“ इमरती क्या बात है तू इतना खोई खोई क्यों है… और तेरी रानी किधर है ससुराल से तो आ गई है ना फिर हमसे मिलने क्यों नहीं आई?” कल्याणी जी ने काम करती इमरती से पूछा
“ क्या कहें माँ जी हमारे तो करम ही फूट गए जो ऐसी बेटी जनी…जा कर कहीं डूब मरती तो भी संतोष कर लेते पर का कहें ।” हाथ में झाड़ू पकड़े वो वही बैठ फक्का मार रोने लगी
“ अरे अरे रोती काहे है … इतनी अच्छी तो बेटी है तेरी.. इतना ख़्याल रखती हैं… वो जानती है बापू नहीं है तो उसकी माँ कीं ज़िम्मेदारी उसको ही सँभालनी पर तू ये सब अपशब्द क्या बोल रही उसके लिए?” इमरती के कंधे पर हाथ रख उसे ढाढ़स बँधाते कल्याणी जी नेपूछा
“ माँ जी अब आप सब तो सब जानत ही हो हमार घर का क़िस्सा कहानी…सोचत रहे बेटी को पढ़ा लिखा देंगे तो कौनों नौकरी करलेगी….अनपढ़ ना कहलाएगी… पर ये पढ़ाई लिखाई ही मुआ हमार दुश्मन होई गवा…भगवान जाने कब से एक लड़का के साथ उठनाबैठना करती रही
हम तो उसे स्कूल भेज काम पर निकल जाते थे…वो स्कूल में पढ़ाई करती की मटर गश्ती राम जाने….ये सब देख सुनके कही ऊँच नीच ना हो बारहवीं परीक्षा देते ब्याह कर दिए… अब हमार कसम मान ब्याह तो कर ली …चार महीने बाद आई
तो सोचाअब सब ठीक है पर आज सवेरे वो घर से भाग गई ।” कहते हुए इमरती कमर में खोंसे हुए पल्लू से एक मुड़ा तुड़ा काग़ज़ निकाल करकल्याणी जी के हाथ में रख दी
“ माँ देख तुने कहा ब्याह कर .. कर ली … पर अब हमसे ना होगा हम महेश को ना भूला सके.. हमें खोजने की कोशिश ना करना .. तुम्हेंहमारी कसम…नहीं तो ज़िन्दा ना लौटेंगे।”
“ पगला गई है क्या रानी … ब्याह के बाद भाग गई .. तुमने पुलिस में रपट लिखवाई?” कल्याणी जी पूछी
“ ना माँ जी.. बहुत ज़िद्दी बेटी है हमार… कुछ कर ली तो हम जीते जी मर जाएँगे.. अभी तो ई भरोसा है ना कि वो सही सलामत हैं … लड़का तो अब कोई दुकान चलावत है ई हमका बताए रही ।”इमरती बेटी के लिए चिंतित ज़रूर थी पर यक़ीन था वो ठीक है
कुछ वक्त यूँ ही इमरती के रोने धोने में गुजर गए….
चार दिन बाद ही रानी घर आ गई…
“माँ हमको माफ़ कर दो… हम बहुत गलत किए… घर आने से पहले हज़ार बार नहर पर डूब मरने का सोचे… कौन मुँह से घर आते परतुम्हारे बारे में सोच सोच कर हलकान हुए जा रहे थे…महेश अच्छा लड़का नहीं है…कह रहा था तेरी माँ ने तेरे नाम जो ज़मीन ली है वोतुम्हें कब देगी… मैं समझ गई वो लालची है… उसको ये बोल कर आई हूँ जा रही हूँ अपने नाम करवा कर आऊँगी…मना कर देती तो मुझेमारता।” रानी माँ के गले लग बोली
इमरती बेटी को ठीक देख कर खुश थी…शायद इतने दिन में रानी को समझ आ गया था कि माँ जो भी की उसका ही भला सोच कर…
रानी वापस अपने ससुराल चली गई… ये चार दिन उसने अपनी ज़िंदगी के पन्नों में दफन कर नई शुरुआत की…उसका पति गाँव केस्कूल में टीचर था .. रानी को भी उसने पढ़ने को प्रेरित किया…
आज रानी एक स्कूल में टीचर हैं और दो बच्चों की माँ…।
कभी कभी भटकाव ज़िन्दगी में बहुत से ग़लत रास्ते की ओर ले जाते हैं तो कभी भटक कर इंसान सही राह पर भी आ जाता है।
आजकल के बच्चे बहुत नाज़ुक मोड़ पर है… घर पर ध्यान ना दिया जाए तो कदम भटकते देर नहीं लगती…और जो भटक गए हो तोकभी सख़्ती तो कभी प्यार से उन्हें सही राह दिखाने की कोशिश करनी चाहिए …क्योंकि कई बार माता पिता के ग़ुस्से के डर से भी बच्चेमौत का रास्ता अख़्तियार कर लेते हैं ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
#मुहावरा
#डूबमरना