क्या हुआ सोनम? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई? भतीजे का नामकरण है और बुआ ही सबसे आखिर में पहुंचे अच्छा लगता है क्या? मनोज ने कहा
सोनम: सच कहूं, मां पापा के बिना उस घर में अब जाने का मन बिल्कुल भी नहीं होता। पहले मां चली गई फिर पापा का सहारा था, अब वह भी नहीं रहे, बड़ा मन खराब हो रहा है।
मनोज: सोनम! माता-पिता जीवन भर हमारे साथ तो नहीं रह सकते ना? ऐसे में भैया भाभी से ही मायका होता है। तुम देखना जितना मैं तुम्हारे भैया को जानता हूं वह तुम्हें कभी तुम्हारे पापा की कमी महसूस नहीं होने देंगे। अब यह सब छोड़ो और तैयार हो जाओ। मनोज यह कह ही रहा होता है कि सोनम का फोन बज उठता है और वह उसके भैया अजय का ही फोन था।
फोन पर अजय: हेलो सोनम! कहां तक पहुंची? जल्दी आ, कब से तेरी राह तक रहे हैं।।
सोनम: हां भैया! बस पहुंचती हूं
उसके बाद सोनम और मनोज अजय के बेटे के नामकरण में पहुंच जाते हैं। सोनम के पिता को गुज़रे एक साल ही हुआ था, तब से अब तक सोनम अपने मायके रहने के लिए कभी नहीं गई। जाती भी थी तो बस घंटे दो घंटे रहकर चली आती थी। पापा थे तो 15 20 दिन या कभी महीने भर भी रह लेती थी,
अजय भी उसे रहने को नहीं कहता, तो सोनम को यह समझते देर ना लगी के पापा की जगह भैया तो नहीं ले सकते और धीरे-धीरे उसने इसे स्वीकार भी लिया। आज घर में काफी गहमा गहमी थी, नामकरण के रस्म के बाद खाने-पीने का दौर चला और इन सब में लगभग शाम हो गई, सोनम फिर अजय से कहती है, भैया अब मैं चलती हूं, भाभी मैं चलती हूं, ज्यादा रात हो जाएगी तो फिर बस भी नहीं मिलेगी।
अजय: ठीक है! नेग से खुश तो है ना? तेरी भाभी की पसंद है? नेग में सोनम को सोने का झुमका मिला था, सोनम इतना महंगा तोहफा लेने से मना भी कर रही थी, पर उसकी भाभी माधुरी ने कहा, यह तो तुम्हारा हक है, जिससे उसे रखना पड़ा। इतना कुछ होने पर भी सोनम को यह सब बस एक औपचारिकता ही लग रही थी।
जहां पर उसे अंदर से कोई खुशी नहीं हो रही थी और फिर वह वहां से चली गई और पूरे रास्ते बस यही सोचती रही, कि आज पापा रहते तो क्या हुआ मुझे शाम को यूं जान देते? खैर लोग शायद इसीलिए कहते हैं की माता-पिता के साथ मायका भी चला जाता है, फिर मैं क्यों दुखी हो रही हूं?
कुछ महीने बीतते हैं, इधर अब सोनम, मां बनने वाली थी। उसने यह खबर जब अपनी भाभी को दी, यह सोचकर के मायका अब तो वही है, माधुरी सुनकर बस इतना ही कहती है, अपना ध्यान रखना, उसे आज भी याद है, जब वह जब माधुरी का पहला बच्चा होने वाला था,
भाभी की मां नहीं थी इसलिए उसकी मां ने अपनी बेटी की तरह माधुरी को संभाला, यहां तक उसने भी अपनी पढ़ाई के बीच भाभी की मदद की, ताकि उन्हें न लगे वह अपने मायके में नहीं ससुराल में है। पर आज उसके इतनी बड़ी खुशी में वह बिल्कुल अकेली। खैर वह फिर अपने कामों में लग जाती है। समय बितता गया, इधर सोनम को कोई भी काम करने में दिक्कत होने लगी। घर के कुछ कामों के लिए नौकर रख गए थे और मनोज के माता-पिता भी काफी सालों पहले गुज़र चुके थे,
सोनम और मनोज बिल्कुल अकेले थे। सोनम की ऐसी हालत थी कि उसे अकेले छोड़कर जाना मनोज के लिए मुनासिब नहीं हो पा रहा था, तो उसने कहा तुम कहो तो तुम्हें तुम्हारे भैया के घर छोड़ आऊं? यहां मेरे ऑफिस से लौटते देर हो जाती है, मेड भी इतने टाइम तक नहीं रहती, मुझे इतनी फिक्र होती है तुम्हारी की क्या बताऊं?
सोनम: आप भी ना? कुछ भी बोलते हैं, उनके यहां खुद दो-दो बच्चे हैं उसमें से एक छोटा है, ऐसे में मेरी जिम्मेदारी का बोझ मैं उन पर नहीं डालना चाहती, आप चिंता मत करो सब समय से हो जाएगा। फिर अगले दिन अजय का फोन आता है, फोन पर अजय कहता है,
हेलो सोनम! कैसी है बहन? कुछ परेशानियां थी इसलिए तेरी सुध न ले सका। पर माधुरी मुझे तेरी खबर दे देती थी। असल में वह भी थोड़ा व्यस्त ही थी, इस बात को सुनकर सनम थोड़ा चिढ़ जाती है और कहती है, हां भैया ठीक हूं, बताओ तुम कैसे हो?
अजय: वही तो, अब ठीक हूं, पर पथरी का ऑपरेशन हुआ था तेरी भाभी दोनों बच्चों के साथ मुझे भी संभाल रही थी, इसलिए तेरे लिए वक्त ही निकल नहीं पाया, पर अब तुझे परेशान होने की जरूरत नहीं बहन, हमें पता है मनोज अकेले सब कुछ संभाल नहीं पा रहा होगा, इसलिए तू यहां आजा, सब मिलकर एक दूसरे का सहारा बन जाएंगे।
सोनम: क्या? ऑपरेशन? कब भैया? तुमने कुछ बताया क्यों नहीं? अब इतना पराया कर दिया क्या?
अजय: अरे नहीं तू तो पहले से ही इस हालत में है, ऐसे में यह खबर देकर और परेशान नहीं कर सकता था, इसलिए नहीं बताया। पर मैं और माधुरी हमेशा तुझे यहां ले आने की बातें करते थे। पर हालात वैसे नहीं थे, पर अब सब सही है, मनोज से कह दूंगा तुझे यहां रख जाए, उसके बाद शाम को जब मनोज घर आता है तो सोनम को चहकता हुआ पाता है और उससे कहता है, तो फिर आ गया ना भैया से नेवता? अब तो कोई दिक्कत नहीं है ना?
सोनम: सच में मेरे मां पापा के संस्कारों का ही नतीजा है जो आज उनके न होने पर भी मुझे मेरे भैया इतना मान देते हैं, मेरी परवाह करते हैं, सच में ऐसे भैया पाकर मैं तो धन्य ही हो गई।
मनोज: सोनम! भैया के साथ-साथ श्रेय तुम्हारी भाभी को भी जाता है, माता-पिता के जाने के बाद भी अगर तुम्हारी जिम्मेदारी तुम्हारी भैया उठाने को कह रहे हैं, तो यह उनके अकेले के बस में नहीं, क्योंकि अंत में करना तो तुम्हारी भाभी को ही है, बेचारी अभी-अभी भैया की देखभाल करके उठी हैं, दो बच्चे और अब तुम। यह सब करने के लिए जो भाभी राजी ना होती तो क्या भैया अकेले कर पाते?
सोनम: सच में यह तो मैंने सोचा ही नहीं! भैया तो मेरे बचपन से ही साथ रहे, पर भाभी, उन्होंने तो अलग घर से आकर भी हमें जोड़कर रखा, अपनी सुविधा न देखकर मेरे बारे में सोचा, कितनी अजीब बात है ना जो भाई-बहन बचपन से एक दूसरे के हमराज़ होते हैं, वह बड़े होकर एक दूसरे को कुछ कहने से पहले कितना सकुचाते हैं। हम अपने अंदर ही दूरियों का बीज रोपने लगते हैं, अगर बचपन की तरह हम अपने अंदर कोई मलाल ना रखें, बेझिझक सब कुछ बोल जाए, तो शायद रिश्तो में इतनी दूरियां कभी आए ही ना।
उसके बाद सोनम जब अजय के घर जाती है, सबसे पहले उसके गले मिलकर रोती है और कहती है, भैया मुझे माफ कर दो!
अजय: पगली! यह क्या हो गया तुझे?
सोनम: मां पापा के जाने के बाद मुझे लगा, तुम बदल गए, तुमने ना कभी मुझे यहां रहने को बोला, ना ही मुझे पापा के जैसे कभी बुलाया? तो मैं समझ बैठी मेरा मायका अब पहले जैसा ना रहा।
अजय: वह तो मुझे इतनी औपचारिकता करने की आदत नहीं ना, पर माधुरी ने हर वक्त मुझसे कहा, कि मैंनें तुझे रोका क्यों नहीं, या बुलाया क्यों नहीं? तो पता है मैंने क्या कहा? अरे हम दोनों में इतना औपचारिकता नहीं होता, उसे रुकना होगा, तो खुद रुक जाएगी अपना हक समझ कर, पर माधुरी सही कहती थी, शादी के बाद बहाने वैसी नहीं रहती।
सोनम: क्यों भैया हम इतना क्यों बदल जाते हैं? बचपन में जो हम एक दूसरे के हर एक राज को जानते थे, वह शायद ही मां पापा जानते होंगे, पर जब हम बड़े हो जाते हैं तो फिर हमारे बीच इतनी दूरियां कैसे आ जाती है?
माधुरी: कोई नहीं बदलता, बस हालात बदल जाते हैं और जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा हो जाता है।
सोनम: भाभी! एक बात और है, भैया को मेरे भैया बना कर रखने में सबसे बड़ा योगदान आपका है, यह जो आपने स्नेह का बंधन बांध कर रखा है ना, मुझे आज अपनी मां की याद दिला रही है और अब भी मेरा मायका पहले जैसा ही है, यह सोचकर भाव विभोर भी हो रही हूं, सभी भावुक होकर एक दूसरे के गले लग जाते हैं।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#स्नेह का बंधन
VM