भटकती आत्मा – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

आज न तो मेरा शरीर दवाब में था न वो मेरे पास बैठी मगर आज वो बहुत गुस्से में थी मैं उसका चेहरा तो मैं नही देख पा रहा था मगर उसकी आवाज स्पष्ट सुन पा रहा था। वो बोली कि मैंने सोचा था तूँ आराम से मान जाएगा मगर तू ऐसे नही मानेगा अब देख तेरा क्या हाल करती हूं ऐसे ही गुस्से में बड़बड़ाकर वो आगे निकल गई।

बात सन 2000 की है गाजियावाद कि पास एक छोटा सा शहर है साहिबाबाद। मेरी बहां एक कम्पनी में नौकरी लगी। पहली बार घर से निकला था कम्पनी हिमाचल में इंटरव्यू लेने आई थी सेलेक्शन हुआ कम्पनी का विजिटिंग कार्ड और जॉइनिंग लेटर लेकर जैसे कैसे दिल्ली तक ट्रेन में फिर आगे एक दो बस बदलकर कन्डक्टर ने साहिबाबाद में उतार दिया। बस अड्डे के सामने ही कम्पनी थी

मगर नया आदमी सामने होते हुए भी दो चार बार पूछता है। मैने भी रिक्शा वाले को पूछा तो बोला बाबूजी कम्पनी यहां से दूर है पचास रुपये लगेंगे। मुझे कुछ पता नही था तो बैठ गया रिक्शे पे उस रिक्शा वाले ने एक लंबा सा चक्कर लगाकर यहां से उठाया था

उसके पचास कदम पीछे उतारकर बोला वो रही कम्पनी। मैने उसको पैसे दिए धन्यवाद किया जैसे ही इधर उधर देखा तो सामने वो ही बस अड्डा था यहां बस से उतरा था। उस समय पचास रुपये भी मायने रखते थे खुद को ठगा हुआ सा महसूस करके चुपचाप कम्पनी की तरफ चल पड़ा।

कम्पनी के अंदर गया तो जाकर बातचीत हुई कैंटीन में खाना खाया और मैनेजर ने कहा कि आज तुम जाओ ये पीछे ही साहिबाबाद गांव है अपने लिए कमरा ढूंढ लो कल से जोइनिंग कर लेना। मैं बैग उठाकर गांव में कमरे की तलाश करने लगा एक गली में मुझे कमरा मिल गया तीन सौ रुपए किराया था कमरा अच्छा था गली के बिल्कुल साथ उसका दरवाजा था। और मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा सस्ता था। कमरे के सामने गली काफी खुली थी मगर अगला मकान आधी गली को घेरता था और गली आगे तंग थी । या यूं कहो कि अगले मकान की दीवार आधी गली तक थी। 

मैने बाजार से स्टोव ,मिट्टी का तेल और राशन बगैरह खरीदा और शाम का खाना कमरे में ही बनाया। सुबह सात बजे से डयूटी थी तो मैने मकान मालिक को कहा कि वो सुबह पांच बजे मुझे उठा दे तो मेहरवानी होगी क्योंकि उस बक्त मोबाइल और घड़ी अमीर लोगो के पास ही होते थे तो अलार्म का कोई साधन नही था। मकान मालिक ने मुझे बताया कि वो हर रोज चार बजे उठता है तो कोई बात नही वो उठा दिया करेगा पांच बजे। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

अरमान निकालना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

अप्रैल खत्म हो रहा था मई में गर्म लू चलने लगी मैं हिमाचल से गया था तो मेरे लिए बर्दाश्त करना काफी मुश्किल था। मैंने अब चारपाई बाहर गली में लगानी शुरू कर दी टेबल फैन दरवाजे पे रखकर सोता तो थोड़ी सांस में सांस आती। गली में थोड़ी हवा भी चलती थी जो ठंडी तो नही मगर राहतभरी थी। तीन चार रात बाहर सोया सबकुछ ठीक था मगर उस रात रविवार को मैं बाहर लेटा सामने घर की खिड़की से टीवी की आवाज आ रही

है मैं कुछ सोच रहा हूँ की अचानक पीछे से मेरे सिर के बालों में ठंडी हवा का झोंका लगता है और मेरा शरीर बिल्कुल सुन्न हो जाता है मैं टीवी की आवाज सुन पा रहा हूँ आंखे खुली हैं मगर हाथ पैर जुबान कुछ काम नही कर रही। एक औरत आई जिसने लाल साड़ी पहन रखी है वो मेरे पैरों के पास आकर बैठ गई उसका चेहरा मुझे दिखाई नही दे रहा था मगर वो कुछ बातें कर रही थी जो मुझे समझ नही आ रही थी ।

मैं बोलने की कोशिश में हूँ हूँ करता रहा मगर मेरी जुबान नही चल रही थी। कुछ देर तक ऐसे ही चला फिर मैंने अपने कुल देवता का ध्यान किया और एक झटके में अपना हाथ झटक दिया जिससे मेरी मूर्छा टूट गयी और सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो गया। वो ही टीवी चल रहा है बैसे ही मैं लेटा हूँ। थोड़ी देर में अचंबित हुआ फिर लगा कि शायद सपना था या मेरा बहम था और मैं सो गया।

अगले छः दिन तक मैं बाहर सोया कुछ नही हुआ मगर जैसे ही रविवार की रात आई तो फिर वो ही टाइम वो ही माहौल और वो ही हरकत वो आई बैठी बाते करती रही मैं हूँ हूँ करता रहा और कुछ देर बाद वो उठकर चली गई। अच्छा खैर अब ये हर रविवार को मेरे साथ होता मगर पता नही क्यों अब मुझे उससे डर नही लगता था

वो आती कुछ बोलती रहती और उठकर चली जाती और मैं नॉर्मल सो जाता। पहले पहले मुझे लगा कि ये बहम है मगर चार पांच संडे जब ऐसा हुआ तो मैंने साथ वाले कमरे में किरायदार से बात की उसने बताया कि भाई साहब यहां रात को कभी कभी आवाज लगती है कभी कुंडी बजाती है वो औरत हम लोग कभी बाहर नही निकलते रात को। अच्छा।। उसने मुझे डरा दिया बैसे भी अब मुझे आये हुए ढाई तीन महीने हो गए थे। 

मैंने कम्पनी से हफ्ते की छुट्टी ली और घर आ गया। बहां हमारे गांव में एक झाड़फूंक वाला था जो मंदिर में भूत प्रेत का निदान करता था। मैं भी उसके पास गया उसे सारी बात बताई तो उसने मुझे एक तुलसी के मनके की माला और भवूत दी और कहा कि जब रात को सोना तो ये माला अपने गले मे या अपनी कलाई पर लपेट लेना कोई ऐसी चीज पास नही आएगी। 

मैं बापिस साहिबाबाद आ गया जिस दिन आया उस दिन संडे ही था क्योंकि मंडे को ड्यूटी जाना था। मैंने आज फिर चारपाई बाहर लगा ली और वो माला कलाई पे डाल ली। दोस्तो आज बहुत ही हैरानी वाली बात हुई आज न तो मुझे मूर्छा आई न न आवाज बन्द हुई बस हवा का झोंका मेरे सिर को लगा जरूर मगर आज वो मेरे पास नही बैठी बिल्कुल सामने खड़ी हो गई आज पहली बार मैं उसकी बात समझ पा रहा था। वो बोली कि मैंने सोचा था तू आराम से मान जाएगा मगर लगता है तू ऐसे नही मानेगा अब देख तेरा क्या करती हूं।

उसकी शक्ल दिखाई नही देती थी मानो घूंघट कर रखा हो। मैने उससे पूछा कि मैंने क्या किया है जो आप ऐसे बोल रही हो तो उसने कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं तुमसे शादी करना चाहती हूं मगर तुम ये क्या कर रहे हो ये माला क्यों पहनी है इसे उतारकर फैंक दो। कुछ देर वो गुस्से में गन्दी गन्दी गालियां देती रही जो मैं लिख नही सकता और फिर बहां से चली गई। उसके बाद कब मेरी आँख लगी पता नही पर उसके जाने के बाद में सो गया।

इस कहानी को भी पढ़ें:

नौकरी वाली बहू – कविता झा’अविका’ : Moral Stories in Hindi

रात को पता नही कितने बजे का टाइम हुआ कि एक बच्चा आया और मुझे आवाज दी बोला अंकल अंकल आपने उठना नही आज डयूटी का टाइम हो गया। मैं हड़बड़ाकर उठा बिस्तर समेटा और चारपाई लेकर कमरे में चला गया। लाइट जलाई साथ मे वाशरूम था बहां नहा धोकर स्टोव चलाकर चाय बनाई रोटी सब्जी बनाई

मगर हैरानी की बात ये की आज मकान मालिक मुझे उठाने नही आया। कम्पनी का हूटर पन्द्रह मिनट पहले बजता था मैं उसका इंतजार कर रहा था कि पहला हूटर बजे तो मैं जाऊं। उससे पहले ही अंकल आ गए बोले हां भई आज कहाँ की तैयारी है रात को बारह बजे नहाने की आवाज आ रही थी बर्तन धोने की आवाज आ रही थी कहीं जा रहे हो क्या? 

मैंने हैरानी से पूछा क्या बारह बजे?? उसने कहा हां अभी साढ़े तीन हुए हैं तेरे चक्कर मे मुझे भी नींद नही आई इसलिए चार की बजाए साढ़े तीन ही उठ गया।

अब सच पूछो तो मेरी हालत खराब हो गई मैं भी सोचने लगा कि मैं यहां किसी बच्चे से बात नही करता किसी को जनता नही तो वो मुझे उठाएगा क्यों आकर? अंकल को गए हुए अभी पांच मिनेट हुए होंगे कि मेरी तबियत बिगड़ने लगी मैं टॉयलेट गया मुझे दस्त उल्टियां शुरू हो गईं हालात इतनी खराब हो गई

कि आठ बजते बजते मार्किट में एक क्लीनिक में एडमिट होना पड़ा ग्लूकोस लगा दिया गया। अभी तक काफी दोस्त भी बन गए थे जिसे जिसे पता चला वो खवर लेने आता रहा। दो दिन तक मैं क्लीनिक में रह मेरी हालत में कोई सुधार नही रंग सफेद पड़ गया और समझो कि कुछ देर का मेहमान बनकर रह गया था।

कम्पनी में पता चला तो मैनेजर आ गया उसने कहा कि ऐसे कर तू घर चला जा पन्द्रह दिन की छुट्टी उसने कुछ पैसे दिए कहा कि अपनी गाड़ी में रेलवे स्टेशन छोड़ देगा। क्योंकि उसे लग रहा था कि अब ये बचेगा नही और यहां मरेगा तो कंपनी को मोटी रकम के साथ साथ और बीस फॉर्मेलिटी करनी पड़ेगी तो अच्छा है घर मे जाकर हो जो हो। 

मैं मरते मरते घर पहुंचा फिर उसी झाड़फूंक वाले के पास ले गए उसने देखा और बोला कि वो तुझे ले जाने ही वाली थी मगर कमरे में भभूत और हाथ मे माला होने के कारण तू बच गया। उसने कहा कि अब डरने की जरुरत नही उसकी ऐसी की तैसी। बाबा ने होंसला दिया तो मुझे भी उम्मीद मिली और एक दो दिन में मैं ठीक होने लगा।

कुछ दिन में मैं ठीक हो गया अब मुझे बापिस जाना था मगर बाबा ने बोला कि अब जा जरूर मगर वो कमरा छोड़ दे रविवार से पहले पहले। मैंने बैसे ही किया जाकर मकान मालिक से बात की उसे सारी कहानी बताई तो वो कहने लगा अरे पहाड़ी होकर डरता है मैं तो जलते मुर्दे की चिता से रात को बारह बजे बीड़ी जलाकर पिया हूँ ये किया हूँ वो किया हूँ। मैंने उसके पैर छुए और कहा कि बस एक दो दिन में मैं कमरा बदल लूंगा। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

कहीं ये वो तो नहीं..!!!  : Moral stories in hindi

अब दोस्त तो काफी बन गए थे तो मैं एक के साथ शिफ्ट हो गया वो उत्तराखंड का था। आज लगभग एक महीने के बाद मैं मिट्टी का तेल लेने डिपो पे गया तो बहां एक आदमी डिपो वाले से बात कर रहा था और वो बही कहानी उसे सुना रहा था जो मेरे साथ हुई मैने उससे पूछा कि कहां रहते तो उसने जो कमरा बताया वो मेरे वाला ही था मेरे जाने के बाद उसने वो कमरा ले लिया था। तब डिपो वाला तो लोकल था उसने पूछा किराया कितना है तो बोला 300 मैंने कहा कि मैं भी 300 ही देता था।

डिपो वाले ने कहा कि पूरे साहिबाबाद में तीन सौ का कमरा नही मिलेगा तो उसने तुम लोगो को क्यों दिया कभी सोचा नही? और बाकया ही कमरा कहीँ भी आठ सौ, एक हजार से कम नही था। तब डिपो वाले ने बताया कि तुम्हारे कमरे के साथ मे एक कमरा है यहाँ मियां बीबी रहते थे उस औरत के बच्चा होने वाला था डिलीवरी के समय उसी कमरे में उसकी मौत हो गई उसके बाद वो औरत रात को अपने बच्चे को आवाजें लगाती थी उससे मिलने को तड़पती थी। आसपास के सभी किरायदार कमरे छोड़कर चले गए

उसका पति भी बच्चा लेकर घर चला गया मगर वो औरत आज भी बहीं घूमती है अक्सर रात को लोगो को नजर आती है। आपके कमरे के पीछे वाला वो कमरा खाली ही रहता है उसे किराए पे एक दो बार चढ़ाया तो रात को उनके साथ ऐसा हुआ कि सुबह ही छोड़कर भाग गए। जो भी उस कमरे के बारे में जानता है वो किराए पर नही रहता आप जैसे बाहर के आए हुए फंस जाते हैं सस्ता किराया देखकर।

                    अमित रत्ता

          अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!