सीमा-मेय आई कम इन सर।
सुनील (सीमा के बॉस)-कम इन सीमा।
सीमा-गुड मॉर्निंग सर। देयर आर सम फ़ाइल्स फॉर योर प्रायर अप्रूवल, सो काइंडली साइन दीज़ फ़ाइल्स।
सुनील (सीमा के बॉस)-ओह हाँ, दीज़ आर सो इंपोर्टेंट, इन्हें आगे तुरंत फाइनल अप्रूवल के लिये भेजो।
सीमा-सर पर अंकित भैया (प्यून) तो आए नहीं है, तो डायरेक्टर सर के पास फ़ाइल्स कौन लेकर जाएगा।
सुनील (सीमा के बॉस)-वो संविदकर्मी रमाकान्त नहीं आया क्या ?
सीमा- सर आए तो है पर मिश्रा सर ने उन्हें कुछ काम से भेजा है, क्योंकि वो तो मिश्रा सर के प्यून है।
सुनील (सीमा के बॉस)-ऐसा कुछ नहीं वो सबका काम देखेंगे, उन्हें कॉल कर तुरंत बुलाओ।
सीमा-ठीक सर। एक बात और सर अंकित भैया दो दिन से छुट्टी पर है पर कोई एप्लीकेशन या इनफार्मेशन नहीं दी है।
सुनील (सीमा के बॉस)-अच्छा, ठीक है जब आएगा तो उसको समझाऊँगा, बहुत छुट्टी लेता है।
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अगले दिन अंकित ऑफिस के निर्धारित समय से एक घंटा देरी से आते है, और रजिस्टर पर दो दिन छुट्टी वाली तारीख़ पर भी हस्ताक्षर कर देता है।
सुनील (सीमा के बॉस)-अंकित, दो दिन कहा थे, और इन्फॉर्म भी नहीं किया।
अंकित-सर तबियत ठीक नहीं थी, कॉल कर रहा था लग नहीं रही थी, और सर आपने जो हार्ड डिस्क बदलकर दूसरी लाने कहा था, वो काम कर दिया है।
सुनील (सीमा के बॉस)-अरे वाह, तभी मैं तुम्हें ही ये सब काम देता हूँ, क्योंकि तुम ज़िम्मेदारी से सब काम करते हो। अच्छा सुनो अभी थोड़ी देर में कुछ लोग आ रहें है उनके चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर देना।
अंकित-ठीक है सर अभी मैं रमाकान्त से कह देता हूँ।
सीमा-अंकित भैया इन दस्तावेजों की फ़ोटोकॉपीज़ करानी है।
अंकित-ठीक है मैम।
अंकित केबिन से बाहर निकलते ही रमाकान्त को आवाज़ लागता है और दस्तावेज उन्हें थमा देता है।
रमाकान्त भी बिना कुछ कहे दस्तावेज ले लेते है, और चले जाते है फ़ोटोकॉपी कराने।
सीमा अपने केबिन में साथ बैठी अपनी सहकर्मी रीना से कहती है कि अंकित और रमाकान्त भैया दोनों प्यून है फिर अंकित भैया सारा काम उन्हें क्यों थमा देते है।
रीना-अंकित भैया परमानेंट है और रमाकान्त भैया संविदाकर्मी है।
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सीमा-पर काम तो एक ही है ना दोनों के।
रीना-तू परेशान मत हो ये #भेदभाव बहुत सालों से चला आ रहा है, अंकित भैया का उपार्जित अवकाश कबका ख़त्म हो गया है फिर भी वो आए दिन छुट्टी ले लेते है और रमाकान्त भैया के एक दिन की अतिरिक्त छुट्टी पर सैलरी से पैसे काट लिए जाते है। ऑफिसर भी जानते हुए भी कुछ नहीं कहते तो हम क्या ही कर लेंगे।
सीमा-मैं रमाकान्त भैया से बात करूँगी।
सीमा भैया को बुलाती है और कहती है कि आप अंकित भैया को काम के लिए माना क्यों नहीं करते आप मिश्रा सर के अधीन हो ना कि अंकित भैया के।
रमाकान्त-मैम हम मजबूर है तीन बिटिया है ना खेती है ना बाड़ी है, बहुत मुश्किल से इस वेतन से गुज़ारा हो पाता है और इसमें भी कुछ बोलेंगे तो कही हमे निकल दिए तो हमे क्या मिलेगा, वैसे भी अंकित भैया अपने पिता जी की जगह नौकरी पे है और उनका व्यवहार बहुत बड़े बड़े लोगों से है उन्हें बड़े बड़े बाबू कुछ नहीं कहते तो हमारी क्या औक़ात है, और अभी 15 दिन बाद बड़ी बिटिया की शादी भी है तो सबसे थोड़ी मदद मिल जाएगी।
सीमा को ये सब सुनकर बहुत दुख होता है कि ये तो भेदभाव की हद हो गई।
अगले दिन रमाकान्त अपनी बिटिया की शादी का कार्ड सबको बॉटते है और सबसे हाथ जोड़कर कुछ सहयोग करने कहते है।
सुनील (सीमा के बॉस)-ये लो रमाकान्त 1100 रुपए।
किसी भी ऑफिसर ने 1100 रुपए से एक रुपए ज़्यादा नहीं दिया।
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सीमा अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर 10000 रुपए का इंतज़ाम कर रमाकान्त को देती है और बिटिया को शादी के लिए बहुत सारी बधाई देते हुए ये सलाह भी देती है कि देख लिया भैया। कोई किसी का नहीं है, आप इतने दिन से हर तरह का भेदभाव इसलिए सहन कर रहे थे कि समय आने पर सब आपका सहयोग करेंगे। आगे से अपने साथ किसी तरह का भेदभाव मत होने दीजियेगा, क्योंकि ख़ुद की लड़ाई ख़ुद लड़नी होती है। कहा भी गया है “भगवान भी उनकी ही मदद करते है जो अपनी मदद स्वयं करते है।”
रमाकान्त सीमा की बात सुनकर कहते है मैम आप बिल्कुल ठीक कह रही है, अब मैं सिर्फ़ अपने कर्तव्यों को निभाऊँगा सबके नहीं।
आदरणीय पाठकों,
हमारे समाज में हर किसी ने कभी ना कभी कही ना कही भेदभाव का सामना किया है, पर ये भेदभाव तभी समाप्त होगा जब हम उसके ख़िलाफ़ हो, अगर हम किसी डर से यही सहते रहे तो हमारी आगे आनी वाली पीढ़ी भी हमसे यही सीखेंगी। हमारे संविधान में भी किसी भी तरह के भेदभाव को निषेध किया गया है और सबको समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। अंत में कुछ पंक्तियाँ-
भेदभाव एक बेड़ी है, इसे तत्काल ही तोड़ो तुम।
सबको है समानता का अधिकार, इसे कभी ना छोड़ो तुम।।
आशा करती हूँ आप सभी को मेरी ये रचना पसंद आए। पसंद आने पर लाइक, शेयर और कमेंट तो बनता है जी
सधन्यवाद !
स्वरचित एवं अप्रकाशित (सच्ची घटना पर आधारित)।
रश्मि सिंह
# भेदभाव