भाग्यलक्ष्मी- ऋतु गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: पुष्पा जी अपनी भागौ (भाग्यलक्ष्मी) का सिर गोद में लिए शून्य में देख रही है…उन्हें आज भी याद है जब वो इस घर में दुल्हन बन कर आई थी,

जब उनकी सास उनका स्वागत कर उनकी आरती उतार रही थी,  तब नन्ही भागौ (भाग्यलक्ष्मी उनकी छोटी नन्द जो दिमाग से जरा सी कमजोर थी) आकर अपनी मां से जिद करने लगी कि अपनी भाभी की आरती तो मैं ही उतारुगीं।

तब उनकी सास ने उससे कहा ये तेरी भाभी ही नहीं ,आज से तेरी मां भी है, देख अपनी भाभी को जरा भी तंग न करना ।कल मैं रहूं ना रहूं क्या भरोसा है,।इतना सुनकर भागौ ने कहा ठीक है तब तो आज से ये मेरी भाभी-मां हुई , इतना कहकर नन्ही भागौ खिलखिला कर हंँसने लगी।

पुष्पा जी की सास ने पुष्पा से भी कहा, अब आगे से मेरी इस पगली  भागौ (भाग्यलक्ष्मी) का ध्यान तुझे ही रखना है।
इस तरह पुष्पा को नये घर में आते ही नन्द के रूप में एक सहेली, एक छोटा बच्चा मिल गया, जो हर समय उसका ध्यान रखता, मन लगाए रखता।

कुछ समय बाद पुष्पा के सास ससुर भी परलोक सिधार गए, पुष्पा भी अब दो बच्चों की मांँ बन चुकी थी। लेकिन पुष्पा के लिए उसका पहला बड़ा बच्चा भागौ ही थी, वो अपने बच्चों से पहले भागौ को ही खिलाती , लोरी गा कर सुलाती।

भागौ भी अपनी भाभी-मां का बहुत ध्यान रखती, हर सुख दुख में दोनों नन्द भाभी साथ रहती। भाभी सो जाती तो भागौ बच्चों को डांटती कि जरा भी शोर ना करें नहीं तो भागौ बुआ पिटाई कर देगी  पिटाई,समझे ना,झूठ मूठ का डराती, कभी पुष्पा के सिर में दर्द होता था उनका सिर दबाती, सिर की मालिश करती।पुष्पा के लाख मना करने पर भी कभी उसे अकेला  ना छोड़ती।भागौ दोनों बच्चों का भी अपनी जान से ज्यादा प्यार करती।

सब कुछ तो समझ थी भागौ को, पर बस कुछ दिमाग में ऐसी कमी थी,या कह लो कि थोड़ा सा अलग थी समाज से ,कि उसका ब्याह  ना हो सका। धीरे-धीरे समय बीतता गया, पुष्पा के दोनों बच्चों की भी शादी हो गई।

अब पुष्पा का शरीर भी थकने लगा था, उसे अब बड़ी फिक्र होती कि ,समय रहते  भगवान भागौ को उसके सामने ही अपने पास बुला ले, नहीं तो यदि उसे कुछ हो गया तो उसकी पगली नन्द का  ध्यान कौन रखेगा, कौन उसके काम करेगा।

पर विधाता ने तो कुछ अनोखा ही लिखा था ,रक्षाबंधन का दिन  था,पुष्पा की बेटी भी रक्षाबंधन मनाने घर आई हुई थी,भागौ ने भी अपने भैया भाभी,भतीजे को राखी बांधी। रक्षाबंधन का त्योहार सभी ने बहुत प्रेम से मनाया।

तभी थोड़ी देर बाद अचानक पुष्पा का पोता पर्व सड़क पर गुब्बारे  वाले के पीछे दौड़ने लगा, सामने से तेज रफ्तार एक गाड़ी आ रही थी,जब भागौ ने देखा तो बहुत तेजी  से बच्चे को बचाने  के लिए भागी, कोई कुछ समझ पाता इससे पहले बच्चे को एक तरफ कर खुद भागौ गाड़ी के नीचे आ चुकी थी।

पुष्पा जी बदहवास सी अपनी लाड़ली नन्द भागौ के पास दौड़ी आई,भागौ का सिर अपनी गोद में रख लिया, सभी भागौ को अस्पताल ले जाने लगे , लेकिन भागौ ने अपनी भाभी से कहा, भाभी-मांँ मुझे अब कहीं नहीं जाना,आज मुझे फिर से वह बचपन वाली लोरी सुना दो।आज मैं निश्चिंत होकर सोना चाहती हूंँ।

पुष्पा जी वो लोरी गाना चाहती थी, पर उनका गला रुंध गया,
वो रोते रोते ही गाने लगीं,

छनक  छनक करती आजा री निंदिया रानी,
मेरी लाडली भागौ को सुला जा री निंदिया रानी….

इससे आगे गा ना सकी ,कहने लगी मैं तो बेकार में ही तेरी फिक्र करती रही, समझ ना पाई कि अरी भागौ ,तू तो सच में हमारे लिए भाग्यलक्ष्मी  रही,हर सुख-दुख  में बिन बोले साथ निभाती रही,अपनी जान देकर अपने भाई के घर के चिराग को आज रक्षाबंधन पर रोशन कर गई।धन्य है री तू भागौ, तू धन्य है।

ये मेरी कहानी सच्ची घटना पर आधारित है,एक सीख है रिश्तो को निभाने की ,आज के इस बनावटी समाज में।

कृप्या अपने विचारों से अवगत अवश्य करायें, कहानी कैसी लगी।आप सभी का प्रेम से मेरी कलम को ऊर्जा मिलती है।

सादर ऋतु गुप्ता

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