—–आज रीना ससुराल में पूरे एक महीना दस दिन ब्यतीत करके पहली बार मायका आ रही थी। माँ की धड़कन तेज़ तेज़ गति से चल रहा था। पता नहीं रीना का ससुराल का पहला अनुभव कैसा होगा ! वह अच्छी तरह से जांच परख कर रिश्ता तय की थी । मगर माँ जब बेटी को ससुराल भेजती है तब उसके पहली लौटकर आते तक उसे तसल्ली नहीं होती।
बेटी की जिंदगी का यह बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है , क्योंकि कहते हैं न-हांड़ी के एक दाने को छूकर पूरे हांड़ी भर चांवल के पकने न पकने का अंदाजा लगा लिया जाता है , ठीक उसी अंदाज में माँ बेटी के वापस आने का राह देखते हुए घबराते रहती है । फिर रीना की माँ ने खुद को सहज बनाने का प्रयास किया। ये क्या मैं तो एकदम पागलों की तरह हरक़त कर रही हूँ, भला रीना को ससुराल में क्यों कुछ भी परेशानी होगी। दामाद जी सरकारी इंजीनियर हैं सास-ससुर जी भी बड़े खुले विचारों वाले हैं मैं तो नाहक ही परेशान हो रही हूँ।
तभी कार के हार्न की आवाज़ सुनाई देने लगी इतनें में रीना की छोटी बहन शशि भी दौड़ कर गेट के पास खड़ी हो गई। रीना कार से उतरी सधे कदमों से अपने घर की सीढ़ी चढने लगी । उतरने के अंदाज से ही माँ भांप गई- ” सब कुछ ठीक नहीं है ।”
फिर दिमाग को झटका, और रीना के पास आकर सहज स्नेह से गले लगाया। मगर ये क्या !!! रीना तो माँ से गले लगकर बिलख कर रोने लगी । माँ का कलेजा दहल गया गले अलग करते हुए दोनों बाहों को पकड़ कर अपने सम्मुख लाकर बोली-” क्या हो गया बेटी! ऐसे क्यों रो रही हो ?” माँ-बेटी का रिश्ता ही ऐसा अनोखा होता है जहाँ एक दूसरे के दर्द को दोनों ही खुद में छुपाने का भरसक प्रयास किया जाता है।
रीना अपनें ससुराल के दर्द को अपनें चेहरे से ऐसे गायब कर दी जैसे जलते दीपक की लौ को किसी ने फूंक कर बुझा दिया हो । और आंसू पोंछते हुए अपनी माँ से हंसकर कहने लगी ” अरे मम्मी …आप भी बहुत कमजोर दिल की हो ” इतनें दिनों बाद आपसे मिली हूँ न इसीलिए रोना आ गया, और कुछ नही । सब ठीक-ठाक है वहाँ।
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चलो शशि घर को देखते हैं कितने दिनों बाद आई हूँ बाप रे । रीना घर में मशगूल हो गई।
किसी को भनक नहीं लगी कि रीना और उसके पति के बीच क्या मामला है।
एक दो महीने बाद रीना के ससुराल से दुसर पठौनी करनें का संदेश आया । रीना पढ़ी लिखी संस्कारों वाली लड़की थी। उसे समाज के रीति रिवाजों का बखूबी ज्ञान था । “और साथ ही साथ खुद पर भरोसा था ।” यक़ीन था अपनी काबिलियत पर कि एक न एक दिन उसके पति के दिलों दिमाग में बसे हुए किसी दूसरी लड़की का लगाव वह उतार लेगी । इसी विश्वास और भरोसे के साथ वह ससुराल आ गई। ससुराल पक्ष से भी किसी को कुछ पता नहीं चलता था कि दोनों पति पत्नी के बीच वो रिश्ता कायम नहीं हुआ है जो होना चाहिए।
मनोज दूर शहर में इंजीनियरिंग की नौकरी करता था , रीना उसके पसंद की नहीं थी , सो तो उसे बहाना मिल गया उससे छुटकारा पाने का। दो चार दिन साथ रहा फिर माँ-पिता से इजाजत लेने लगा -“माँ! मुझे सर्विस के लिए जाना होगा। ” माँ-पिता जी ऐतराज करने लगे -” ऐसे कैसे नई-नवेली दुल्हन को छोड़कर जा सकते हो तुम। ” बहुरानी को भी लेकर जाओ । मनोज असमंजस में पड़ गया, अब क्या करे ! उसने बहाना बनाया-माँ जी वहाँ रहने के लिए मकान नहीं है। पहले मकान ढूढता हूँ फिर ले जाऊंगा। ये क्या कह रहे हो तुम! इतनी सुन्दर सी बहु को मैं ऐसे अकेले तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रखूंगी। पहले जहाँ तुम रहते थे वो जगह छोटी हो या बड़ी बहु को लेकर जाओ ।
” मनोज की दाल नहीं गली ” रीना को साथ लेकर ही जाने को मिला । रीना में तो कुछ कमी थी ही नहीं, उसके गौरवर्ण के मुखमण्डल पर विराजे नशीली आँखें तथा अधरों पे चुप्पी साधे कोई तपस्विनी लगती थी । जो धीरे-धीरे उसके अंदर बसे किसी रूपसी के मोह को उतार रही थी । एक दिन की बात है –मनोज खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल पर बैठा हुआ था । मन ही मन सोच रहा था कि किस तरह इस लड़की को नीचा दिखाया जाय । आज इसके खाना परोसते ही सब्ज़ी की कटोरी उलट पलट कर फेंक दूंगा
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फिर देखता हूँ मौनवती क्या करेगी । रीना ने टेबल पर खाना लगा दिया। मनोज ने खाना शुरू किया सब्ज़ी मुंह में डालते ही भौंचक्का रह गया। इतना स्वादिष्ट भोजन! हे भगवान इस पर कैसे गुस्सा आए! वह एक दो निवाला खाने के बाद टिशू पेपर से हाँथ पोंछते हुए कहने लगा-“सुनों!…रीना पास आ गई” जी !” बस इतना ही कहा उसने। रीना का हाँथ पकड़ते हुए मनोज पश्चाताप भरे स्वर में कहने लगा -” देखो रीना ! मैं तुमसे इतनें दिनों तक दूरी बनाए रहा अब तक तुमसे बात भी नहीं किया तूमने कुछ जानने की कोशिश ही नहीं किए,
क्यों रीना? हर लड़की चाहती है कि उसका पति उसे पलकों में बिठाकर रखे , उसे जिंदगी की हर खुशी से भर दे। और मैं तुमसे इतनें दिनों तक बात भी नहीं किया तूमने कुछ कहा क्यों नहीं?वह नजरें झुकाए चुपचाप खड़ी थी। मनोज बोलते गया मैं किसी और से शादी करना चाहता था रीना ! मगर तुम्हारी सुन्दरता से कहीं ज्यादा तुम स्वभाव से सुन्दर हो रीना ! मैं तुममें कमियां ढूढता रहा और तुम प्रतिदिन खूबियां सामने लाती रही आज तुमने पाक कला में भी जीत हासिल कर ली और कहते हैं न पति के प्रेम की गली उसके रसना से होकर गुजरती है,
इतना कहते-कहते उसने उसे अंक में भर लिया। आज रीना को सब कुछ मिल गया। धैर्य और खुद पर भरोसे के बल बूते से । उसने सिर्फ इतना कहा-” जेहि के जेहि पर सत्य सनेहु सो तेहि मिलहि न कछु संदेहु। ” तुलसीदास जी के इस दोहे के साथ सत्य प्रेम का सत्य प्रेम से मिलन हुआ।
#भरोसा
।।इति।।
-गोमती सिंह
कोरबा, छत्तीसगढ़