भाइयों के लिए – निभा राजीव “निर्वी”

दिव्या की आंखें रह-रहकर भर आ रही थी। इसी साल उसने अपने फौजी भाई को खो दिया था। उसका भाई पूरी वीरता के साथ देश के लिए लड़ते हुए सीमा पर शहीद हो गया था। तिरंगे में लिपट कर आया था उसका शव! आंखें नम हो गई थी पर मस्तक गर्व से उन्नत ! ऐसी विदाई हर किसी को कहाँ नसीब  होती  है। एक बार भी नहीं रोई थी वह और ना ही मां पापा! सब ने गर्व से भर कर उसका अंतिम संस्कार किया। हृदय में उसको खोने का दुख तो था पर उसकी वीरता और उसके पराक्रम के आगे सब नतमस्तक थे और आंसुओं को बांध रखा था। और भारत का वह लाल सदा के लिए भारत की मिट्टी में विलीन हो गया ।पर आज न जाने क्या हुआ, रक्षाबंधन के अवसर पर मन क्यों इतना विकल हो रहा है…..आज से ठीक 1 हफ्ते के बाद राखी थी,पर इस बार  भैया नहीं था । यह कैसा दिन उसे देखना पड़ रहा था….

              विगत समय उसकी आंखों के आगे चलचित्र की भांति चलने लगा। हर साल राखी में दोनों भाई बहनों की वो  ढेर सारी मस्ती… पहले तो भैया राखी बंधवाने में ढेर सारी मनुहार कराता था, फिर जब वो उदास हो जाती थी तो झट से अपनी कलाई आगे कर राखी बंधवा लिया करता था । उसका टीका कर राखी बांधते हुए दिव्या को लगता था कि संसार की सबसे भाग्यशाली बहन वही है जिसे इतना ढेर सारा प्यार करने वाला भाई मिला है । वह डबडबाई आंखों से भाई की आरती करती और उसे मिठाई खिलाया करती थी! भैया भी निहाल होकर प्यार से उसके हाथों में उपहार थमा दिया करता था। उस दिन वह अपने हाथों से भाई के लिए कुछ ना कुछ जरूर बनाती थी और उसे प्यार से खिलाती थी। जाने कहां चले गए वो दिन! विश्वास ही नहीं होता कि अब उसका भैया लौट कर कभी उसके पास नहीं आयेगा…. फफक पड़ी दिव्या…. आज इतने दिनों बाद पहली बार। साथ ही गर्व से सिर ऊंचा हो गया कि वह इतने शूरवीर शहीद भाई की बहन है।




400;”>               उसने अलमारी से एल्बम निकाली। ढेर सारी तस्वीरें भैया की….. मां पापा के साथ…. उसके साथ…. गांव में मस्ती करते हुए….. और यह वाली तस्वीर.. जिसमें वह अपने फौजी दोस्तों के साथ मस्ती करता हुआ खिलखिला रहा है। उसने तस्वीर को उंगलियों से छूकर जैसे भाई को महसूस करना चाहा। उसकी कलाई उंगलियों से छुआ, जिस पर वह कभी राखी बांधा करती थी। एल्बम उठाकर उसने चूम ली तस्वीर को और अपने  सिर पर उंगलियां लगाकर सेल्यूट किया अपने वीर शहीद भाई को…..  पर मन का क्या करें जो भैया के विछोह में बावला हुआ जा रहा था ।अब कौन आएगा उसके पास… कौन करेगा उससे मस्तियां…. किस की कलाई पर बांधेगी वह राखी….उसने दीवार से सिर टिका लिया और आंखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी। आंखों के आगे वही भैया  का  हंसता खिलखिलाता चेहरा नाच रहा था। कितना खुश था वह दोस्तों के बीच….. जाने कब तक वह यूं ही बैठी रही, मां की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी..”- क्या हुआ दिव्या, तू रो क्यों रही है बेटा?”……

दिव्या कुछ उत्तर नहीं दे पाई। पर माँ उसके हाथ में एल्बम देखकर सब कुछ समझ गई। उनका भी गला रुंध गया पर पर उन्होंने तुरंत भावनाओं पर नियंत्रण पा लिया। और शांत स्वर में उसे समझाने लगी…..”- दिव्या तेरा एक भाई गया है,पर अभी भी हजारों भाई देश की और हम सब की सुरक्षा में सीमा पर तैनात हैं, अपनी परवाह किए बिना। धूप, सर्दी, गर्मी, बरसात सब झेल रहे हैं। खून को जमा देने वाली ठंड में वहां अपना जीवन काट रहे हैं ताकि हम सब सुरक्षित रहें। ऐसे भाइयों की बहन है तू। भाइयों की तुझे क्या कमी है। उठ.. जा..राखियां खरीद कर ला और अपने उन भाइयों की सुरक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए ईश्वर को राखी चढ़ा। तेरा भैया जहां भी होगा उसकी कलाई में अपने आप राखी बंध जाएगी। वह तुझे वहीं से आशीष देगा। शेर की बहन है तू। ऐसे आंसू बहा कर उसकी वीरता को मत लजा ..” …. इतना कहते-कहते उस वीर प्रसूता माँ का चेहरा गौरव से दमकने लगा।

             दिव्या माँ के उस दैदीप्यमान चेहरे को देखती रह गई। और कुछ क्षण पहले की उसकी ह्रदय विदारक भावनाएं तिरोहित हो गई और उसके स्थान पर उसका रोम-रोम मानो वंदे मातरम के नारों से  गूँजने लगा। आंसू पोंछ कर वह भी खड़ी हो गई ।अब राखियां भी तो लानी थी उसे सीमा पर तैनात अपने वीर भाइयों के लिए।

#रक्षा

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!