आज रक्षाबंधन है। 17 वर्षीय सलोनी सुबह से ही अपनी मम्मी के साथ रसोई में काम करवा रही थी और तरह-तरह के व्यंजन बनाए थे, वैसे वह भले ही देर से उठती हो पर राखी वाले दिन तो उसका उत्साह देखते ही बनता था और फिर आज तो उसके मामा मामी भी यही आ रहे थे मम्मी ने ही उन्हें यहां आने को कहा था और बुआ भी तो आ रही थी अपने दोनों बच्चों के साथ। बुआ की बेटी रिद्धि उसकी हम उम्र थी और उसके छोटे 12 वर्षीय भाई अजय का हम उम्र था बुआ का बेटा रोहन।
कभी-कभी तो सलोनी और अजय लड़ भी पडते थे मम्मी कहती सलोनी तुम तो बड़ी हो वह छोटा है इतनी बड़ी होकर छोटे भाई से लड़ती हो, तो सलोनी कहती मां आप तो हमेशा मुझे ही समझाती हो, इसे कुछ नहीं कहती।
कभी मम्मी अजय को समझाती, ” अज्जू क्या सलोनी सलोनी करता रहता है दीदी कहा कर बड़ी है तुझसे। कल को इसकी शादी होगी तो तेरे जीजा जी क्या सोचेंगे की बड़ी बहन का नाम लेता है। ”
अज्जू कहता-” मैं तो कभी इस दीदी नहीं कहूंगा मैं तो इसे सलोनी कहूंगा सलोनी। ”
दोनों जितना एक दूसरे से लड़ते थे उतना ही स्नेह भी करते थे। एक दूसरे में दोनों की जान बसती थी। एक घर पर ना हो तो दूसरा उदास हो जाता था।
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थोड़ी देर बाद मामा मामी और फिर बुआ जी भी आ गई। अजय भी नहा धोकर तैयार हो चुका था और सलोनी का उपहार में दिया हुआ गहरे हरे रंग का, इस रंग के सितारे लगा हुआ कुर्ता पहना था। अजय बाद ही प्यारा लग रहा था। हंसी खुशी से राखी का त्यौहार मनाया गया। सबने मिलकर खाना खाया और शाम को मामा जी और बुआ जी अपने घर को लौट गए।
अगले दिन सेकंड सेटरडे की छुट्टी होने के कारण सब आराम के मूड में थे। पर औरतों को घर के काम से फुर्सत कहां। सलोनी की मम्मी खाना बनाने में व्यस्त थी।सलोनी अपनी सहेली प्रीति के साथ बाजार चली गई और अजय साइकिल लेकर निकल गया मम्मी ने दोनों को कहा कि समय पर लौट आना।
दोपहर बीती जा रही थी। सलोनी लौट आई थी, अजय अभी तक नहीं आया था।
मम्मी को चिंता सता रही थी।तब सलोनी ने कहा-” आपको तो पता है ना मम्मी किसी दोस्त के घर पहुंच जाता है तो उसे कुछ याद नहीं रहता मैं अभी उसकी दोस्त के मम्मी को फोन करके पूछती हूं। ”
फोन करने पर पता लगा कि अज्जू अपने किसी भी दोस्त के यहां नहीं है। तब सलोनी के पापा के फोन पर एक फोन आया कि आपके बेटे को गहरी चोट लगी है तुरंत सिटी अस्पताल आ जाइए। तीनों बदहवास भागे भागे अस्पताल पहुंचे।
डॉक्टर साहब से मिले, डॉक्टर साहब ने बताया कि किसी भले आदमी ने आपके बेटे को तुरंत अस्पताल पहुंचा दिया था लेकिन सिर में गहरी चोट होने के कारण उसे बचाया न जा सका।
चश्मदीदों के मुताबिक किसी ट्रक ने उसकी साइकिल को टक्कर मार दी थी। उन लोगों की तो दुनिया ही उजड़ गई। मानो सब कुछ खत्म हो गया हो। पूरे घर में उदासी फैल गई। हर बात में, चाहे खाने की बात हो या कपड़ों की, खेलने कूदने की, हर त्यौहार पर हर बात में उन्हें अपना बच्चा याद आता था। बस सांसे चल रही है इसीलिए जिए जा रहे हैं। धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा नॉर्मल होने की कोशिश की जा रही थी लेकिन बहुत मुश्किल था।
माता-पिता के लिए तो हर बच्चा समान है। उन लोगों को सलोनी के भविष्य के बारे में भी सोचा था। इसीलिए वे दोनों खुद को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे थे।
उस दुर्घटना के छह-सात सालों बाद आज इस घर में राखी पर सबको बुलाया गया था। राखी पर उत्साहित रहने वाली सलोनी सुबह से ही बहुत उदास थी। सभी मेहमान आ गए थे। सलोनी अपने कमरे में चली गई और रोने लगी। उसे अज्जू की बहुत याद आ रही थी। राखी पर उसने जो हरा कुर्ता पहना था वह उसे हाथ में लेकर प्यार से सहला रही थी, मानो अज्जू उसकी गोद में हो।
तभी उसे लगा कि उसके पीछे कोई है। उसने पलट कर देखा तो अज्जू। उसने खुशी से धीरे से चीखकर कहा, अज्जू तू, ठीक है ना तू, तू आ गया। ”
अज्जू-” हां दीदी मैं आ गया। दोनों स्नेह से गले मिले। अलग होने पर अज्जू ने सलोनी से कहा “दीदी मैं तो इस दिन का ही यानी कि राखी का ही इंतजार कर रहा था। आप लोगों ने इतने सालों में इस साल राखी मनाने का सोचा। मैं आप लोगों को रोता हुआ नहीं देख सकता, मेरी एक बात मानोगी दीदी।”
सलोनी-” हां बोल क्यों नहीं मानूंगी अब तो तू मुझे दीदी कह रहा है। ”
अज्जू-” दीदी आप अब कभी मत रोना और मम्मी पापा को भी रोने मत देना। बुआ का बेटा है ना रोहन, आप उसे राखी बांधना। दीदी उसमें भी मैं ही हूं। देखो वह अंदर आ रहा है। ”
जब सलोनी ने उधर देखा तो रोहन को हरे कुर्ते में आता देखकर सलोनी को महसूस हुआ कि अज्जू आ रहा है।
तब रोहन ने कहा-” चलो बाहर सलोनी दीदी सब बुला रहे हैं।
सलोनी ने बाहर जाते-जाते पीछे मुड़कर देखा तो अज्जू मुस्कुरा कर बाय-बाय कर रहा था और सलोनी भी मुस्कुरा रही थी क्योंकि उसका भाई उसे रोते हुए नहीं देखना चाहता था।
फिर सलोनी ने रोहन को राखी बांधी। सबको इस बात से तसल्ली थी कि धीरे-धीरे सलोनी अपनी जिंदगी में नॉर्मल होकर आगे बढ़ रही है।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली