ने पूछा ।

“शायद तुम लोगों को अपने सवालों के जवाब मिल गए होंगे ।”मालतीजी मुस्कुराकर बोलीं ।

“सवाल ? कौन से सवाल?” दोनों बहुएं एक साथ बोल पड़ीं ।

“यही ,कि मैं हर बार घर की जिम्मेदारी त्रिशला को क्यों सौंपती हूँ ।

अब चौंकने की बारी दोनो बहुओं की थी ।उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से सास को देखा ।

मालतीजी ने दोनों बहुओं को वहीं बैठाया और प्यार से बोलीं …

“देखो तुम्हे लगता होगा कि मैं तुम दोनों में भेदभाव करती हूं ।मगर ऐसा नही है ।तुम दोनों ही मुझे बहुत प्रिय हो ।त्रिशला …तुम्हारी प्रिंसिपल ने  तुमको अधिक काम इसलिये दिया है क्योंकि तुम में संयम है ,समझदारी है और अधिक दबाव में भी काम को सुचारू रूप से करने की काबिलियत ।नई टीचरों को वो पिछले वर्ष  देख  चुकी हैं कि वो अधिक दबाव नही सहन कर सकतीं इसलिये उन्हें कम काम दिया गया है । सबकी अपनी अपनी क्षमता होती है बेटा ।”




“सरिता अब तुम समझ गयी होगी कि तुम्हारे ऊपर मैं कोई जिम्मेदारी क्यों नही डालती ।”

दोनों बहुएं अब बात को समझ गयी थीं ।अब उनके मन मे कोई मलाल नही था ।

#भेदभाव 

रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

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