भाग्यहीन – सुनीता परसाई   : Moral Stories in Hindi

शुभ्रा जैसा नाम था, वैसी ही सुन्दर गोरी चिट्टी तीखे नैन नक्श वाली थी।

दिनभर चाची के तानें सुनती रहती ।आँसू छिपाये काम करती रहती।

जन्म के साथ ही माँ भगवान को प्यारी हो गई।

शुभ्रा की माँ व चाची बड़े प्रेम से रहती थीं।मरते समय शुभ्रा की माँ चाची की गोद में शुभ्रा को दे गयी थी।

शुभ्रा के पिता शुभ्रा की तरफ से बे फ़िक्र हो गये थे ।रोज कमाते व शराब का नशा करके घर आते। दिनभर में तीन साल की बेटी पिता के पास दौड़कर जाती तो, उसे कर्म जली, और न जाने क्या-क्या कहकर अपने से दूर करते हुए कहते “दूर जा, मेरे पास मत आ। जन्मते माँ को खा गयी मनहूस।”

बेचारी शुभ्रा सकपका के बिस्तर पर जाकर रोने लगती कुछ दिनों बाद उसने पिता के पास जाना छोड़ दिया, क्योंकि शुभ्रा के पिता जीवनलाल ने उसे कभी प्यार नहीं दिया। घरवालों  के कहने पर जीवनलाल ने दूसरी शादी कर ली।

शुभ्रा चाचा-चाची के पास ही रहती थी।  समय-चक्र चलता रहा,धीरे-धीरे घर का सारा काम चाची ने शुभ्रा के हवाले कर दिया था।

चाचा की एक बेटी आभा शुभ्रा  से एक साल छोटी थी, व दो बेटे श्याम व राम आभा से छोटे थे।।आभा आराम से रहती कुछ काम न करती थी। सारा काम शुभ्रा ही करती। जरा देर हो जाती काम में तो चाची खूब ताने देती। “माँ तो मर गई, मेरे माथे बला छोड़ गई “।

आभा भी सुंदर थी। वह दिन भर मटरगश्ती करती रहती, गांव में घूमती रहती थी।

चाचा से चाची कहती थी, “अब हमने शुभ्रा को  बड़ा कर दिया है।अब इसे उसके बाप के पास भेज दो।उसकी शादी के लिए हमारे पास पैसा कहाँ है। तीन बच्चों का खर्चा है”। 

शुभ्रा का पिता जीवनलाल शादी के बाद दो बच्चों का बाप बन गया था ।परंतु, शराब की लत उसकी नहीं छुट्टी थी। घर में खाने के लाले थे । वह कभी भी अपनी बेटी से मिलने नहीं आया क्योंकि, वह उसे बद्किस्मत मानता था। 

शुभ्रा मांँ को हमेंशा याद करती मन-ही-मन सोचती थी, ”मांँ तुम तो चली गई, मुझे साथ क्यों नहीं ले गई। मैं इस दुनिया में बहुत अकेली हूंँ।”

आज सवेरे से चाची बहुत खुश थी। आभा को देखने लड़के वाले आने वाले थे। शुभ्रा ने घर की साफ-सफाई की। भोजन-पकवान वगैरह भी सब शुभ्रा ने ही बनाये।

शुभ्रा को चाची ने कह दिया था “तुम मेहमानों  के सामने मत आना।”

आभा बार-बार माँ से कह रही थी कि ”मैं तो छोटी हूंँ, शुभ्रा दीदी की शादी कर दो।”  परन्तु चाची को मालूम था कि, यह परिवार बहुत धनाढ्य है और, लड़का भी पढ़ा लिखा है। इसलिए वह चाहती थी कि, आभा बेटी उसी घर में जाए ।

शाम को मेहमान आए। चाचा-चाची ने उनका स्वागत किया ।भोजन के समय शु्भ्रा गरम-गरम कचौड़ियांँ व पुड़ी बना रही थी।चाची तथा आभा सब मेहमानों को भोजन परोस रही थी।भोजन के समय लड़के की नजर शुभ्रा  पर पड़ गयी थी।

कचौड़ी खाकर लड़के की मांँ ने पूछा “कचौड़ी बड़ी स्वादिष्ट है ।इतनीअच्छी स्वादिष्ट कचौरियांँ कौन बना रहा है?

आभा तुरंत  बोली “हमारी शुभ्रा दीदी बना रही है।”

उन्होंने पूछा “कौन है शुभ्रा दीदी।”

आभा बोली “हमारे ताऊ जी की बेटी।”

भोजन करने के बाद हाथ धो कर लड़के की माँ रसोई में गयी वे शुभ्रा  को देखते रह गयी।शुभ्रा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,”बेटा बहुत स्वादिष्ट बनी हैं कचोड़ियाँ।”

“कहांँ तक पढ़ी हो”।

शुभ्रा बोली “बारहवीं तक।”

 

 खुशी- खुशी दोनों  परिवार एक दूसरे से घुल-मिल कर बातें करते रहे।

चाची से जाते समय लड़के की माँ बोली “ हम बेटे से बात करके जल्दी  ही जवाब देते हैं”।

दूसरे ही दिन सुबह फोन की घंटी बजी। लड़के के पिता का फोन था।चाचा ने फोन उठाया। वे बोले “हम सब को आपकी दोनों बेटियाँ, हमारे दोनों बेटों के लिए पसंद है।

आप आ जाइये शादी का मुहूर्त निकलवा लेते हैं।”

चाची बहुत खुश हो गयी। शुभ्रा को गले लगा कर बोली “हमारी शुभ्रा तो बड़ी भाग्यवान हैं।”

चाचा बोले “सब भाग्यहीन कहते हैं शुभ्रा  को परन्तु, वह तो हमारे  लिए भी भाग्यशाली है।उसके लिए दूल्हा घर बैठे आ गया व उसने अपनी छोटी बहन का भी भाग्य बदल दिया।

 शुभ्रा के नैनों से अश्रु बह रहे थे।

सुनीता परसाई 

जबलपुर मप्र

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