भाग्यहीन – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ रति याद है ना बेटा कल मंगलवार है मंदिर जाना है… जल्दी सो जा तभी तो जल्दी उठ कर सारा काम कर पाएंगे  तभी मंदिर जा सकते है नहीं तो देर हो जाएगी स्कूल जाने में … तू सुन रही है ना… आजा सोते हैं किताब बंद कर के लाइट ऑफ कर दें ।” रत्ना ने अपनी सात साल की बेटी से कहा

“ बस माँ ये चैप्टर ख़त्म करके सोती हूँ तुम सो जाओ।” कहकर रति किताब में सिर घुसा दी

रत्ना की आँखों से  नींद कोसों दूर था फिर भी थके शरीर को नींद की और आराम की जरूरत होती ही है ।

दस मिनट बाद रति भी उसके पास आ कर लेट गई ।

“ माँ कल मैं वो नई वाली फ्रॉक ही पहनूँगी… मेरा जन्मदिन है तो मुझे सबसे सुंदर दिखना है ।” रति माँ के सीने से लगते हुए बोली 

“ हाँ पहन लेना इसलिए ही तो लेकर आई थी ।” कहकर रत्ना रति को सीने से लगाकर सो गई 

दूसरे दिन तड़के दोनों माँ बेटी उठ कर घर का काम निपटा टिफ़िन पैक कर एक किलोमीटर दूर बजरंग बली के मंदिर पहुँच कर पूजा करने के बाद दो मिनट को बैठ गई ।

तभी रत्ना की नज़र किसी इंसान पर पड़ी जिसे देखते ही रति का हाथ पकड़कर वो जल्दी से मंदिर प्रांगण से निकल कर बाहर आ गईं

रत्ना के इस अप्रत्याशित व्यवहार पर रति हकी बकी उसे देखकर सवाल करने लगी ।

“ कुछ नहीं स्कूल के लिए देरी हो रही है चल।” कहते हुए रत्ना बेटी का हाथ पकड़कर चल दी

किसी तरह स्कूल में अपना काम निपटा कर रत्ना खुद को संयत करने की कोशिश कर रही थीं पर वो शख़्स बार बार नज़रों के सामने आ जा रहा था ।

रत्ना फिर किसी आशंका से परेशान हो कर अपने अतीत के काले पन्ने पलटने लगी….

रत्ना का जब जन्म हुआ तभी उसकी माँ अत्यधिक रक्तस्राव की वजह से मर गई….. उसके पिता ने कुछ महीने बाद ही दूसरी शादी कर रत्ना के लिए सौतेली माँ लाकर उसे रत्ना की ज़िम्मेदारी सौंप दी…. नई माँ कुछ दिनों तक रत्ना का ख़याल रखती रही पर जब ख़ुद माँ बनने को हुई तो रत्ना पर ध्यान देना बंद कर दिया…

रत्ना के बाबा दादी चाहते थे उसके नाना नानी उसे अपने घर ले जाए पर वो खुद अपना पेट  मुश्किल से भर पाते थे तो उन्होंने ये ज़िम्मेदारी आपकी है कह कर नाता तोड़ ही लिया…. रत्ना…  सब कुछ होते हुए भी अनाथों सा जीवन जी रही थी…स्कूल भी जाने नहीं दिया गया और पन्द्रह साल की होते ही उसका ब्याह उससे दस वर्ष बड़े बीमार मोहन से कर दिया गया…

वो लकवाग्रस्त था … रत्ना ने उसे ही अपना भाग्य मान उसकी सेवा करने लगी पर एक दिन उसे जाने कैसे बहुत तेज बुख़ार हुआ और वो फिर दवा के बाद भी बच ना सका…

सास ससुर के लिए अब रत्ना एक बोझ जैसी रह गई थी उन्होंने लांछन लगा कर उसे घर से निकाल दिया…रोती बिलखती रत्ना कितनी मिन्नतें की मैं कोने में पड़ी रहूँगी आप सब के सारे काम करूँगी… घर से मत निकालो… अब कहाँ जाऊँगी..।

पर किसी ने उसकी एक ना सुनी और रत्ना घर से निकल कर अनजान रास्ते पर चल दी ..आँखों में आँसू और अपने भाग्यहीन होने का दंश उसे मर जाने को प्रेरित कर रहा था…उसे लग रहा था अब ज़िन्दगी में रखा ही क्या है… और उसके कदम उस क़स्बे की नदी की ओर बढ़ चले…

वो नदी के तट पर पहुँच कर हाथ जोड़कर उपर वाले से कहने लगी,” हे भगवान मेरे जैसी ज़िंदगी किसी और को ना देना… ज़िन्दगी देना हो तो एक भरा पूरा परिवार ज़रूर देना।” कहकर वो जैसे ही छलांग लगाने को हुई… उसे एक बच्चे के  जोर जोर से रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी…

वो पलट कर इधर उधर देखने लगी …आवाज़ की दिशा में बढ़ती जा रही थी तभी उसे झाड़ियों में तेज आवाज़ सुनाई दी और  उधर एक दो कुत्ते भी दिखाई दिए…वो दौड़ कर उस ओर भागी….झाँक कर देखी तो सकते में आ गई… एक बच्चा चिथड़े में लिपटा पड़ा था और कुत्ते उसे खा जाने को बेताब दिख रहे थे उसने एक लकड़ी का टुकड़ा उठा कर कुत्ते को भगाया

और जल्दी से बच्चे को गोद में लेकर उलट पलट कर देखने लगी…वो एक प्यारी सी बच्ची थी…वो चारों तरफ नजर घुमा कर देखन लगी शायद इसके माँ बाप दिख जाए पर जो बच्चे को ऐसे झाड़ियों में छोड़ कर गया हो वो क्यों ही इसे लेने आएँगे …. रत्ना ने उस बच्ची को सीने से लगा लिया और दुखी होकर बोली,” तेरी माँ भी तुझे छोड़ कर चली गई…अब से मैं तेरी माँ और तू मेरी बेटी ।” 

अब रत्ना को ये समझ नहीं आ रहा था जाए तो कहाँ जाएँ… तभी पास में कहीं मंदिर की घंटी की आवाज़ सुनाई दी वो बच्ची को लेकर मंदिर की ओर बढ़ गई… वहाँ एक पुजारी जी मंदिर की साफ सफ़ाई कर रहे थे…

“ बाबा क्या यहाँ इस बच्ची के लिए दूध मिल सकता है?” उसने पूछा 

“ ये तेरी बच्ची है ना तो इसे बाहर का दूध क्यों देना.. अपना दूध पिला ।” पुजारी ने आत्मीयता से कहा 

“ बाबा वो…।” रत्ना कहते कहते रूक गई  और वहाँ से उठ कर जाने लगी

तभी पुजारी ने उसे आवाज़ देते हुए कहा,” रूको… क्या ये तुम्हारा बच्चा नहीं है ….ये बच्चा कही से चोरी करके तो नहीं ला रही हो… सच सच बताओ नहीं तो पुलिस को खबर कर दूँगा ।” 

रत्ना उसकी बात सुन कर घबरा गई… और उसने सब सच सच बता दिया और ये भी कह दिया कि अब से ये मेरी बच्ची है किसी और की नहीं ।

“ जो कभी इसकी असली माँ इसे खोजते हुए आ गई तो?” पुजारी ने पूछा 

“ जो इसे कुत्तो के बीच झाड़ियों में छोड़ आई वो इसे लेने क्या ही आएगी… वैसे भी मैं यहाँ से दूर चली जाऊँगी… कुछ काम करूँगी अपनी बेटी का पालन पोषण करूँगी बस आप ये बात अपने तक रहना ।” कहते हुए रत्ना पुजारी के पैरों में झुक गई 

“ ठीक है पर इतना याद रखना अगर कभी इसकी माँ इसे खोजते हुए मुझसे कुछ पूछताछ करेगी तो मैं झूठ नहीं बोल पाऊँगा… और तुम कहाँ रहती हो परिवार में कौन कौन है ?” पुजारी ने कहा 

रत्ना ने उसे अपनी सारी कहानी सुना दी… तब पुजारी ने कहा ,” सुनो बेटा यहाँ पास में एक स्कूल है तुम वहाँ साफ़ सफ़ाई का काम करना चाहो तो कर सकती हो।”

और फिर रत्ना ने उस बच्ची की ख़ातिर वही स्कूल में काम शुरू कर दिया और रहने के लिए एक छोटी सी खोली पुजारी जी ने दिलवा दिया… सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था एक दिन पता चला एक औरत मंदिर में आकर लोगों से कुछ पूछताछ कर रही है।

उत्सुकता वश रत्ना ने भी बात पता करनी चाही… पता चला वो औरत अपनी बच्ची को खोज रही है…वो यही मंदिर के आस पास से गुम हो गई थी।ये सुनते ही रत्ना को ऐसा लगने लगा कहीं यही तो उस बच्ची की माँ नहीं हैं जिसका नाम उसने रति रखा है ।

अब रत्ना उसे देख कर डरने लगी थी कही वो उसकी बेटी को लेकर ना चली जाए और आज भी रत्ना उसी औरत को देख कर घबरा रही थी।

उसे पता था जिन पुजारी जी को ये बात पता है वो तो अब इस दुनिया में रहे नहीं तो उसकी बेटी की सच्चाई सामने कभी आ ही नहीं सकती।

फिर भी रत्ना उस औरत को देख कर परेशान ज़रूर हो रही थी ।

“ माँ चलो छुट्टी हो गई ।” खयालों में खोई रत्ना को रति की आवाज़ सुनाई दी तब वो होश में आई 

“ हाँ चलो ।” कह कर रत्ना रति का हाथ मजबूती से पकड़कर घर की ओर बढ़ गई 

आज रत्ना का मन बहुत व्यथित था… अपने अतीत को वो भुला कर रति के साथ ज़िन्दगी जीने की कोशिश में आगे बढ़ रही थी पर अब डर लग रहा था कहीं वो औरत सच में रति की माँ निकली तो फिर उसका क्या होगा?

इसी उहापोह में वो रति को खाना खिलाकर …सुला कर खुद मंदिर की ओर निकल गई ।

मंदिर में इक्का दुक्का लोग ही थे… तभी उसकी नजर उस औरत पर पड़ी जो मंदिर में परेशान होकर बैठी थी…

रत्ना को उसकी हालत देखकर तरस भी आ रहा था और ग़ुस्सा भी…. फिर भी अपने मन की संतुष्टि के लिए वो उसके पास गई तो देख कर हैरान रह गई कि वो औरत रो रही थी और कुछ बड़बड़ा रही थी..

रत्ना से रहा नही गया तो वो पूछ बैठी,” आप रो क्यों रही है… कोई बात है तो मुझसे कह सकती है?”

हमदर्दी के बोल सुन उस औरत का रहा सहा सब्र का बाँध टूट गया वो रत्ना के गले लगकर जोर जोर से रोने लगी और बोली,” मैं बहुत अभागन हूँ मेरे जैसा भाग्यहीन इस दुनिया में कोई नही होगा….एक बच्चे की माँ होकर भी बाँझ कहलाई जाती हूँ…..दुःख भी ऐसा है कि किसी से कह भी नहीं सकती।” 

रत्ना को उसकी बात कुछ समझ नहीं आई वो बोली,” आप कहना क्या चाहती हैं मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।”

वो औरत रोते हुए अपने अतीत की कहानी रत्ना से कहने लगीं,” कुछ साल पहले करीबन सात साल पहले मैं अपने प्रेमी के प्यार में अंधी हो कर उसके साथ अपनी सारी सीमाएँ पार कर गई… कुछ महीने बाद पता चला मैं गर्भवती हूँ… उससे शादी के लिए कहा तो उसने इंकार कर दिया और बहुत बुरा भला कहा…

मेरे पिता नहीं है…बस मैं और माँ ही रहते थे माँ को जब ये पता चली तो वो मुझे लेकर अस्पताल गईं ताकि बच्चा गिराया जा सके पर मेरे अंदर की ममता मुझे ऐसा करने से रोक रही थी पर माँ का रोना और समाज का डर मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहा था… अस्पताल में डॉक्टर ने कहा,”इतनी कम उम्र की लड़की और पेट में बच्चा ….

उपर से अब गिराने चली आई… जान की परवाह है कि नहीं…अब बच्चा नहीं गिराया जा सकता…माँ ने बहुत मिन्नतें की पर डॉक्टर ने कहा आपको बेटी की जान प्यारी नहीं है क्या… हमसे ये नहीं होगा…हम दोनों हताश हो कर लौट आए और कुछ समय बाद हम उस गाँव से निकल कर इधर ही पास के गाँव चले आए…

माँ उधर काम करने लगी और मैं अपनी क़िस्मत को कोसती रहती … समय पर एक बेटी को जन्म दिया… पर जब माँ भाग्यहीन हो तो बेटी का भाग्य कैसा होगा ये सब सोचकर माँ ने उस बच्ची को इधर ही किसी झाड़ी में छोड़ दिया और मुझे बोली बेटी हुई थी बहुत कमजोर थी जन्म लेने के कुछ समय बाद ही वो मर गई…

दिल पर पत्थर रखकर मैंने अपनी ममता को वही छोड़ आगे बढ़ गई…. तीन साल बाद माँ ने मेरी शादी करवा दी… और उसके बाद ससुराल में सब बच्चे के लिए बोलने लगे.. हम दोनों पति पत्नी भी चाहते है हमारा बच्चा हो पर कुछ नही हो रहा सब कुछ ठीक है फिर भी… डॉक्टर ने कहा है,” सब कुछ ठीक है भरोसा रखो बच्चा ज़रूर होगा..

  पर साल दर साल गुजर रहे और मैं सबकी नज़रों में बाँझ कहलाने लगी… अभी कुछ दिनों पहले मेरी माँ की तबियत बहुत ख़राब हुई … मैं उसको पास ही थी कि एक दिन वो अचानक से कहने लगी,” लगता है मेरा अंतिम समय  आ गया है अब ये बोझ लेकर नहीं मर सकती… हो सके तो मुझे माफ कर देना…चंदा तुम बाँझ नहीं हो बेटी…

तेरी एक बेटी है उसके बाद ही उसने बताया उसे वो इधर छोड़ आई थी..जाकर पता कर तेरी बेटी सही सलामत किसी को पास होगी तो देखकर तसल्ली कर लेना और भगवान से उस गलती की माफी मांग लेना शायद तब कही तेरी झोली में भगवान किसी बच्चे को डाल दें….. तबसे मैं उसे देखने के लिए बैचेन हो रही हूँ…

और जिसने भी मेरी बच्ची को अपने पास रखा है उससे मिलकर उसे धन्यवाद करना चाहती हूँ बस एक बार मेरी बेटी के जीवित होने का पता चल जाए।”उस औरत जिसका नाम चंदा था

उसकी बात सुनकर रत्ना को एक पल को अपनी दुनिया लुटती हुई दिखाई देने लगी …फिर एक माँ की तकलीफ़ समझ कर उसने पूछा,” आपकी माँ ने आपको सब बताया होगा… कहाँ पर छोड़ कर गई थी कैसे कपड़ों में लिपटी हुई थी?”

“ हाँ बताया ना माँ की एक पुरानी साड़ी थी हरे रंग की उपर से माँ ने उस बच्ची के कमर में एक काला धागा भी बांधा हुआ था… बता रही थी बड़ी सुंदर बेटी थी बस दुबली बहुत थी।”

ये सब सुन कर रत्ना के पाव तले जमीन खिसकती हुई महसूस हुई वो वहाँ से उठकर भागने लगी…

तभी चंदा ने उसका हाथ पकड़ा और बोली,” बताओ ना बहन आप जानती हो क्या ऐसी किसी बच्ची को… बस मुझे उसको देख कर लाड करना है और जिसने भी उसे अपने पास रखा उसके चरणों में गिर कर धन्यवाद करना है।”

“ नहीं नहीं तुम अपनी बेटी को ले जाओगी… मैं नहीं बताऊँगी…कभी नहीं बताऊँगी।” रत्ना बड़बड़ाने लगी

“ नहीं बहन मैं कैसे उस बच्ची को अपने ससुराल ले कर जा सकती हूँ… किसी को क्या कहूँगी… मैं तो अभी माँ के मर जाने के बाद उस बच्ची को देखने तक यहाँ रूकी हूँ… बस देखकर तसल्ली कर यहाँ से चली जाऊँगी ।” चंदा लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोली 

रत्ना को अभी भी चंदा की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था… एक तरफ उसे माँ का दर्द दिखाई दे रहा था तो दूसरी तरफ बेटी को खोने का डर… रत्ना को ख़ामोश देख चंदा बोलीं,” बहन आपके पाँव पड़ती हूँ जो मेरी बेटी के बारे में कुछ भी जानती हो तो बता दो…बस एक बार देख लूँ… फिर मुड़कर नहीं देखने आऊँगी… भगवान से और उसे देख मैं अपनी गलती की माफ़ी मांग लूँ और मुझे बाँझ शब्द से मुक्ति मिल जाए.. बस एक बार देखना है ।”

रत्ना कुछ पल को शांत खड़ी रही फिर चंदा का हाथ पकड़कर उसे अपने घर ले आई ।

रति अभी सो रही थी… रत्ना ने पुराने बक्से से वो साड़ी निकाली जिसमें रति लिपटी हुई मिली थी.. वो काला धागा जो उसकी कमर पर बंधा था… उनसब को देखते ही चंदा रत्ना को देखने लगी और बोली,” ये मेरी माँ की साड़ी है आपके पास?” 

इसके आगे चंदा कुछ कहती रत्ना ने रति की तरफ उँगली दिखाई 

रति को देखते ही चंदा चौंक गई… उसकी शक्ल थोड़ी उसके जैसी थोड़ी उसके प्रेमी के जैसी थी…वो दौड़कर रति की तरफ गई और उसे प्यार करने लगी ।

रति को असहज सा महसूस हुआ तो उसकी आँख खुल गई.. सामने एक अनजान औरत को देखकर वो रत्ना से सवाल करते हुए बोली,” माँ ये कौन है और मुझे ऐसे क्यों प्यार कर रही है ?”

रत्ना कुछ बोलती इससे पहले चंदा ने कहा,” बेटा मैं तुम्हारी माँ की बहन मतलब तुम्हारी मौसी हूँ….बहुत समय बाद तुम्हारे माँ से मिलने का मौका मिला बस तुम्हें देख कर प्यार करने को जी करने लगा ।”

कुछ समय रुक कर चंदा अपने दिल को मजबूत कर रत्ना के पैरों पर झुकी और बोली,” आप बहुत महान हो दीदी….अपनी बेटी को ऐसे ही प्यार करती रहना।” कहते हुए आँखों में आँसू लिए चंदा वहाँ से जाने लगी 

“ चंदा तुम भी एक माँ हो बस तुम्हारी क़िस्मत में उसका साथ नहीं है और देखो मैं कभी माँ नहीं बनी पर एक बेटी की माँ बनकर उसके साथ हूँ ….तुम चाहो तो अपनी बेटी से मिलने आ सकती हो बस इसे मुझसे दूर मत करना।” रोते हुए रत्ना ने कहा 

“ मैंने आपको बताया ना मैं बस एक बार देखना चाहती थी… अब कभी आपको नजर नहीं आऊँगी अगर मेरे भाग्य में अब कोई बच्चा आया तभी आपको मिलने आऊँगी ताकि आपके मन का डर हमेशा के लिये ख़त्म हो जाए नहीं तो मैं आज के बाद आपको कभी दिखाई नही दूँगी… जानती हूँ अगर आऊँगी तो रति के लिए ममता उमड़ेगा जो मैं कभी नही चाहती उसपर अब बस आपका हक है मेरा नहीं ।” कहते हुए चंदा वहाँ से भाग गई

रत्ना को खुशी भी हो रही थी और चंदा के लिए दुख भी ।

डेढ़ साल बाद रत्ना के घर की कुंडी बजी दरवाज़ा खोलकर देखा तो सामने चंदा खड़ी थीं… गोद में एक बच्चा…उसने झुककर रत्ना के पांव छुए और रति को देखकर मुस्कुराई 

“ दीदी अगर उस दिन आप मुझसे नहीं मिली होती… मैं अपनी बेटी से माफी नहीं माँगती तो शायद भगवान आज भी मुझे कोई औलाद ना देते और मैं ख़ुद को हमेशा भाग्यहीन ही समझती रहती पर अब नहीं … ससुराल में अब कोई मुझे बाँझ नहीं कहता सब बहुत खुश है…आप मेरे आने से खुश हो ना?” चंदा ने बहुत अपनेपन से पूछा 

“ चंदा रति मुझे जिस हाल में मिली थी मैं उसकी माँ को बहुत कोस रही थी तब परिस्थितियों का अंदाज़ा नहीं था…. भाग्यहीन तो मैं भी हूँ पर रति के आ जाने से खुद को भाग्यवान समझने लगी .. जब तुम्हें पहली बार देखी तो डर गई थी अगर रति तुम्हारी बेटी हुई तो तुम लेकर चली जाओगी पर अब कोई डर नही है..क्योंकि मैं भी

ज़िन्दगी से हार कर मरने जा रही थी और रति को तुम्हारी माँ ने मरने के लिए छोड़ दिया था भाग्य ने हमें मिलवाया और हम एक  दुसरे के जीने का सहारा बन गए बस एक विनती है अब यहाँ कभी मत आना हम माँ बेटी अपने हर हाल में खुश है और तुम अपने घर में खुश रहना।” कहते हुए रत्ना ने हाथ जोड़ लिए 

चंदा ने रत्ना के हाथ पर अपना हाथ रखा और आश्वासन देकर निकल गई फिर कभी लौटकर ना आने के लिए ।

दोस्तों कहानी पसंद आए तो लाइक करें और कमेंट्स करके अपनी प्रतिक्रिया अवश्य वसंत करें ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# भाग्यहीन

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!