अरे गीत, इधर भी दो नाश्ता। ध्यान कहां रहता है तुम्हारा? यह कहते हुए कावेरी जी अपनी बेटी की सास शोभा जी से कहती है, वह क्या है ना बहन जी? इस पर से जो ज़रा सा भी ध्यान हटाओ तो इसकी कामचोरी शुरू
शोभा जी: बहन जी! बुरा ना माने तो एक बात पूछूं? वैसे यह आपका घरेलू मामला है कहना तो नहीं चाहिए, पर फिर भी बिना कहे रहे भी नहीं पा रही हूं।
कावेरी जी: हां हां कहिए ना बहन जी! यह भी आपका ही परिवार है, जो भी मन में है बेझिझक कहिए।
शोभा जी: आपकी दो बहुएं हैं और अब तीसरी भी आने वाली है। मैं देख रही हूं आप हर काम में अपनी छोटी बहू को ही आवाज़ लगा रही है, जबकि आपकी बड़ी बहू बस घर के इधर से उधर घूम रही है। वह कोई काम भी नहीं कर रही है और इधर छोटी बहू को सांस लेने की फुर्सत नहीं।
कावेरी जी: ओह नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, वह क्या है ना? छोटी बहू हर काम बड़ी जल्दी निपटा लेती है, वही काम बड़ी बहू काफी समय लगाती है। दरअसल बड़ी बहू को काम करने की आदत नहीं है ना, वह काफी बड़े घर की बेटी है। वह तो यहां अपना काम कर भी लेती है, वरना उसके मायके में तो उसके काम के लिए एक अलग से नौकरानी थी और वही छोटी बहू के माता-पिता तो बचपन में ही चल बसे थे। चाचा चाची ने पाल पोस कर बड़ा किया और बदले में घर का सारा काम करवाते थे। इसलिए उसे कामों की आदत है, बस इसलिए आप यह सब छोड़िए ना, चलिए हल्दी का समय हो रहा है, समीर को हल्दी लगाना है।
फिर सभी हल्दी की रस्म में व्यस्त हो जाते हैं। शाम में बारात बस निकलने ही वाली थी, तभी कावेरी जी अपनी बड़ी बहू आसना से कहती है, बहू समीर को पगड़ी बांध दो और देख लो वह ठीक से तैयार हुआ या नहीं?
शोभा जी: गीत तुम भी जाओ, आखिर देवर को पगड़ी बांधने का हक तो भाभियों का ही होता है और नेग भी पाने का, मोटी रकम लेना, यही मौका है छोड़ना मत, यह कहकर शोभा जी हंस पड़ती है
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कावेरी जी: अरे नहीं नहीं, गीत वहां क्या करेगी? वहां आसना कर लेगी, उसकी जरूरत तो वहां बाहर है, मेहमानों को कौन देखेगा? चलो गीत तुम मेरे साथ।
शोभा जी: यह क्या बोल रही है आप बहन जी? बाहर मेहमानों के लिए भाई साहब, कैलाश, मनोज, संदीप है ना? वहां घर की बहू का क्या काम? बेचारी यह तो अभी तक तैयार भी नहीं हुई, बारात निकलने वाली है, यह कब तैयार होगी? गीत तुम जल्दी से समीर को पगड़ी बांधकर तैयार हो जाओ! हम सब आखरी वाली कार में चल चलेंगे।
कावेरी जी: अरे बहन जी! आप खामखा परेशान हो रही है। गीत आ जाएगी पीछे से मनोज के साथ बाइक पर, कौन सा हमें बहुत दूर जाना है?
गीत: हां आंटी! मैं आ जाऊंगी! आप लोग तैयार हो चुके हैं तो अब आप सब साथ में निकल जाओ! घर को अच्छे से बंद करके भी तो जाना है, किसी को तो होना चाहिए ना और घर पर बुआ नानी, पर दादाजी भी है उनके देखभाल के लिए भी तो सब कुछ तैयार भी तो करना है
शोभा जी इस परिवार से जुड़ी थी 8 महीने पहले ही, मतलब कावेरी जी की बेटी राधा उनकी बहू 8 महीने पहले ही बनी थी और उसके बाद यह पहली शादी थी जब वह इस परिवार को इतने नजदीक से देख रही थी। पर जब से वह यहां आई थी उन्हें एक बात बड़ी खटक रही थी, के कावेरी जी का नजरिया अपने दोनों बहू के प्रति एकदम अलग था।
हल्दी के समय ही उन्हें कावेरी जी की बातों से समझ आ गया था कि दोनों बहू की अमीरी गरीबी के चलते यह सारा भेदभाव था। पर अब उनके सामने इस भेदभाव का असली कारण आने वाला था। बारात अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई और सारी रस्में समाप्त हो गई, पर जैसा शोभा जी को पता ही था की गीत नहीं आएगी और हुआ भी ऐसा ही।
बारात जब घर वापस लौटी तो आसना जल्दी जाकर आरती की थाल लेकर कावेरी जी को थामती है और नई बहू का गृह प्रवेश हो जाता है। घर पर आते ही नई बहू ने जितने भी बुजुर्ग थे सभी का आशीर्वाद लिया, पर गीत कहीं भी नहीं दिखी, तभी शोभा जी की नजरे गीत को ढूंढने लगी, पूरे घर में गीत को वह ढूंढने लगी, तभी एक कमरे से कावेरी जी की आवाज आने लगी तो उसी तरफ शोभा जी के कदम भी बढ़ने लगे, पर वह उस कमरे के दरवाजे पर आकर रुक गए जहां कावेरी जी की आवाज आ रही थी, उन्होंने सुना कावेरी की गीत से कह रही है,
गीत अब तक जैसे सारे रस्मों में तुम गायब थी वैसे ही काम के बहाने गायब रहना। बस आज भर के लिए, शोभा बहन को शायद कुछ समझ आ रहा है, इसलिए वह बार-बार तुम्हारी तरफदारी कर रही है। अब बेटी की सास है उनसे कुछ कह भी नहीं पा रही, पर तुम ऐसा मौका ही क्यों दे रही हो? पता नहीं यह मनोज ने कैसी झंझट लाकर पटक दी है इस घर में? अगर वह एक बार शादी से पहले बता देता ना कि वह एक ऐसी भाग्यहीन लड़की को ब्याहने की सोच रहा है जिसने पैदा होते ही अपने मां को खा लिया और 2 सालों में पिता को,
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तो उसे तभी बता देती ऐसी लड़कियां किसी घर के लिए भी शुभ नहीं होती। वह तो इस घर पर, मुझ पर ठाकुर जी का हाथ है तो हर बात तेरी वजह से घटने वाली अनहोनी टल जाती हैं। मुझे आज भी याद है, राधा की शादी में जैसे ही तूने उसे हल्दी लगाई जमाई जी के एक्सीडेंट की खबर आ गई है। भगवान यह सब सोच कर ही रुह कांप जाती है। इसलिए तो तुझे इस शादी की रस्मों से दूर रहने को कहा, एक बार यह सारा काम निपट जाए पंडित जी के पास जाना पड़ेगा, वही बता पाएंगे इस भाग्यहीन कुलक्षणी से इस परिवार की सुरक्षा कैसे किया जाए?
उसी शाम नई बहू की मुंह दिखाई की रस्म होनी थी। मोहल्ले की सभी औरतें सभी रिश्तेदार इकट्ठे थे तभी नई बहु आसना और राधा के साथ आ रही होती है। अचानक शोभा जी राधा को कहती है, राधा नई बहू से दूर हटो! शुभ काम से तुम दूर रहो! कितनी बार बोलूं? यह बात सुनकर वहां बैठे सभी हैरान होकर एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं, फिर कावेरी जी कहती है, बहन जी यह सब आप क्या कह रही हैं?
शोभा जी: अरे बहन जी आपको नहीं पता, जब से राधा ब्याह कर हमारे घर आई है बस हादसे ही हो रहे हैं, पहले संदीप के दादाजी चल बसे, फिर मेरा ऑपरेशन फिर मेरी नानी अस्पताल में चली गई और फिर बहुत कुछ तो हमने जब पंडित जी से इस बारे में बात की उन्होंने कहा आपकी बहू बड़ी ही भाग्यहीन है, इसके कारण ही आपके घर के अच्छे भाग्य चले गए हैं, तो इस पूरे 2 साल किसी भी शुभ कार्य में सम्मिलित मत होने देना, अभी-अभी फोन आया था उनका, कल तो बिना जाने ही अपने भाई की शादी में चली गई पर अब सब कुछ जान गई हूं तो फिर कैसे कोई अनहोनी होने दे सकती हूं? मैंनें इसे थोड़ी देर पहले ही बताया था, पर शायद यह भूल गई, क्या राधा तुम भी? अपने ही भाई की शादी में कोई अनहोनी घटाना चाहती हो क्या?
कावेरी जी: बहन जी मेरी बेटी के बारे में आप ऐसे कैसे बोल सकती हैं? वह भी उसी के घर में? हमारे घर में तो आज तक इसके चलते कोई अनहोनी नहीं घटी? फिर आज मैं यह कैसे मान लूं और बुजुर्ग का चल बसना, किसी की तबीयत बिगड़ता यह सब भगवान के चाहने से ही होता है ना के किसी के कदम पड़ने से, किस ज़माने में जी रही है आप? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि आप लोगों की सोच ऐसी है? भाग्य भगवान लिखता है इंसान नहीं तो उस पर इंसान का भी कोई जोर नहीं होता तो फिर इंसान को दोष देना कहां तक सही है?
शोभा जी: अच्छा? फिर गीत का भाग्य भगवान ने नहीं बनाया? फिर उसके माता-पिता को तो उसने खुद ही मारा होगा? है ना गीत? अरे एक बच्ची जब बिन मां बाप के बड़ी होती है तो ऐसे ही आधी मरी हुई होती है, क्योंकि माता-पिता का प्यार दुनिया में शायद ही उसे फिर कभी मिले और बाकी आधा वह कुलक्षणी भाग्यहीन,
अपशगुनी शब्द सुन सुनकर मर जाती है। ऐसे में उस बच्ची को बस प्यार के दो बोल ही चाहिए होता है। अपनी बेटी के लिए यह सारे शब्द सुनकर आपको कैसा लगा? तो जरा सोचिए बहन जी उसकी स्वर्गवासी मां को यह सब सुनकर कैसा लग रहा होगा और यह बेचारी, इसने तो खुद ही मान लिया है कि यह भाग्यहीन है।
रही बात राधा की, वह मेरी बेटी है बहू नहीं यह मैंने उसकी विदाई के वक्त ले जाते समय भी कहा था और आज भी कह रही हूं, तभी तो आज मेरे एक बार कहने पर ही यह इस नाटक में मेरा साथ देने को तैयार हो गई, एक और बात बहन जी अभी जो जो भी मैंने कहा कि राधा के आने के बाद यह यह हुआ, वह सच में हुआ था।
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पर इसके लिए मेरे मन में यह कभी नहीं आया कि यह राधा की वजह से हुआ है, क्योंकि जहां एक पत्ता भी भगवान की मर्जी के बिना नहीं हिलता, वहां इतने बड़े-बड़े हादसे भगवान के मर्जी के बिना होना नामुमकिन है। मैं चाहती तो यह आपके घर की बात है सोच कर चुप होकर चली जाती। पर मैं फिर कभी चैन से नहीं बैठ पाती, क्योंकि जिसे रोका जा सकता था उसे नजरअंदाज कर दिया मैंने बस यही सोच कर घुटती रहती।
कावेरी जी कुछ नहीं कह पाती, बस अपनी नज़रें झुकाए अपनी गलतियों के आंसू बहा रही थी। शायद शोभा जी के इस नाटक से कावेरी जी के आंखे खुली होंगी?
दोस्तों, आप लोगों को यह कहानी पढ़कर ऐसा लग रहा होगा की शोभा जी को क्या जरूरत थी अपनी बहू के परिवार में बोलने की? पर समाज जहां आजकल सिर्फ बूत बनकर बैठे होते हैं, चाहे सामने कितना भी बड़ा अन्याय घट रहा हो, वहां शोभा जी जैसे लोग भी होते हैं जिसे अन्याय सहन नहीं होता और शायद ऐसे एक इंसान की ही आज समाज को जरूरत है, अगर सिर्फ एक इंसान भी आवाज उठाए ना तो कुछ हद तक बदलाव होना तय है।।
धन्यवाद
रोनिता
#भाग्यहीन