Moral Stories in Hindi : ‘नीर! यह तुम ठीक नहीं कर रहै हो बेटा,माना कि स्वाति तुम्हारी इकलौती बहिन है, मगर बेटा हमेशा अपनी चादर देखकर पॉंव पसारना चाहिए। उसकी शादी में पहले ही तुमने बहुत खर्चा कर दिया है,और अब राखी पर ये जड़ाऊ कंगन? बेटा हमने उसकी शादी अच्छे परिवार में की है, जमाई जी भी बहुत अच्छा कमाते है।
और फिर तुम्हारे पिताजी ने तुम दोनों को पढ़ा-लिखा कर काबिल बना दिया है। बेटा अब तुम अपनी बेटियों जूही और रूबी के भविष्य के बारे में सोचो और उनके लिए कुछ संचय करके रखो। इन दोनों को पढ़ाना लिखाना है, इनकी शादी करना है। मैं जानती हूँ स्वाति ने तुमसे जड़ाऊ कंगन की मांग की थी, तुमने मुझे बताया नहीं, मगर मैने सब सुन लिया था। बेटा!वह मेरी बेटी है,और मैं जानती हूँ, वह कितनी लालची है, हर बार तुम उसकी हर फरमाइश पूरी कर देते हो।
सोना भी कुछ नहीं कहती है। बेटा हम पक्के पान है पता नहीं कब झड़ जाए। मुझे और तुम्हारे पापा को हमेशा तुम्हारी चिंता रहती है। बेटा स्वाति तुम्हारी बहिन है,उसके साथ प्यार और विश्वास का व्यवहार रखो, मगर उसकी गलत मांग को पूरा मत करो।’ ‘पर मॉं वो तो मेरी प्यारी बहिन है,उसे मैं किसी बात के लिए मना कैसे कर सकता हूँ? और सोना भी मुझे कभी मना नहीं करती है। माँ!आपका और पापा का आशीर्वाद है ना मेरे पास ।
जूही और रूबी को भी उनकी किस्मत का सब मिलेगा माँ, आप चिन्ता न करे।’ प्रभा जी हर बार समझाती मगर नीर पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था, वो अपनी बहिन को बहुत प्यार करता था, और उसका मन दु:खाना नहीं चाहता था। इसके विपरीत स्वाति का लालच बढ़ता ही जा रहा था, वह मायके में जो भी अच्छी चीज देखती उसकी फरमाइश अपने भाई से करती। प्रभा जी को बुरा लगता, उन्होंने अपने पति राजेश जी से कहकर एक प्लाट खरीद वाया और उसे जूही और रूबी के नाम कर दिया।
उन्होंने सोचा कि कभी कुछ परेशानी हुई तो यह काम में आएगा। नीर अपने नाम के अनुरूप ही सरल और निर्मल हृदय का था। उसने स्वाति को बताया कि पापा ने जूही और रूबी के नाम एक प्लाट खरीदा हैं। स्वाति के मन में उन मासूम बच्चियों के प्रति भी कोमल भावनाऐं नहीं थी। उसके मन में उनके प्रति भी खार की भावना थी। उसने उस प्लाट के लिए भी घर में कलह किया, और कहा कि पापा ने मुझे तो कोई प्लाट नहीं दिया, इस बात के लिए वह राखी पर भी मायके नहीं आई।
नीर का मन अपनी बहिन के लिए व्याकुल हो रहा था,उसने माँ को बिना बताए वो प्लाट भी स्वाति के नाम कर दिया। स्वाति फिर से मायके आने लगी और नीर उससे राखी बंधवा कर बहुत प्रसन्न रहने लगा। नीर के पिताजी शांत हो गए थे। माँ को जब पता चला कि नीर ने वह प्लाट स्वाति के नाम कर दिया है, तो वे बहुत दु:खी हुई और नीर पर बहुत नाराज हुई। जुही और रूबी बहुत समझदार और पढ़ने में होशियार थी। उनके रिश्ते में परेशानी आ रही थी,
क्योंकि नीर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। स्वाति की दैवरानी माला की भतीजी का विवाह था, वह अपनी दैवरानी के साथ उस विवाह में गई। वहाँ जाते ही माला ने अपने भाई से कहा -‘राजू तू किसी बात के लिए परेशान मत होना। अगर पैसो की जरूरत हो तो नि:संकोच कहना, तेरे जीजाजी भी यही कह रहे हैं। आशु हमारी भी बेटी है, उसके लिए हमारे भी कुछ फर्ज हैं। राजू की ऑंखें नम हो गई थी, वह बोला ठीक है दीदी। मीना ने आशु को अपनी सारी रकमें पहनाई और उसे बहुत प्यार से दुल्हन बनाया।
हर रस्म में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने भैया भाभी का सहारा बनी। स्वाति के मन में कुछ उथल पुथल हुई। वह बाहर महिलाओं के बीच जाकर बैठ गई, जहाँ विवाह के गीत गाए जा रहै थे। तभी उसके कानों में किसी महिला की आवाज आई ‘बहिन हो तो माला जैसी।’ एक महिला कह रही थी हमारे समाज में रूही और जूही भी बहुत प्यारी बच्चियाँ है, सुना है कि उनके पिता नीर किसी महाजन से उधार लेकर बेटियों के विवाह की तैयारी कर रहे हैं।
वह महिला स्वाति को नहीं पहचानती थी। स्वाति का मन बहुत विचलित हो रहा था, उसे लग रहा था एक यह माला है जो अपनी भतीजी पर अपना प्यार न्यौछावर कर रही है, और एक वह है जिसने हमेशा अपनी भतीजियों का हक छीना। उसका भाई, उसे कितना प्यार करता है और उसने अपने भाई के लिए क्या किया?
आज अपनी बेटियों की शादी के लिए उसे उधार लेना पढ़ रहा है। उसे अपने आप से नफरत हो रही थी, अपनी करनी पर पश्चाताप हो रहा था। विवाह समारोह के बाद वह घर आई तो उसने अपने पति से बात की, और कहा -‘मैंने सुना है नीर भैया जूही और रूही की शादी के लिए महाजन से उधार ले रहे हैं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा।’
रवि ने कहा -‘स्वाति मैंने हमेशा तुमसे मना किया कि तुम नीर से कुछ मत लिया करो उसकी दो बेटियॉ है, मगर तुमने कभी मेरी बात नहीं मानी, ईश्वर का दिया हमारे पास सबकुछ है, एक बेटा है। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, हम कल ही तुम्हारे घर चलेंगे।
दूसरे दिन स्वाति और जमाई जी को देखकर प्रभा जी उलझन में पड़ गई। रवि ने पूछा कि नीर कहां है, तो प्रभा जी ने सच-सच बता दिया कि वो शादी के लिए महाजन से कर्ज लेने गया है। उनकी आवाज में नमी थी।
रवि ने कहा आप चिंता न करे हम नीर से मिलकर आते हैं। रवि और स्वाति ने वहाँ जाकर नीर को कर्जा लेने से मना किया और कहा पहले घर चलो। जब वे घर आए तो स्वाति ने कहा -‘भैया ! मैं आपसे हमेशा कुछ मांगती आई हूँ। आज भी कुछ मांग रही हूँ, भैया वचन दो मना तो नहीं करोगे।’ प्रभा जी को चिंता हुई, कि आज स्वाति पता नहीं क्या मांगेगी। नीर ने कहा- ‘बोल बहना क्या चाहिए, मैं तुझे किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकता।
‘ स्वाति ने कहा भैया -‘पहले वचन दो’ ‘अच्छा दिया वचन,अब बता तुझे क्या चाहिए? ‘ ‘भैया मुझे रूही और जूही की शादी का खर्चा करने की इजाजत चाहिए। ये दोनों मेरी भी बेटियां है। आपने वचन दिया है, आप मना नहीं करेंगे।हम सब मिलकर शादी धूमधाम से करेंगे।’ नीर की ऑंखों से अश्रु की बरसात हो रही थी।
आज पहली बार प्रभा जी को स्वाति की मांग पर गुस्सा नहीं आ रहा था। अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था, उसका यह रूप देखकर वे बहुत प्रसन्न थी। नीर कुछ नहीं कह पाया स्वाति ने उसे वचन की डोर से बांध दिया था। रवि ने नीर के कंधे पर हाथ रखा और कहा -‘हम अगले रविवार को आते है,
और शादी की योजना बनाते है, भैया आप हमारे अपने है, जरा भी परेशान न हो।’ स्वाति उसके ससुराल चली गई और सब उसको जाते हुए देखते रहै। स्वाति के मन का बोझ कुछ हल्का हो गया था। उसके मन में अपने व्यवहार को लेकर जो पश्चाताप हो रहा था, उसे कम करने का मार्ग उसे मिल गया था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित