भैरवी — डा.मधु आंधीवाल

जनवरी की उस शाम घना अंधेरा उस पर बरसात शुरू हो गई थी। वह पूरा भीगा हुआ था और जंगल में पेड़ के नीचे खड़ा कांप रहा था, तभी जोर की बिजली कड़की और उसने देखा, उस पेड़ के ठीक पीछे एक मकान था । राहुल अपनी दोस्त प्रिया के बुलाने पर शहर से दूर लौंग ड्राइव पर आया था । राहुल को क्या पता था कि मौसम बेरंग हो जायेगा ।  प्रिया का भी कहीं पता नहीं था । जिस जगह दोनों को मिलना था शायद वह स्थान भी यह नहीं था । 

        राहुल को पेड़ के पीछे मकान में कुछ उजाले का आभास हुआ । वह धीरे धीरे उस मकान तक पहुँचा मकान क्या था भुतहा खंडर था । उसने टूटी खिड़की से झांक कर देखा एक बहुत डरावना व्यक्ति हवन कुंड के सामने बैठा है और बहुत सी डरावनी स्त्रियाँ उसके चारों तरफ हाथ में एक कटोरा लिये हुये हवा में घूम रही हैं ।  कटोरे में रक्त भरा हुआ है। उसे अपनी मां का वाक्य याद आया कि ये अघोरी होते हैं और इनके साथ इनकी भैरवी होती हैं । ये मनुष्य की बलि चढ़ाते हैं और उसका रक्त भी पीते हैं । राहुल डर से कांपने लगा । इतनी देर में उसे एक कर्कश आवाज सुनाई पड़ी भैरवी आज का महाकाल के भोग का प्रबन्ध हुआ या नहीं यदि प्रबन्ध नहीं हुआ तो एक भैरवी की बलि दी जायेगी । भैरवी की आवाज सुनाई दी जैसे चमगादड़ भिनभिना रही हो गुरुवर बाहर खिड़की के पास खड़ा है। अभी पकड़ कर लाते हैं । बस राहुल का तो डर कर बुरा हाल वह जब तक भाग पाता एक भैरवी जो शायद सबकी मुखिया थी बाहर आई और उसे गर्दन से पकड़ कर उठा लिया वह चीखा छोड़ो मुझे छोड़ो मेरी बलि मत दो ।

       उसी समय उसके गाल पर तमाचा पड़ा वह थरथर कांप रहा था । उसने आंखे खोली देखा बड़े भाई उसकी गर्दन पकड़ कर उठा रहे हैं और मां के प्रवचन जारी हैं अरे उस कलमुंही प्रिया के साथ और जाकर बैठ उस मरघट के पास । अब भैरवी और भैरव ही तुझे सबक सिखायेगे । राहुल चुपचाप बैठ कर सोच रहा था की क्या ये सच था ।

स्व रचित

डा.मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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