“माँ, मेरा रास्ता मत रोको, तुम खुद अपनी पहचान बना नहीं पाई, आज मै अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ, तो मेरी उड़ान को पँख दो, उसे रोको नहीं, नहीं तो मै भी आपकी तरह गुमनामी में रह जाऊँगी, बस उसकी बहू, उसकी पत्नी, उसकी माँ, यही मेरी पहचान रह जायेगी “!!पाखी अपनी माँ को समझाने का प्रयास कर रही थी।
“पर बेटा, पत्नी, माँ या बहू की पहचान क्या अच्छी नहीं होती, ये पहचान तो सदियों से चली आ रही,”प्रमिला ने पाखी को कहा तो जरूर, पर बेटी की नजरों में अपनी अहमियत देख, कहीं शूल भी चुभ गया,” पहचान “!!सच ही तो कह रही, बहू पत्नी और माँ के किरदार से इतर उसकी पहचान क्या है..!!
कम उम्र में उसका ब्याह हो गया था, उसका क्या कसूर, साल भर में पाखी आ गई, जो पढ़ने की थोड़ी -बहुत अभिलाषा थी, वो भी दम तोड़ दी। कह दिया गया -अब तुम माँ हो, तुम्हारी जिम्मेदारी अब बेटी है, पढ़ाई नहीं। प्रमिला मन मसोस कर रह गई। घर गृहस्थी के काम और पाखी।।फिर दो साल बाद उनकी बगियां में प्रखर का आगमन हो गया। प्रमिला के टूटे सपने, अपनी किरचों के साथ दिल के कोने में दफ़न हो गये.।करती भी क्या, क्योंकि आस -पास सब शादी के बाद यही कर रही थी।
पाखी अपनी माँ और पिता का सम्मिलित रूप था, लम्बा कद भी, उसे विरासत में मिला। जब छोटी थी, तब एक दिन, प्रदीप के मित्र सपरिवार आये, पाखी को देख, वे बोल पड़े, इसका रूप -रंग और कद मॉडल बनने लायक है,तबसे उसे सनक चढ़ गई वो मॉडल बनेगी,। घंटो शीशे के सामने खड़ी हो, कैटवाक की प्रैक्टिस करती।पाखी पढ़ने में भी होशियार थी। अतः प्रमिला या प्रदीप को, उसको पढ़ाई के लिये कुछ कहना नहीं पड़ा। उसके मॉडल बनने की इच्छा को प्रमिला और प्रदीप बचपना समझते, सोचते बड़ी होंगी तो अपने -आप समझ जायेगी।
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कल पाखी का बारहवीं का रिजल्ट आया, अपने स्कूल में पाखी दूसरे स्थान पर थी। अख़बार वाले आज सुबह आये, उनके इंटरव्यू में पाखी ने मॉडल बनने की बात कहीं, जिसको सुनकर, प्रमिला मिडिया वालों के सामने तो नहीं बोली पर उनके जाने के बाद, माँ -बेटी में वाक्य -युद्ध चालू था।भले घर की लड़कियाँ कहीं मॉडल बनती है, कितने छोटे कपड़े पहनती है, लोग चरित्र पर उंगली उठाते है … प्रमिला ने पाखी को समझाना चाहा। “माँ आपको अपनी परवरिश पर भरोसा होना चाहिये,और छोटे कपड़े पहनने से कोई चरित्र हीन नहीं होता बल्कि देखने वाले की दृष्टि में ऐब होता है… पाखी अपने तर्क से प्रमिला को समझाना चाह रही थी।
पाखी ने अपनी बातों से प्रमिला के व्यक्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया, जो प्रमिला को अंदर तक भेद गया। प्रमिला को याद आया, उसे डान्स का कितना शौक था, पर उसके डांस को बंद करा दिया गया -कहीं भले घर की लड़कियाँ डांस करती है, तब प्रमिला भी आक्रोश से भर उठी थी, पलट कर माँ को बोल भी दिया था -ये भले और बुरे की परिभाषा क्या है,आपको अपनी बेटी पर भरोसा होना चाहिये,ना की आलोचना करने वाले लोगों का साथ देना चाहिये।तब माँ ने एक थप्पड़ लगा उसकी जुबान बंद करा दी थी। ओह… पर आज, खानदान की दुहाई दे, उसने भी तो पाखी के सपनों के पँख कुतरने चाहा था। दो पीढ़ी में अंतर कहाँ…?, वो भी तो वहीं कर रही, जो आज से कई साल पहले उसकी माँ ने किया…., फिर फर्क ही क्या है, वो आधुनिक होते हुये भी, पिछड़ी सोच को अंजाम दे रही। जबकि उसने उस समय सोचा था, वो अपनी बेटी के लिये हर रास्ता खोलेगी।आज अपनी बेटी का साथ ना देकर उसका भरोसा तोड़ रही है।
अगली सुबह पाखी की नींद खुली तो प्रमिला चाय लें कर बैठी थी, “पाखी ने गुस्से में चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।”पाखी तुम्हारी चाय के साथ, तुम्हारे सपनों का आगाज़ भी है, भर दो, और उड़ान भरो,”। पाखी झटपट उठी, माँ को कस कर पकड़ लिया..।प्रमिला ने प्यार से हाथ फेर कर उसका माथा चुम लिया.। “मै तुम्हारी पहचान बनाने के लिये, हमेशा साथ दूंगी, और तुम पर मुझे पूरा भरोसा भी है, तुम ये मुकाम जरूर पा लोगी “।
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शाम को पाखी घर आई तो प्रमिला को एक उपहार पकड़ा, चाय बना कर लाई,”माँ आप मेरे सपनों को उड़ान दे रही है, मै और प्रखर आपके सपनों को उड़ान देने की कोशिश कर रहे, रुकना नहीं माँ, अब,”!!प्रमिला ने खोल कर देखा -घूँघरू वाले पाजेब, एक पाखी ने उसके पैरो में बांधा, दूसरा प्रखर ने…। “पर बेटा, इस उम्र में “…।”सीखने और सिखाने की कोई उम्र नहीं होती माँ, जब शुरू करो ,तभी सवेरा., कदम तो बढ़ाओ…।और प्रमिला फिर रुकी नहीं, हौसले ने उसकी ताकत को बढ़ा दिया,बच्चों के भरोसे ने उसे सशक्त कर दिया।माँ -बेटी, घर -परिवार, समाज के बहुत विरोधो के बाद भी, अपनी एक अलग पहचान बना ली।
आज “प्रमिला नृत्य कला “का उद्घाटन था। जो दो बरस के बाद, अपना मुकाम पाया,और शाम को घर के लोगों को फेमिना ब्यूटी कांटेस्ट में विनर रही, मिस फेमिना पाखी के सेलिब्रेशन में जाना है…।आखिर एक भरोसे ने सबका जीवन बदल दिया।
—संगीता त्रिपाठी
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